सीवान, उत्तर-पश्चिमी बिहार में स्थित एक जिला मुख्यालय है, जो उत्तर प्रदेश की सीमा के पास स्थित है. ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध और उपजाऊ भूमि वाला यह जिला वर्षों से कृषि, व्यापार और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है. घाघरा और दाह जैसी नदियां इसकी भूमि को सींचती हैं, जिससे यह कृषि का एक प्रमुख केंद्र बन गया है. सड़क और रेल मार्ग इसे
प्रमुख शहरों से जोड़ते हैं.
सीवान को गर्व है कि यह भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जन्मभूमि रहा है. यहां की समृद्ध भोजपुरी संस्कृति इसे एक अलग पहचान देती है.
सीवान के उत्तर में गोपालगंज और पूर्व में सारण जिला स्थित है. पश्चिम और दक्षिण की ओर यह उत्तर प्रदेश के देवरिया और बलिया जिलों से घिरा हुआ है. इसके आस-पास के प्रमुख शहरों में छपरा (65 किमी दक्षिण-पूर्व), गोपालगंज (40 किमी उत्तर), देवरिया (50 किमी पश्चिम), बलिया (55 किमी दक्षिण-पश्चिम) और गोरखपुर (125 किमी उत्तर-पूर्व) शामिल हैं, जबकि राज्य की राजधानी पटना यहां से 140 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है.
हालांकि सीवान में कुछ उद्योग मौजूद हैं, फिर भी इसकी अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है. धान, गेहूं, मक्का, गन्ना और दलहन जैसे फसलें यहां प्रमुखता से उगाई जाती हैं. सीवान अपनी मिट्टी के बर्तनों, पीतल के सामान और "फुल" नामक स्थानीय मिश्रधातु के लिए भी जाना जाता है.
सीवान का प्राचीन इतिहास भी अत्यंत समृद्ध है. ऐसा माना जाता है कि 'सीवान' नाम संस्कृत शब्द 'सव्यन' (शवयात्रा) से उत्पन्न हुआ है. एक लोककथा के अनुसार, भगवान बुद्ध की शवयात्रा को जब कुशीनगर ले जाया जा रहा था, तो कुछ समय के लिए उनका पार्थिव शरीर यहीं रखा गया था. ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र कोशल राज्य का हिस्सा था और ब्रिटिश शासनकाल में 1924 में सीवान नगरपालिका परिषद की स्थापना की गई थी.
बौद्ध विरासत से जुड़ी खुदाई में यहां अनेक संरचनाएं मिली हैं, जो इसकी सांस्कृतिक विरासत को प्रमाणित करती हैं. भेड़बनिया गांव में खुदाई के दौरान भगवान विष्णु की एक प्राचीन मूर्ति भी मिली थी.
सीवान विधानसभा क्षेत्र, सीवान लोकसभा सीट के छह खंडों में से एक है. इसकी स्थापना 1951 में हुई थी. यह एक सामान्य सीट है और इसमें सीवान प्रखंड जिसमें नगरपालिका क्षेत्र भी शामिल है, साथ ही बरहरिया प्रखंड के आठ ग्राम पंचायत आते हैं. अब तक इस क्षेत्र में 18 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें 1959 का उपचुनाव भी शामिल है. यहां की मतदाता पसंद में निरंतर बदलाव देखने को मिला है और कोई भी पार्टी इसे अपना गढ़ नहीं बना पाई है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने यहां सात बार जीत दर्ज की है, जिनमें से दो जीत उसके पूर्ववर्ती जनसंघ के नाम रही. कांग्रेस ने शुरुआती पाँच में से चार बार जीत दर्ज की, अंतिम बार 1967 में. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने तीन बार, जिनमें 2020 का चुनाव भी शामिल है, जीत हासिल की. जनता पार्टी और जनता दल ने दो-दो बार जीत दर्ज की. भाजपा की तीन बार की लगातार जीत का सिलसिला 2020 में टूट गया जब पार्टी के प्रत्याशी को आंतरिक कलह के चलते केवल 1,973 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. पूर्व मंत्री व्यासदेव प्रसाद का टिकट काटकर ओम प्रकाश यादव को प्रत्याशी बनाया गया था, जिससे असंतोष पैदा हुआ. हालांकि बाद में प्रसाद को मनाया गया, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था.
वर्तमान विधायक अवध बिहारी चौधरी इस सीट से छह बार विधायक रह चुके हैं- तीन बार राजद से, दो बार जनता दल से और एक बार जनता पार्टी से. 2020 की संकीर्ण हार के बावजूद भाजपा को उम्मीद की किरण इस कारण से है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जद (यू) ने सीवान विधानसभा क्षेत्र में 9,548 वोटों की बढ़त हासिल की थी.
सीवान विधानसभा क्षेत्र में ग्रामीण और शहरी मतदाताओं का मिश्रण है. 2020 विधानसभा चुनाव में कुल 3,11,523 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 2,11,680 (67.95%) ग्रामीण और 99,843 (32.05%) शहरी मतदाता थे. मुस्लिम मतदाता संख्या 80,373 (25.80%) है, जो एक प्रभावशाली वर्ग हैं. अनुसूचित जातियों के मतदाता 31,557 (10.13%) और अनुसूचित जनजातियों के मतदाता 7,258 (2.33%) थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाता संख्या बढ़कर 3,20,094 हो गई.
2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारी के दौरान राजनीतिक दलों को यह ध्यान में रखना होगा कि सीवान में आमतौर पर मतदान प्रतिशत 54 से 57 के बीच रहता है. मतदान प्रतिशत में किसी भी प्रकार की बढ़त या गिरावट चुनावी नतीजे को सीधे प्रभावित कर सकती है, क्योंकि वर्तमान में सत्ता पक्ष और विपक्ष के गठबंधन लगभग बराबरी पर हैं.
(अजय झा)