बिहार के सारण जिले का उपमंडल मढ़ौरा इस बात का उदाहरण है कि सरकारी पहलों की सफलता या विफलता किसी औद्योगिक क्षेत्र के भविष्य को कैसे निर्धारित कर सकती है. एक समय था जब मढ़ौरा मोर्टन चॉकलेट फैक्ट्री के लिए जाना जाता था. 1929 में सी एंड ई मोर्टन लिमिटेड द्वारा स्थापित यह फैक्ट्री चॉकलेट, टॉफी और बिस्किट का निर्माण करती थी. यह फैक्ट्री क्षेत्र की
प्रमुख रोजगार स्रोत थी. इसके साथ ही शुगर मिल और अन्य इकाइयों के चलते मढ़ौरा एक औद्योगिक केंद्र के रूप में फला-फूला. लेकिन सरकारी उदासीनता, आधारभूत ढांचे की कमी और श्रमिक समस्याओं के कारण 1997 में फैक्ट्री को बंद करना पड़ा.
आज मढ़ौरा का नाम रेल डीजल इंजन फैक्ट्री से जुड़ा है. रेलवे मंत्री के रूप में लालू प्रसाद यादव ने 2007 में इस फैक्ट्री की आधारशिला रखी थी. हालांकि, परियोजना को बाद में भुला दिया गया. केंद्र में सरकार बदलने के बाद यह योजना फिर से जीवित हुई और 2018 में इंडियन रेलवे और वाबटेक लोकोमोटिव्स प्राइवेट लिमिटेड के संयुक्त उपक्रम के तहत उत्पादन शुरू हुआ. अब तक यहां 700 से अधिक इंजन बनाए जा चुके हैं और 4500 एचपी के इंजन अफ्रीकी देशों को निर्यात किए जा रहे हैं. इन इंजनों की गर्मी सहने की क्षमता और ईंधन दक्षता के चलते वहां इनकी भारी मांग है. उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता को बढ़ाने के प्रयास जारी हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय मांग को पूरा किया जा सके. इस पहल ने क्षेत्र में रोजगार और सहायक उद्योगों की संभावनाएं बढ़ा दी हैं, जिससे मढ़ौरा की अर्थव्यवस्था और ढांचा दोनों बदलने की उम्मीद है.
मढ़ौरा से 26 किलोमीटर दूर छपरा जिला मुख्यालय स्थित है, जबकि सिवान (50 किमी) और राज्य की राजधानी पटना (70 किमी) भी पास के बड़े शहर हैं. जब तक औद्योगिकीकरण पूरी तरह विकसित नहीं होता, तब तक गंगा के मैदानी इलाके की उपजाऊ भूमि कृषि को स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाए हुए है.
मढ़ौरा में एक खंडहरनुमा मध्यकालीन किला भी है, जो अपनी प्राचीन वास्तुकला और खूबसूरत नज़ारों के लिए पर्यटकों को आकर्षित करता है. ऐतिहासिक अभिलेख सीमित हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह किला एक स्थानीय शासक का निवास था, जो राजस्व वसूली और प्रशासन का कार्य देखता था.
राजनीतिक रूप से मढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र है और सारण लोकसभा क्षेत्र के छह खंडों में से एक है. 1951 में स्थापित इस क्षेत्र में शुरू में कांग्रेस का वर्चस्व रहा, लेकिन हाल के वर्षों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का प्रभाव बढ़ा है. अब तक हुए 18 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने छह बार जीत दर्ज की है, जिनमें एक उपचुनाव शामिल है. राजद ने चार बार जीत हासिल की है, जिनमें पिछली तीन बार लगातार विजय शामिल है. तीन बार निर्दलीय उम्मीदवार जीते, जिनमें भाजपा से बगावत कर चुके लालू बाबू राय की 2005 में दोहरी जीत भी शामिल है. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने दो बार, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के जितेन्द्र कुमार राय ने जनता दल (यू) के अल्ताफ आलम को हराकर तीसरी बार जीत हासिल की. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने भी उम्मीदवार उतारा, लेकिन उसे उतने मत नहीं मिले जिससे परिणाम प्रभावित हो.
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी ने राजद की रोहिणी आचार्य पर मरहौरा में 4,123 मतों की बढ़त ली, लेकिन इससे 2025 के विधानसभा चुनावों का परिणाम तय नहीं माना जा सकता. मढ़ौरा के मतदाता आमतौर पर लोकसभा में नरेंद्र मोदी को समर्थन देते हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव को तरजीह देते हैं. केवल 2009 में लालू यादव ने सारण लोकसभा सीट जीती और मढ़ौरा में बढ़त ली थी. उसके अलावा रूड़ी ने हमेशा यहां बढ़त बनाई है, चाहे वह 2014 में राबड़ी देवी के खिलाफ हो या 2024 में रोहिणी आचार्य के खिलाफ. राजद के जितेन्द्र कुमार राय ने 2015 में 16,718 और 2010 में 5,624 मतों से जीत हासिल की थी.
2020 में मढ़ौरा में कुल 2,67,925 पंजीकृत मतदाता थे. इनमें 30,436 (11.36%) अनुसूचित जाति और 38,313 (14.30%) मुस्लिम मतदाता थे. यह सीट मुख्यतः ग्रामीण है, जिसमें 92.31% ग्रामीण और मात्र 7.69% शहरी मतदाता हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2,85,665 हो गई.
जदयू और भाजपा ने आज तक मढ़ौरा में कभी जीत हासिल नहीं की है, इसलिए भाजपा यहां से दावा पेश कर सकती है. वह 2024 में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता, मढ़ौरा में उद्योग को पुनर्जीवित करने का श्रेय, और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर "ऑपरेशन सिंदूर" के बाद बढ़ी राष्ट्रवादी भावना का लाभ उठाना चाहेगी.
संक्षेप में कहा जाए तो, मढ़ौरा में आगामी चुनावों में कड़ा मुकाबला तय है. जहां एक ओर राजद को बढ़त हासिल है, वहीं भाजपा नीत एनडीए को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
(अजय झा)