बिहार के सारण जिले में स्थित मांझी विधानसभा क्षेत्र, महाराजगंज लोकसभा सीट का एक हिस्सा है. इसकी स्थापना 1951 में हुई थी और यह एक सामान्य वर्ग की सीट है. इसमें जलालपुर प्रखंड पूरी तरह शामिल है, जबकि मांझी प्रखंड की 18 और बनियापुर प्रखंड की 3 ग्राम पंचायतें भी इसका हिस्सा हैं.
क्षेत्रों में से एक है और इसने समय-समय पर राजनीतिक बदलावों को करीब से देखा है. शुरुआती दशकों में यहां कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसमें गिरीश तिवारी और रमेश्वर दत्त शर्मा जैसे नेता सामने आए. इसके बाद जनता पार्टी, जदयू और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी अपना असर छोड़ा. 2020 में यहां पहली बार माकपा (CPI-M) ने जीत दर्ज की, जिसे राजद-कांग्रेस-वाम गठबंधन के तहत यह सीट दी गई थी.
मांझी क्षेत्र गंगा और घाघरा नदियों के संगम पर स्थित है. यह क्षेत्र उपजाऊ लेकिन बाढ़ग्रस्त भी है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. धान, दालें और सरसों प्रमुख फसलें हैं. पूरा क्षेत्र ग्रामीण है, कोई शहरी जनसंख्या नहीं है. मांझी प्रखंड-स्तरीय कस्बा है जो छपरा (25 किमी), सिवान (35 किमी), और उत्तर प्रदेश के बलिया (40 किमी) से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है. सीतलपुर रेलवे स्टेशन से रेल सुविधा मिलती है, जबकि राज्य की राजधानी पटना यहां से लगभग 90 किमी दूर है.
1951 से अब तक मांझी में 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें कांग्रेस ने 7 बार, जदयू ने 3 बार, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और निर्दलीयों ने 2-2 बार, जबकि जनता पार्टी, जनता दल और माकपा ने 1-1 बार जीत दर्ज की है.
2020 के चुनाव में माकपा के डॉ. सत्येन्द्र यादव ने 78,122 वोटों के साथ जीत हासिल की. निर्दलीय उम्मीदवार राणा प्रताप सिंह को 52,736 वोट मिले और जदयू की माधवी कुमारी 34,266 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं. यह जीत वाम दलों के लिए ऐतिहासिक रही, जो महागठबंधन की संयुक्त रणनीति का परिणाम थी.
2020 में इस क्षेत्र में कुल 3,02,479 पंजीकृत मतदाता थे. इनमें अनुसूचित जाति (SC) के मतदाता 12.64% (38,233), अनुसूचित जनजाति (ST) 3.61% (10,919) और मुस्लिम मतदाता लगभग 8.9% (26,921) थे. मतदान प्रतिशत 52.26% रहा, जो 2015 के मुकाबले थोड़ा अधिक था.
जातिगत दृष्टिकोण से यह क्षेत्र खंडित है. राजपूत सबसे बड़ी जाति समूह हैं, इसके बाद मुस्लिम, यादव (अहीर), भूमिहार, कुर्मी और ब्राह्मण आते हैं. एससी मतदाताओं की भी अहम भूमिका है. 2020 में वाम दलों की जीत पिछड़े और वंचित तबकों की एकजुटता से संभव हो सकी, जिसे गठबंधन के समर्थन ने और मजबूत किया.
2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,09,472 हो गई. चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 के बाद 5,217 मतदाता क्षेत्र से बाहर चले गए. इस बार मतदान प्रतिशत 53.48% रहा. जबकि एनडीए को 2020 में विधानसभा सीट पर हार मिली थी, 2024 लोकसभा चुनाव में एनडीए को मांझी विधानसभा क्षेत्र में 4,866 वोटों की बढ़त मिली. इससे एनडीए को आगामी 2025 विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद बंधी है.
2025 के चुनावों को देखते हुए, माकपा जहां अपनी स्थिति बचाने की कोशिश में जुटेगी, वहीं भाजपा-नेतृत्व वाला एनडीए इस सीट को फिर से पाने की कोशिश करेगा. चूंकि 2020 में जदयू प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे, इसलिए संभावना है कि एनडीए इस बार यह सीट भाजपा या लोजपा जैसे किसी अन्य सहयोगी को दे सकता है. यह सीट एनडीए के लिए अभी भी पूरी तरह से खोई हुई नहीं मानी जा सकती.
(अजय झा)