बिहार के गोपालगंज जिले में स्थित बरौली एक सामान्य वर्ग की विधानसभा सीट है, जो गोपालगंज (अनुसूचित जाति) लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. इसमें बरौली और मांझा प्रखंड के साथ-साथ बैकुंठपुर प्रखंड के चुनिंदा ग्राम पंचायत शामिल हैं. बरौली को ‘नोटिफाइड एरिया’ यानी अधिसूचित क्षेत्र भी घोषित किया गया है, जो गांव से बड़ा लेकिन शहर का दर्जा प्राप्त न करने
वाला क्षेत्र होता है.
यह इलाका पश्चिमी गंगा के मैदानी भाग में स्थित है, जहां की उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी धान, गेहूं, मक्का और गन्ने जैसी फसलों की भरपूर खेती को संभव बनाती है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित है, लेकिन छोटे पैमाने का व्यापार और डेयरी व्यवसाय ग्रामीण आमदनी में सहायक भूमिका निभाते हैं. भूमिहीन और सीमांत किसानों में मौसमी प्रवास एक आम परिघटना है. पिछले कुछ वर्षों में बुनियादी ढांचे में सुधार देखा गया है. सड़क संपर्क बेहतर हुआ है और बिजली की पहुंच भी तेजी से बढ़ी है.
बरौली, जिला मुख्यालय गोपालगंज से लगभग 15 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है. मीरगंज उत्तर-पूर्व दिशा में है, जबकि सिवान यहां से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। राज्य की राजधानी पटना की दूरी यहां से लगभग 165 किलोमीटर है. सड़क मार्ग से यह क्षेत्र जुड़ा हुआ है, जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन गोपालगंज और मीरगंज में स्थित हैं.
बरौली विधानसभा क्षेत्र का गठन 1951 में हुआ था और तब से अब तक यहां 17 बार चुनाव हो चुके हैं. शुरुआती दशकों में इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने सात बार जीत दर्ज की. इस क्षेत्र से कांग्रेस के प्रमुख नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर चार बार विधायक बने-1950 के दशक में दो बार और फिर 1977 तथा 1980 में.
हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस क्षेत्र में मजबूती से अपनी पकड़ बनाई है. 2000 से लेकर अब तक हुए छह में से पांच चुनाव भाजपा ने जीते हैं. 2015 में इस सिलसिले में एकमात्र व्यवधान आया, जब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मोहम्मद नेमतुल्लाह ने भाजपा के रामप्रवेश राय को केवल 504 मतों के अंतर से हराया था. यह तब हुआ जब जनता दल (यूनाइटेड) ने एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था.
कांग्रेस और भाजपा के अलावा, इस सीट पर दो बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने, जबकि एक-एक बार भाकपा, जनता दल और राजद ने भी जीत दर्ज की है.
2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के रामप्रवेश राय ने राजद के रियाजुल हक उर्फ राजू को 14,155 मतों के अंतर से हराकर सीट दोबारा हासिल की. राय को 81,956 मत (46.55%) मिले, जबकि राजू को 67,801 मत (38.51%) प्राप्त हुए। मतदान प्रतिशत 58.89% रहा.
2020 में बरौली में कुल 3,00,044 पंजीकृत मतदाता थे. इनमें अनुसूचित जाति के मतदाता 36,665 (12.22%), अनुसूचित जनजाति के 3,120 (1.04%) और मुस्लिम मतदाता लगभग 44,218 (14.73%) थे. 2024 के आम चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 3,14,892 हो गई. चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 की मतदाता सूची में शामिल 4,018 मतदाता 2024 तक इस क्षेत्र से पलायन कर चुके थे.
2024 के लोकसभा चुनाव में बरौली विधानसभा क्षेत्र से जदयू के डॉ. आलोक कुमार सुमन ने राजद के सुरेंद्र राम पर 28,763 मतों की बढ़त बनाई. यह लगातार चौथा संसदीय चुनाव रहा जब इस क्षेत्र में एनडीए ने बढ़त बनाई, चाहे सीट पर भाजपा लड़ी हो या जदयू.
2015 में जदयू-राजद गठबंधन के चलते एनडीए को अस्थायी झटका जरूर लगा, लेकिन उसके बाद से बरौली पर गठबंधन ने मजबूत पकड़ बनाए रखी है. यह खास इसलिए भी है क्योंकि बरौली, राजद के संस्थापक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के गृह जिले गोपालगंज में स्थित है. बावजूद इसके, यहां एनडीए उम्मीदवारों को बार-बार जीत मिलना गठबंधन की पकड़ को दर्शाता है.
हालांकि, मतदान प्रतिशत लगातार 60% से नीचे रहना यह संकेत देता है कि यहां और अधिक मतदाता जागरूकता और भागीदारी की संभावनाएं मौजूद हैं. इसी के साथ, राजनीतिक दलों के लिए यह याद रखना भी जरूरी है कि स्थायी बढ़त के बावजूद आत्मसंतुष्टि घातक हो सकती है.
(अजय झा)