बिहार के भोजपुर जिले में स्थित तरारी विधानसभा क्षेत्र आरा लोकसभा सीट का हिस्सा है. यह दक्षिण बिहार में स्थित है और जिला मुख्यालय आरा से लगभग 54 किलोमीटर दक्षिण तथा बक्सर से 60 किलोमीटर पश्चिम में पड़ता है. उत्तर प्रदेश का बलिया शहर इससे लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि बिक्रमगंज और दाउदनगर जैसे अन्य प्रमुख कस्बे भी समीप स्थित हैं. राज्य की
राजधानी पटना यहां से करीब 90 किलोमीटर दूर है.
इस क्षेत्र में पीरो नगर पंचायत और पीरो उपमंडल के सात ग्राम पंचायत आते हैं. तरारी और सहार प्रखंड इस विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं. निकटवर्ती सोन नदी के कारण यहां की उपजाऊ समतल भूमि परंपरागत रूप से कृषि आधारित जीवनशैली का पोषण करती रही है.
तरारी की स्वतंत्र राजनीतिक पहचान की जड़ें प्राचीन मगध साम्राज्य और यहां पर शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों तक जाती हैं. इस क्षेत्र की राजनीतिक संघर्ष गाथा भी उतनी ही पुरानी है. 1951 में तरारी-पीरो विधानसभा क्षेत्र के रूप में इस सीट की स्थापना हुई थी, जिसे 1957 में पीरो नाम दिया गया. लेकिन 2008 में निर्वाचन आयोग द्वारा की गई परिसीमन प्रक्रिया के बाद, इस सीट को पुनः तरारी के नाम से 2010 में पुनर्स्थापित किया गया.
तरारी का चुनावी इतिहास छोटा जरूर है लेकिन अत्यंत रोचक रहा है. 2010 में जनता दल (यूनाइटेड) के नरेंद्र कुमार पांडे ने राजद के आबिद रिजवी को 14,320 मतों से हराकर जीत दर्ज की. 2015 के चुनावों में सीपीआई(एमएल)(लिबरेशन) के सुदामा प्रसाद ने लोजपा की गीता पांडे को मात्र 272 मतों से हराया. यह मुकाबला त्रिकोणीय था जिसमें कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह को 26.77% वोट मिले, जबकि विजेता और उपविजेता के बीच वोट प्रतिशत क्रमशः 28.79% और 28.62% रहा.
2020 में, सुदामा प्रसाद ने तब 11,015 मतों से जीत हासिल की जब उनकी पार्टी ने राजद-नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस ने सीट साझा करने के तहत यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा. उस चुनाव में निर्दलीय नरेंद्र कुमार पांडे दूसरे स्थान पर रहे, जबकि भाजपा के कौशल कुमार विद्याथरी को मात्र 8.1% वोट मिले.
सीपीआई(एमएल)(लि) की तरारी में मजबूत पकड़ इस क्षेत्र के अतीत से जुड़ी है. यह पार्टी नक्सल आंदोलन से निकली है, जिसने 1970 और 80 के दशक में भोजपुर की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया. उस समय नक्सल कार्यकर्ताओं और सवर्ण जमींदारों के बीच हिंसक संघर्ष आम थे. आज भले ही सशस्त्र आंदोलन खत्म हो चुका हो, लेकिन नक्सल विचारधारा से जुड़े नेता अभी भी क्षेत्रीय राजनीति में प्रभावशाली हैं.
तरारी की जनता ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया जब सुदामा प्रसाद 2024 में आरा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए, जिससे उसी वर्ष तरारी में उपचुनाव कराने की नौबत आई. भाजपा ने इस बार रणनीति में बदलाव करते हुए कौशल कुमार विद्याथरी की जगह युवा नेता विशाल प्रशांत को उम्मीदवार बनाया, और यह दांव सफल रहा. विशाल प्रशांत ने सीपीआई(एमएल)(लि) के उम्मीदवार राजू यादव को 10,612 मतों से हराकर जीत दर्ज की. इससे पहले लोकसभा चुनावों में सीपीआई(एमएल)(लि) भाजपा से महज 5,773 वोटों से आगे रही थी.
2020 के विधानसभा चुनाव में तरारी में कुल 3,05,326 पंजीकृत मतदाता थे. इनमें लगभग 18.32% अनुसूचित जाति और 10.6% मुस्लिम मतदाता थे. यहां केवल 8.25% मतदाता शहरी हैं, जिससे यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण बना हुआ है. 2020 में मतदान प्रतिशत 55.81% रहा था.
2025 के विधानसभा चुनावों में तरारी में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है. एक ओर भाजपा-नीत एनडीए है, जिसने 2024 के बिहार उपचुनावों (जिसमें तरारी भी शामिल था) में शानदार प्रदर्शन किया, तो दूसरी ओर राजद-सीपीआई(एमएल)(लि) गठबंधन है जो इस सीट को फिर से हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगाएगा. संवेदनशील इतिहास वाले इस क्षेत्र में शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की भूमिका अहम होगी.
(अजय झा)