बिहार स्थित बक्सर जिला भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यहां दो निर्णायक युद्ध लड़े गए थे. पहला, चौसा का युद्ध, वर्तमान बक्सर शहर से लगभग 16 किलोमीटर दूर चौसा में 26 जून 1539 को हुआ था, जिसमें मुगल सम्राट हुमायूं को शेर शाह सूरी के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था. इस हार के बाद हुमायूं को अपनी जान बचाने के लिए युद्धभूमि से भागना
पड़ा. इस जीत ने शेर शाह सूरी को दिल्ली का सम्राट बना दिया. शेर शाह सूरी पांच साल तक दिल्ली की गद्दी पर रहे, जिसे भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल कहा जाता है.
दूसरा महत्वपूर्ण युद्ध, बक्सर का युद्ध, 22-23 अक्टूबर 1764 को लड़ा गया था. इसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बनारस के महाराजा बलवंत सिंह, बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजा-उद-दौला, और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की सेनाओं का सामना किया. उनकी ज्यादा सैनिक होने के बावजूद, भारतीय सेनाओं के बीच समन्वय की कमी के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी को निर्णायक विजय मिली. इस युद्ध ने मध्य और पूर्वी भारत पर ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित किया और मुगल साम्राज्य के पतन की शुरुआत की, जिससे भारत के उपनिवेशीकरण की शुरुआत हुई.
बक्सर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी मुकाबले अक्सर इसके ऐतिहासिक संघर्षों को दर्शाता है. बक्सर के विविध इतिहास के अनुरूप, एक सफल चुनाव रणनीतिकार के रूप में जाने वाले बक्सर निवासी प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी जन सुराज की स्थापना करके आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए बिगुल बजाया है. उनका उद्देश्य बिहार को पारंपरिक राजनीतिज्ञों से मुक्त करना है, जिन पर वे राजनीतिक लाभ के लिए समाज को जातिगत आधार पर विभाजित करने का आरोप लगाते हैं.
बक्सर दो प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों की जन्मस्थली भी है- शहनाई के महान उस्ताद दिवंगत उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और प्रसिद्ध भोजपुरी कवि हरिहर सिंह, जिन्होंने 1969 में लगभग चार महीनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की थी.
गंगा नदी के तट पर स्थित, बक्सर अपनी सीमाएं उत्तर प्रदेश के बलिया और गाजीपुर जिलों के साथ साझा करता है. यह बक्सर लोकसभा क्षेत्र के तहत छह विधानसभा खंडों में से एक है और इसमें बक्सर और चौसा विकास खंड शामिल हैं.
बक्सर विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और इसने 17 चुनाव देखे हैं. जबकि कांग्रेस ने इस सीट को 10 बार जीता है, जिसमें 2015 और 2020 के अंतिम दो चुनाव शामिल हैं, इसे कांग्रेस का गढ़ कहना गलत होगा. यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि पिछले सात चुनावों में, भाजपा ने इस सीट को तीन बार जीता और शेष चार अवसरों पर उपविजेता रही.
2024 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा राजद से 1,436 वोटों के छोटे अंतर से पीछे रही. 2015 में 10,181 वोटों से सीट हारने के बाद, भाजपा ने 2020 में अपने उम्मीदवार को बदल दिया, जिससे उसने हार के अंतर को काफी हद तक कम किया. इससे 2025 के विधानसभा चुनावों में एक तीखे मुकाबले की संभावना बनी है.
बता दें कि सीपीएम ने इस सीट को 1990 और 1995 में लगातार दो बार जीता, जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (1967) और बहुजन समाज पार्टी (2005) ने प्रत्येक ने एक बार जीत हासिल की.
बक्सर की साक्षरता दर 83.82 प्रतिशत है. हालांकि, एक चिंताजनक पहलू पुरुष और महिला साक्षरता दरों के बीच 11.24 प्रतिशत का बड़ा अंतर है. अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 14.38 प्रतिशत हैं, जबकि मुस्लिम 7.3 प्रतिशत हैं. ग्रामीण मतदाता 71.92 प्रतिशत हैं, जबकि केवल 28.08 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में रहते हैं.
2020 के विधानसभा चुनावों में, बक्सर निर्वाचन क्षेत्र में 2,89,997 मतदाता थे. कांग्रेस के उम्मीदवार संजय कुमार तिवारी, उर्फ मुन्ना तिवारी, ने भाजपा के परशुराम चौबे को 3,892 वोटों से हराया था. 2024 के लोकसभा चुनावों तक, मतदाता संख्या मामूली रूप से बढ़कर 2,89,589 हो गई थी. यह संख्या 2025 की मतदाता सूची के अंतिम रूप से तैयार होने पर चुनाव आयोग द्वारा थोड़ी बढ़ने की उम्मीद है.
बक्सर में एक और चुनावी मुकाबले के लिए मंच तैयार है, क्योंकि राजनीतिक दल इस ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से सक्रिय निर्वाचन क्षेत्र में जीत हासिल करने के लिए तैयार हैं.
(अजय झा)