बिहार के सारण जिले में स्थित गरखा विधानसभा क्षेत्र अक्सर तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, खासकर जब बात आरक्षित सीटों के निर्धारण मानदंडों की होती है. गरखा में अनुसूचित जातियों की आबादी महज 13.69% है, फिर भी यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है. दूसरी ओर, बिहार के कई ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां एससी आबादी 20% से अधिक है, फिर भी वे
सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हैं.
गरखा विधानसभा सीट की स्थापना 1957 में हुई थी और शुरुआत में यह सामान्य श्रेणी की सीट थी. पहले दो चुनाव सामान्य सीट के तौर पर लड़े गए, लेकिन 1967 से इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया. 2008 में हुए परिसीमन के बाद भी इसकी आरक्षित स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया गया. नए परिसीमन के तहत गरखा ब्लॉक के साथ-साथ छपरा ब्लॉक के 14 ग्राम पंचायतों को भी इस सीट में शामिल किया गया.
अब तक गरखा में कुल 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कई राजनीतिक दलों को जीत मिली है. कांग्रेस ने 5 बार, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 3 बार, निर्दलीय उम्मीदवारों ने 3 बार और भाजपा ने 2 बार जीत हासिल की है. इसके अलावा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
राजद का उभार कांग्रेस के पतन के साथ हुआ, जो अब राज्य में उसका कनिष्ठ सहयोगी बन चुका है. हाल के वर्षों में यह सीट भाजपा और राजद के बीच सीधा मुकाबले का केंद्र बन चुकी है. राजद ने यहां पहली बार 2000 में जीत दर्ज की थी. पिछले चार विधानसभा चुनावों (2005, 2010, 2015, 2020) में भाजपा और राजद ने दो-दो बार जीत हासिल की है.
जीत के अंतर को देखें तो भाजपा की जीत सीमित रही है जबकि राजद की जीत निर्णायक रही है. अक्टूबर 2005 में भाजपा ने 5,184 वोटों से जीत दर्ज की, जो 2010 में घटकर 1,817 वोट रह गई। इसके मुकाबले, राजद ने 2015 में 39,883 और 2020 में 9,937 वोटों से जीत दर्ज की. यानी राजद की सबसे छोटी जीत भी भाजपा की सबसे बड़ी जीत से अधिक थी.
2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को गरखा में खास राहत नहीं मिली. भले ही भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने सारण लोकसभा सीट जीती, लेकिन गरखा विधानसभा क्षेत्र में वे राजद की रोहिणी आचार्य से 8,914 वोटों से पीछे रह गए.
गरखा प्रशासनिक रूप से सारण जिले का एक सामुदायिक विकास खंड है, जो गंडक नदी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह क्षेत्र उपजाऊ भूमि के कारण कृषि पर आधारित है. यहां मुख्यतः धान, गेहूं और दलहन की खेती होती है, साथ ही डेयरी भी स्थानीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा है.
गरखा में एक छोटा बाजार मौजूद है, लेकिन ज्यादा सुविधाओं के लिए लोगों को ज़िला मुख्यालय छपरा (13 किमी दूर) जाना पड़ता है. नजदीकी शहरों में सिवान (45 किमी), गोपालगंज (55 किमी), और राज्य की राजधानी पटना (65 किमी) शामिल हैं.
चुनावी मुद्दों में विकास प्राथमिक विषय न होते हुए भी, गरखा में बुनियादी सुविधाओं की कमी साफ झलकती है. सभी घरों में बिजली नहीं पहुंची है और नल जल योजना बहुत सीमित है. प्राथमिक विद्यालय तो मौजूद हैं, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को छपरा या पटना जाना पड़ता है. संक्षेप में, यह एक शहरीकृत गांव है जो अब तक कस्बा नहीं बन पाया है.
2020 में गरखा (एससी) विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,07,080 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 42,039 (13.69%) अनुसूचित जाति और 19,960 (6.50%) मुस्लिम मतदाता थे. यहां शहरी मतदाता शून्य थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,18,830 हो गई। इस चुनाव में अब तक की सबसे अधिक 57.80% वोटिंग दर्ज की गई. आम तौर पर गरखा में मतदान प्रतिशत 55% से 58% के बीच रहता है, जो सुधार की संभावनाओं को दर्शाता है.
यह भाजपा के लिए एक अवसर है कि वह निष्क्रिय मतदाताओं को सक्रिय कर बढ़त हासिल करने की कोशिश करे. अन्यथा, राजद की पकड़ इस क्षेत्र में मजबूत बनी हुई है.
(अजय झा)