चीन-PAK के हाइपरसोनिक हथियारों का खतरा... भारत को क्यों चाहिए रूस का S-500 एयर डिफेंस सिस्टम?
भारत को S-500 इसलिए चाहिए क्योंकि चीन-पाकिस्तान की हाइपरसोनिक मिसाइलों का मुकाबला करना है. S-400 इन तेज मिसाइलों को नहीं रोक सकता. S-500 एक साथ 12 बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलें 600 किमी दूर मार गिरा सकता है. पुतिन की दिसंबर 2025 यात्रा में डील फाइनल हो सकती है. 100% तकनीक ट्रांसफर के साथ भारत में बनेगा.
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ये है रूस का S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम. (File Photo: Russian Ministry of Defence)
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत पहुंच रहे हैं. उनकी दो दिवसीय यात्रा के दौरान भारत-रूस के बीच रक्षा सहयोग पर बड़ी चर्चा होगी. इसमें Su-57 फाइटर जेट के अलावा S-500 प्रोमेथियस एयर डिफेंस सिस्टम की डील भी प्रमुख है. S-500 दुनिया का सबसे उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम है, जो हाइपरसोनिक मिसाइलों और स्टील्थ विमानों को रोक सकता है. लेकिन भारत को यह क्यों चाहिए? आइए, समझते हैं कि S-500 क्या है, भारत की जरूरतें क्या हैं? डील की स्थिति क्या है? फायदे-नुकसान क्या हैं और भविष्य क्या हो सकता है.
भारत की सीमाएं दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण हैं – उत्तर में चीन के साथ लद्दाख, पूर्व में अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम में पाकिस्तान के साथ सीमा. चीन के पास DF-21 जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलें हैं, जो आवाज की गति से 10 गुना तेज उड़ती हैं. पाकिस्तान ने भी चीन से हाइपरसोनिक हथियार खरीदने की योजना बनाई है.
ऑपरेशन सिंदूर 2025 का सबक: हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए हवाई संघर्ष में S-400 ने कमाल किया. इसने एक AWACS प्लेन को 300 किमी दूर से मार गिराया. लेकिन हाइपरसोनिक हमलों का सामना करने के लिए S-400 पर्याप्त नहीं. वायुसेना प्रमुख एपी सिंह ने कहा कि हमें अगली पीढ़ी का सिस्टम चाहिए जो दुश्मन के सबसे तेज हथियारों को रोके.
चीन का खतरा: चीन के पास HQ-19 जैसे सिस्टम हैं, जो 600 किमी दूर मिसाइलें मार गिरा सकते हैं. भारत अगर पीछे रहा तो दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों पर हमले का खतरा बढ़ जाएगा.
क्षेत्रीय संतुलन: अमेरिका के पास THAAD, इजराइल के पास एरो-3 हैं. भारत को भी हाइपरसोनिक डिफेंस चाहिए ताकि हवाई सुरक्षा मजबूत हो.
वर्तमान में भारत के पास S-400 के चार रेजिमेंट्स हैं (पांचवां 2026 तक आएगा), लेकिन S-500 के बिना हाइपरसोनिक युग में कमजोरी रहेगी.
S-500 (नाटो नाम: प्रोमेथियस) रूस का सबसे नया एयर डिफेंस सिस्टम है. यह S-400 का अपग्रेडेड वर्जन है, जो 2021 में रूस की सेना में शामिल हुआ. भारत के लिए इसका एक्सपोर्ट वर्जन तैयार है.
रेंज और स्पीड: हवाई हमलों के खिलाफ 500 किमी, बैलिस्टिक मिसाइलों के खिलाफ 600 किमी. 200 किमी ऊंचाई तक टारगेट मार सकता है.
हाइपरसोनिक डिफेंस: 600-7000 km/hr से ज्यादा तेज गति की 10 मिसाइलों (जैसे किंजल) को एक साथ रोक सकता है. स्टील्थ विमानों (जैसे J-20) को भी रडार से पकड़ लेता है.
मल्टी-टारगेट: एक साथ 18 विमान या 12 बैलिस्टिक मिसाइलें ट्रैक और डिस्ट्रॉय कर सकता है. रडार 360 डिग्री कवरेज देता है.
मोबाइल और तेज: ट्रक पर लगता है, 5 मिनट में तैयार. रूस ने इसे बारेंट्स सी एक्सरसाइज में टेस्ट किया, जहां DRDO-IAF टीम ने जाकर देखा.
कीमत: एक रेजिमेंट (8 लांचर) करीब 8000-10000 करोड़ रुपये. S-400 से महंगा लेकिन ज्यादा ताकतवर.
रूस के डिप्टी पीएम डेनिस मंटुरोव ने दुबई एयरशो 2025 में कहा कि S-400 यूजर्स जैसे भारत के साथ S-500 पर बात हो सकती है.
भारत-रूस की दोस्ती 60 साल पुरानी है. 2018 में S-400 की 5.4 अरब डॉलर की डील हुई, जो CAATSA सैंक्शंस के बावजूद पूरी हुई. अब S-500 पर फोकस है.
पुतिन की यात्रा: 4-5 दिसंबर 2025 को पुतिन-मोदी मीटिंग में S-500 की चर्चा होगी. भारत 2-3 रेजिमेंट्स खरीदने की योजना बना रहा है. जॉइंट प्रोडक्शन का ऑफर भी है – भारत में HAL या BEL के साथ बनाया जा सकता है.
जुलाई 2024 का प्रपोजल: मोदी की मॉस्को यात्रा में रूस ने जॉइंट प्रोडक्शन का सुझाव दिया. अक्टूबर 2025 में DRDO टीम मॉस्को गई, जहां S-500 के हाइपरसोनिक टेस्ट देखे.
अन्य डील्स: पांच और S-400 रेजिमेंट्स (डबल ताकत), Su-57 जेट्स और ब्रह्मोस-2 हाइपरसोनिक मिसाइल पर भी बात हो सकती है.
टेक्नोलॉजी ट्रांसफर: 100% TOT का वादा, जो AMCA प्रोजेक्ट को मदद देगा. डिलीवरी 2027-28 से शुरू हो सकती है.
भारत की सुरक्षा कैसे मजबूत होगी?
हाइपरसोनिक शील्ड: चीन-पाक की तेज मिसाइलों का जवाब. दिल्ली को 600 किमी दूर से बचाव.
CAATSA सैंक्शंस: US ने S-400 पर चेतावनी दी. S-500 पर और दबाव आ सकता है, लेकिन भारत ने अब तक बचा लिया.
रूस की देरी: यूक्रेन युद्ध से प्रोडक्शन प्रभावित. S-400 की डिलीवरी लेट हुई थी.
महंगा और जटिल: रखरखाव मुश्किल. इंटीग्रेशन में समय लगेगा.
भू-राजनीतिक जोखिम: US-भारत क्वाड में तनाव बढ़ सकता है.
क्या होगा अगला कदम?
पुतिन-मोदी मीटिंग के बाद अगर डील फाइनल हुई तो 2026 में कॉन्ट्रैक्ट साइन हो सकता है. यह भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करेगा जिनके पास हाइपरसोनिक डिफेंस है. वायुसेना को नई ताकत मिलेगी, और आत्मनिर्भर भारत का सपना और आगे बढ़ेगा. लेकिन फैसला सावधानी से लेना होगा – रूस अच्छा साथी है, लेकिन वैश्विक तनाव बढ़ रहे हैं.