बिहार के सिवान जिले में स्थित महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र, महाराजगंज लोकसभा सीट का हिस्सा है. यह क्षेत्र महाराजगंज और भगवानपुर हाट सामुदायिक विकास खंडों को सम्मिलित करता है और 1951 में अपनी स्थापना के बाद से एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र बना हुआ है. यह क्षेत्र मुख्य रूप से ग्रामीण है और इसकी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. महाराजगंज, जो एक
अनुमंडल स्तर का नगर है, व्यापार और वाणिज्य का मुख्य केंद्र है, जो आसपास के गांवों को बड़े बाजारों से जोड़ता है.
हालांकि महाराजगंज का इतिहास में विशेष उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति यहां के जीवनयापन को प्रभावित करती है. यह क्षेत्र समतल और उपजाऊ है, जो खेती के लिए उपयुक्त है. गंडक नदी, जो महाराजगंज से लगभग 36 किमी दूर बहती है, कई गांवों में सिंचाई का साधन प्रदान करती है. यहां की कृषि गतिविधियों में मुख्य रूप से धान, गेहूं और गन्ने की खेती होती है. चावल मिलें और ईंट भट्टों जैसे लघु उद्योग भी स्थानीय रोजगार और अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं. महाराजगंज की कनेक्टिविटी आसपास के कस्बों से अच्छी है- जिला मुख्यालय सिवान लगभग 25 किमी, छपरा 45 किमी और गोपालगंज लगभग 38 किमी की दूरी पर स्थित हैं. राज्य की राजधानी पटना से इसकी दूरी लगभग 133 किमी है.
महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास पारंपरिक दलों के प्रभुत्व वाला रहा है. इसकी स्थापना के बाद से अब तक कुल 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. जनता दल (यूनाइटेड) ने यहां पांच बार जीत दर्ज की है, जिसमें वर्ष 2000 में समता पार्टी के तहत मिली एक जीत भी शामिल है. कांग्रेस और जनता पार्टी ने तीन-तीन बार जीत हासिल की है, जबकि जनता दल को दो बार सफलता मिली है. किसान मजदूर प्रजा पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल ने एक-एक बार यह सीट जीती है. विशेष रूप से, बिहार की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां – राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)– इस सीट पर अब तक जीत हासिल नहीं कर पाई हैं.
2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की जीत का सिलसिला तब टूटा जब लोक जनशक्ति पार्टी ने यहां से प्रत्याशी उतारा. हालांकि एलजेपी को केवल 7,714 वोट मिले, लेकिन इससे एनडीए के वोटों में बंटवारा हुआ और कांग्रेस के उम्मीदवार विजय शंकर दुबे ने मात्र 1,976 मतों के अंतर से जीत दर्ज की.
महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र में अधिकांश मतदाता ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं. शहरी मतदाता केवल 5.91 प्रतिशत हैं. इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति और मुस्लिम मतदाताओं के साथ यादव, महतो, प्रसाद और शाह जैसे उपनामों वाले विभिन्न जाति समूहों की महत्वपूर्ण उपस्थिति है.
2020 के चुनाव में यहां कुल 3,02,786 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें अनुसूचित जाति के मतदाता 34,699 (11.46 प्रतिशत) और मुस्लिम मतदाता 40,271 (लगभग 13.30 प्रतिशत) थे. 2024 के लोकसभा चुनावों में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,15,954 हो गई. चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार, इस अवधि में 2,984 मतदाता क्षेत्र से बाहर चले गए. रोजगार की तलाश में युवाओं का पलायन महाराजगंज की एक प्रमुख समस्या बना हुआ है. हालांकि, आयोग के आंकड़े यह नहीं दर्शाते कि बड़ी संख्या में नए योग्य मतदाता 2020 के बाद पलायन कर गए हों. पिछले कुछ चुनावों में यहां का मतदान प्रतिशत स्थिर रहा है, जो 53 से 54 प्रतिशत के बीच बना हुआ है.
2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने महाराजगंज लोकसभा सीट पर लगातार तीसरी जीत दर्ज की और विधानसभा क्षेत्र में भी 20,738 मतों की बढ़त हासिल की. इस आधार पर यह माना जा सकता है कि 2020 में झेली गई अस्थायी हार के बावजूद, एनडीए गठबंधन आने वाले विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में अपनी बढ़त बनाए रख सकता है. महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और आगे भी इसके समीकरण दिलचस्प बने रहेंगे.
(अजय झा)