scorecardresearch
 

नृत्य, शिल्प और पेंटिंग... दिल्ली की सुंदर नर्सरी में खिले लोक कला के 'फूल', जनजातीय संस्कृतियों का हुआ संगम

दिल्ली के सुंदर नर्सरी में SPIC MACAY द्वारा आयोजित लोक और जनजातीय कला एवं शिल्प महोत्सव में देशभर के कलाकारों ने मधुबनी, वारली, गोंड, टेराकोटा सहित विभिन्न पारंपरिक कलाओं का प्रदर्शन किया. तीन दिन चले इस आयोजन में वर्कशॉप, प्रदर्शनी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां शामिल थीं, जिनमें लोक संगीत और नृत्य भी प्रस्तुत किए गए.

Advertisement
X
सुंदर नर्सरी में अनंत उत्सव के मौके पर SPIC MACAY के मंच से छऊ नृत्य की प्रस्तुति देते कलाकार
सुंदर नर्सरी में अनंत उत्सव के मौके पर SPIC MACAY के मंच से छऊ नृत्य की प्रस्तुति देते कलाकार

बीता हफ्ता राजधानी दिल्ली के लिए सांस्कृतिक सुंदरता की विविध गतिविधयों से भरा-पूरा रहा. पेंटिंग प्रदर्शनी, संगीत उत्सव, साहित्यिक गतिविधियों की अलग-अलग बिखरी रंगत ने दिल्ली की धुंध भरी सुबहों को गुलजार किया और यही रंगत जब सुंदर नर्सरी के हरे-भरे मैदान में बिखरी तो गुलाबी ठंड की यह सुबहें और खिल उठीं.

सुंदर नर्सरी में खास आयोजन

सुंदर नर्सरी में रविवार की सर्द और हल्की धुंध भरी सुबह के बावजूद कला प्रेमियों की चहलकदमी रही. धीमी और हल्की-फुल्की जनजातीय लोक-संगीत की धुनों ने माहौल को संगीतमय बना दिया. लोग उत्साह के साथ उस शिल्पग्राम की ओर बढ़ रहे थे, जहां SPIC MACAY की ओर से आयोजित लोक और जनजातीय कला एवं शिल्प महोत्सव का छटा बिखरी थी.

SPIC MACAY
भील पेंटिंग कला की कलाकार गंगूबाई

प्रदर्शनी, वर्कशॉप और सांस्कृतिक संध्या

महोत्सव दो हिस्सों में संपन्न हुआ. दिन में इंटरैक्टिव प्रदर्शनी और वर्कशॉप, और शाम में लोक संगीत एवं नृत्य प्रस्तुतियां. दिन के सत्र में देशभर के पुरस्कार-प्राप्त कलाकारों ने 'मधुबनी, वारली, गोंड, भील, सिकी घास शिल्प, टेराकोटा, बांस शिल्प, कैलियोग्राफी और नक्काशी' जैसी पारंपरिक कलाओं का प्रदर्शन किया. इस दौरान अपनी-अपनी रुचि के अनुसार लोगों ने कलाकारों की इस कला की बारीकियां सीखीं और उनके सामने कुछ बनाकर देखने की कोशिश भी की.

Advertisement
SPIC MACAY
वारली पेंटिंग

वर्कशॉप में हर हाथ ने सीखा हुनर

भले ही उन्होंने पहली बार किसी कला को परखने के लिए हाथ आजमाएं हों, लेकिन उन आढ़ी-टेढ़ी खिंची लकीरों ने ये बता दिया कि सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने का एक ही तरीका है कि उन्हें साझी विरासत बनाया जाए और साझी विरासत बनाए रखने का एक ही तरीका है सीखना और सिखाना. कला को ट्रांसफर करने का यही एक तरीका है जो कला जो जिंदा और जीवंत रख सकता है.

इस वर्कशॉप की कई सुंदर बातों में से एक बात यह रही कि अभिभावक न सिर्फ अपने बच्चों को लेकर आए थे, बल्कि उन्होंने जब देखा कि वह भी इसमें हिस्सा ले सकते हैं तो उन्होंने भी झट से कूची उठा ली और रंगों में भिगोते हुए कैनवस पर अपनी भावनाएं उड़ेल दें.

SPIC MACAY
सीकी घास से बनीं चूड़ियां-कंगन

भारत की कला परंपरा से परिचित हुए दर्शक

भावनाओं को सजीव करने के यहां कई तरीके थे. वारली पेंटिंग, गोंड चित्रकला, भील और मधुबनी पेंटिंग. अपनी दस वर्षीय बेटी के साथ शामिल हुईं अनन्या कहती हैं कि ऐसे उत्सव छुट्टियों का सदुपयोग होते हैं, कुछ नया सिखाते हैं और अपने ही शहर में रहकर भारत दर्शन भी करा देते हैं. वह कहती हैं (वारली और मिथिला पेंटिंग) कि जिस तरह की पेंटिंग पर देश-दुनिया में इतने बड़े लेवल पर काम हो रहा है, मुझे खुशी होती है कि यह बचपन में हमारी परंपराओं का हिस्सा रही हैं. आंगन में अल्पना बनाना, किसी खास मौके पर आढ़े-टेढ़े लकीरों वाले चौक बनाना, लेकिन समय के साथ इनसे नाता छूट गया है.

Advertisement
SPIC MACAY
टेराकोटा का प्रदर्शन करते मनोज कुमार

घास शिल्प, टेराकोटा का रहा खास आकर्षण

इसी तरह शिल्प ग्राम में विशेष प्रकार की घास से बनी टोकरियां, डलियां, टेबल लैंप, लड़ियां, वंदनवार आदि आकर्षण का केंद्र रहे. टेराकोटा को लेकर यहां आयोजन में शामिल हुए मनोज कुमार के स्टॉल पर लोगों में खास दिलचस्पी थी. मिट्टी के टेराकोटा कला में बने फाउंटेन, पेन स्टेंड, मिट्टी की सीटियां जिसमें पानी भरने पर अलग-अलग आवाज में बदल जाती हैं. इस स्टॉल पर मौजूद देवेश बताते हैं कि टेराकोटा शिल्प का काम मेहनत और कौशल से भरपूर होता है.

SPIC MACAY
ओट्टंथुल्लल नृत्य कला

खास बात है कि एक-एक शिल्प बनाने की एक लंबी और धैर्य से भरी प्रक्रिया है. इस कला का कौशल बल्क में नहीं हो सकता है. हर एक अदद शिल्प अपने निखार के लिए अपना वक्त लेता है. उन्होंने बताया कि पकाने के तरीकों में ही बदलाव करके वह अलग-अलग रंग के आइटम बनाते हैं. वह कहते हैं कि जब खरीदने वाले उनके किसी शिल्प को सराहते हैं और फिर खरीद लेते हैं तो वह खुद वास्तविक तौर पर पुरस्कृत समझते हैं.

21 से 23 नवंबर तक चले इस आयोजन को SPIC MACAY ने 'आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर' के सहयोग से आयोजित किया. फेस्टिवल का उद्देश्य देश के विभिन्न हिस्सों की लोक और जनजातीय परंपराओं को मंच देना और युवा पीढ़ी को उनसे जोड़ना था. SPIC MACAY की पूर्व उपाध्यक्ष और फेस्टिवल की संयोजक 'सुमन' ने कहा कि संस्था का लक्ष्य जमीनी स्तर के कलाकारों को बढ़ावा देना है. शाम ढलते ही अम्फीथियेटर दर्शकों से भर गया. मंच पर 'तेलंगाना का घुस्सादी नृत्य', 'मेघालय के कलाकारों द्वारा वांगला प्रदर्शन' और अंत में वारसी ब्रदर्स की कव्वाली की प्रस्तुति हुई. सभी कलाकारों ने अलग-अलग शैलियों में ऊर्जा से भरपूर प्रस्तुतियां दीं.

Advertisement

SPIC मैके द्वारा आयोजित दिनभर चलने वाली वर्कशॉप

सिक्की घास शिल्प – रुबी देवी (बिहार)

पेपरमेशी – अनुभा कर्ण (बिहार)

सुलेख – मुश्ताक अहमद (दिल्ली)

वुड कार्विंग कॉलिग्राफी – मोहम्मद अमीन फारूकी (दिल्ली)

मधुबनी पेंटिंग – मनोज़ के. चौधरी (बिहार)

टेराकोटा – मनोज़ कुमार (दिल्ली)

भील पेंटिंग – गंगू बाई (मध्य प्रदेश)

गोंड पेंटिंग – सम्भव श्याम (मध्य प्रदेश)

वारली पेंटिंग – चंद्रकांत महाला (दादरा एवं नगर हवेली)

बांस शिल्प – सुब्रत चक्रवर्ती (त्रिपुरा)

तीन दिनों की मुख्य प्रस्तुतियां और कलाकार

मंगल इसै नादस्वरम – एस. कंदस्वामी एवं दल (तमिलनाडु)

पुरुलिया छऊ – तारापदा राजक (पश्चिम बंगाल)

सरायकेला छऊ – विश्वनाथ कुम्भकार (झारखंड)

ओट्टंथुल्लल – कलामंडलम मोहनकृष्णन एवं दल (केरल)

 

बाउल संगीत – लक्ष्मण दास एवं दल (पश्चिम बंगाल)

होजागिरी – देबाशीष रियांग एवं दल (त्रिपुरा)

थौगल जगोई – डॉ. न्गानबी चानू एवं दल (मणिपुर)

 

घुस्सड़ी नृत्य – कनका सुदर्शन एवं दल (तेलंगाना)

वांगला नृत्य – मेघालय मंडली

समापन कव्वाली – वारसी ब्रदर्स (रामपुर, उत्तर प्रदेश)

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement