अक्सर हमने मतदाता सूचियों और पहचान पत्रों में नाम की गलत वर्तनी के किस्से सुने हैं, लेकिन इस बार निर्वाचन आयोग ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बिहार के बक्सर जिले की एक पूरी विधानसभा क्षेत्र का नाम ही बदल डाला है. बक्सर जिले की ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र को निर्वाचन आयोग के दस्तावेजों में "ब्रहमपुर" लिखा गया है, जबकि बिहार सरकार के रिकॉर्ड में इसका नाम
"ब्रह्मपुर" है. "ब्रह्मपुर" नाम धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अधिक उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि स्थानीय मान्यता और हिंदू पुराणों के अनुसार इस स्थान की स्थापना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी. बावजूद इसके, जब तक कोई आधिकारिक सुधार नहीं किया जाता, निर्वाचन आयोग की वर्तनी को ही मान्यता प्राप्त रहेगी.
ब्रहमपुर का इतिहास उतना प्रमाणिक दस्तावेजों पर आधारित नहीं है जितना कि लोककथाओं और मान्यताओं पर आधारित है. इस क्षेत्र का नाम स्वयं ब्रह्मा जी से जुड़ा है, जो एक प्रसिद्ध लोककथा का हिस्सा है. एक और दिलचस्प कथा एक प्राचीन शिव मंदिर से जुड़ी है. कहा जाता है कि मध्यकालीन आक्रमणकारी महमूद गजनवी जब इस मंदिर को नष्ट करने आया, तो ग्रामीणों ने उसे शिव के प्रकोप से सावधान किया. गजनवी ने हंसते हुए कहा, "अगर तुम्हारा भगवान सचमुच है, तो पूर्वमुखी इस मंदिर का द्वार रातों-रात पश्चिम की ओर हो जाए, तब मैं इसे छोड़ दूंगा." अगली सुबह मंदिर का द्वार सचमुच पश्चिम की ओर हो गया. यह देखकर हैरान गजनवी ने अपनी बात रखी और मंदिर को छोड़ दिया. कुछ लोग इसे चमत्कार मानते हैं, तो कुछ का मानना है कि ग्रामीणों ने रात में मंदिर का द्वार बदल दिया था. जो भी हो, यह मंदिर आज भी अपने पश्चिममुखी द्वार के कारण प्रसिद्ध है और बिहार व उत्तर प्रदेश से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है.
बक्सर लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक ब्रहमपुर विधानसभा क्षेत्र, डुमरांव अनुमंडल के ब्रहमपुर, सिमरी और चक्की प्रखंडों को सम्मिलित करता है. 2011 की जनगणना के अनुसार, सिमरी की जनसंख्या 2,07,225, ब्रहमपुर की 1,96,070 और चक्की की 42,256 थी. इस तरह, कुल जनसंख्या 4,45,551 है, जो पूरी तरह ग्रामीण है. यहां कोई शहरी आबादी नहीं है.
इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाता 11.95%, अनुसूचित जनजाति के 2.34%, और मुस्लिम मतदाता लगभग 4.4% हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में यहां 3,40,864 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,49,684 हो गए. 2020 में मतदान प्रतिशत 54.52% रहा, जो 2015 के 57.26% से कम था.
1951 में स्थापित यह सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित रही है और अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने इसे 5-5 बार जीता है, जबकि निर्दलीय और बीजेपी ने 2-2 बार, और लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी, व जनता दल ने 1-1 बार जीत दर्ज की है. वर्ष 2000 से यह सीट आरजेडी का गढ़ बन गई है, जिसने पिछले छह में से पांच चुनाव जीते हैं. केवल 2010 में बीजेपी ने इस किले को भेदा था, लेकिन उसके बाद वह खुद इस सीट पर 2020 में चुनाव भी नहीं लड़ी, और इसे अपने सहयोगी "वीआईपी" को सौंप दिया. वहीं लोजपा (LJP) ने भी अलग होकर अपना उम्मीदवार उतारा. 2020 में आरजेडी के शंभूनाथ यादव ने 51,141 वोटों के भारी अंतर से यह सीट बरकरार रखी. लोजपा के हुलास पांडेय 39,035 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे, जबकि वीआईपी के जैराज चौधरी को 30,482 वोट मिले.
तब से राजनीतिक समीकरणों में बदलाव हुआ है. लोजपा अब एनडीए में वापस आ गई है, जबकि वीआईपी अब आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा है. 2024 के लोकसभा चुनावों में, ब्रहमपुर विधानसभा क्षेत्र में आरजेडी ने बीजेपी पर 15,333 वोटों की बढ़त बनाई, जबकि 2019 में बीजेपी 16,655 वोटों से आगे थी.
इस सीट पर यादव मतदाता लगभग 26% हैं, जो आरजेडी की बढ़त का एक प्रमुख कारण हैं. आरजेडी के फिर से उम्मीदवार उतारने की संभावना है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि एनडीए की ओर से इस सीट पर किस दल का उम्मीदवार होगा. एनडीए को यदि यह सीट जीतनी है, तो उन्हें रणनीति के तहत मजबूत उम्मीदवार उतारना होगा और पूरी ताकत झोंकनी होगी. यह असंभव नहीं, लेकिन कठिन अवश्य है.
(अजय झा)