डुमरांव, बिहार के बक्सर जिले का एक उपखंड और विधानसभा क्षेत्र है, जिसमें चौगाईं, केसठ और नवानगर सामुदायिक विकास खंड शामिल हैं. इसके अलावा इसमें चिलहरी, कुशलपुर, भोजपुर कदीम, भोजपुर जदीद, छतनवार, नुआंव, सोवां, अड़ियांव, नंदन, लखनडीहरा और दमराँव प्रखंड की ग्राम पंचायतें आती हैं.
होती है, जो समय के साथ अपनी चमक खोकर एक उपखंड स्तरीय कस्बे तक सीमित रह गई है. यह एक समय डुमरांव राज की राजधानी हुआ करता था. एक विशाल जमींदारी जो ब्रिटिश काल में 2,330 वर्ग किलोमीटर में फैली थी. यह जमींदारी बक्सर से उत्तर प्रदेश के बलिया तक फैली हुई थी और गंगा किनारे बसे 70 से अधिक गांवों पर अधिकार रखती थी.
डुमरांव नगर की स्थापना 1709 में राजा होरिल सिंह ने की थी, जब उन्होंने मथिला बक्सर से अपनी राजधानी डुमरांव स्थानांतरित की थी. इसे कभी "होरिलनगर" के नाम से भी जाना जाता था. राजा होरिल सिंह की अवसरवादी नीतियां, जैसे कि अपने ही कबीले के विद्रोहों को दबाने में मुगलों की मदद करना, संभवतः डुमरांव के पतन का कारण बनीं. मुगलों ने बदले में डुमरांव राज को विशाल जमींदारी बना दिया, लेकिन आज के डुमरांववासी उन्हें विश्वासघाती मानते हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत सत्ता और धन के लिए देश के साथ गद्दारी की.
भौगोलिक दृष्टि से, डुमरांव बक्सर जिला मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. इसके अलावा नगवां 18 किलोमीटर उत्तर में और कोथ लगभग 27 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है. गंगा के समीप होने के कारण यह क्षेत्र उपजाऊ है और गंगीय मैदानों की समतल भौगोलिक संरचना लिए हुए है. 1800 के दशक के अंत में डमराँव एक प्रमुख चीनी उत्पादक और निर्यातक था, लेकिन अब वहां की चीनी मिलें बंद हो चुकी हैं और यह शहर बिहार के औद्योगिक नक्शे से गायब हो चुका है.
2011 की जनगणना के अनुसार, डुमरांव की जनसंख्या 53,618 थी, जिसमें 28,498 पुरुष और 25,120 महिलाएं थीं. लिंग अनुपात केवल 881 महिलाओं प्रति 1000 पुरुष था, जो चिंताजनक रूप से कम है. साक्षरता दर 71.6% थी, जो बिहार की औसत साक्षरता दर 61.8% से अधिक है, लेकिन इसमें भी लैंगिक असमानता स्पष्ट थी. पुरुषों की साक्षरता 78.64% और महिलाओं की केवल 63.52% थी. धार्मिक दृष्टिकोण से, 83.85% आबादी हिंदू और 15.94% मुस्लिम थी.
डुमरांव विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई और यह बक्सर लोकसभा सीट के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. अब तक यहां 17 बार विधायक चुने जा चुके हैं. इनमें से कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है, जबकि जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) और निर्दलीय प्रत्याशी दो-दो बार विजयी रहे हैं. सीपीआई, समाजवादी पार्टी, अखिल जन विकास दल और सीपीआई(एमएल)(एल) को एक-एक बार सफलता मिली है.
यहां के मतदाता आम तौर पर पार्टी की बजाय उम्मीदवार को प्राथमिकता देते हैं. उदाहरण के लिए, बसंत सिंह ने 1985 में कांग्रेस से जीत हासिल की और फिर 1990 व 1995 में जनता दल से विजयी रहे. उनके उत्तराधिकारी ददन सिंह यादव चार बार अलग-अलग पार्टियों से जीत चुके हैं. 2000 में निर्दलीय, 2005 के फरवरी और अक्टूबर में क्रमशः समाजवादी पार्टी और अखिल जन विकास दल से, और 2015 में जदयू से जीते. वे एक बार बसपा से बक्सर लोकसभा सीट भी लड़े थे लेकिन हार गए. 2020 में सीपीआई(एमएल)(एल) के अजीत कुशवाहा ने महागठबंधन के तहत जदयू की अंजुम आरा को 24,415 मतों से हराकर सीट जीती.
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में महागठबंधन को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा. बक्सर सीट से आरजेडी के सुधाकर सिंह ने बीजेपी के मिथिलेश तिवारी पर डुमरांव विधानसभा क्षेत्र में केवल 3,581 मतों की बढ़त बनाई.
जातिगत रूप से डुमरांव किसी एक जाति के वर्चस्व वाला क्षेत्र नहीं है. यहां 13.63% अनुसूचित जाति, 1.25% अनुसूचित जनजाति और 7.1% मुस्लिम मतदाता हैं. यह क्षेत्र मुख्य रूप से ग्रामीण है, जिसमें केवल 12.88% मतदाता शहरी हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं की संख्या 3,18,276 थी, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,30,088 हो गई. 2020 में मतदान प्रतिशत केवल 55.05% था, जिससे बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को उम्मीद है कि यदि वे शेष 44.95% निष्क्रिय मतदाताओं को साध लें, तो 2025 के विधानसभा चुनावों में उनकी जीत संभव हो सकती है.
(अजय झा)