चिट्ठियां 'तीन ताल' की रिवायत का एक अहम हिस्सा है. इस हफ्ते आए सीजन-2 के 107वें एपिसोड में एक दुर्लभ घटना घटी. तीन तालियों की चिट्ठियां पढ़ते हुए एक वर्ल्ड रिकॉर्ड के बारे में पता चला जिसे 'तीन तालियों' ने कायम किया है. व्हाट्सएप ने भी अपने ऐप पर 'ग्रुप वॉइस चैट' का फीचर डालते वक्त सोचा होगा कि कोई इस पर कितनी ही देर बात करेगा. एक परिवार के लोग कितनी बातें करेंगे. 10 मिनट, 20 मिनट, आधा-एक घंटा. लेकिन जब यह समय 63 घंटे की सीमा को भी पार कर दे तो व्हाट्सएप को भी संदेह होगा. संदेह हुआ ही होगा क्योंकि तीन तालियों की यह कॉल 63 घंटे 5 मिनट चली.
श्रीराम सेंटर की ओर जारी शीला भरत राम थिएटर फेस्टिवल के दौरान शुक्रवार को दर्शक 'सुल्ताना डाकू' की कहानी से रूबरू हुए, जिसे नौटंकी शैली में पद्मश्री पंडित राम दयाल शर्मा ने लिखा था और वही इसके निर्देशक भी हैं. बीते लगभग कई दशकों से 'सुल्ताना डाकू' की कहानी को अलग-अलग कलाकारों ने अपने-अपने तरीकों से पेश किया है.
राम दरबार में मध्य में प्रतिष्ठित भगवान श्रीराम की प्रतिमा दिव्यता, संयम और मर्यादा की पराकाष्ठा को दर्शाती है. उनका परिधान अत्यंत पारंपरिक, समृद्ध और प्रतीकात्मक है. इसमें काशी का प्रसिद्ध रेशमी सिल्क वस्त्र प्रयुक्त हुआ है. इस परिधान में बंधेज (बांधनी) की हल्की डाई की बारीक छपाई है.
भगवान राम के बाल स्वरूप में तो उनका मासूम और सौम्य रूप दिखता है, लेकिन राम दरबार में उनका एक भव्य और राजसी रूप प्रस्तुत किया जाएगा. इस रूप में भगवान राम राजा के रूप में प्रतिष्ठित होंगे, जिनकी पोशाक में रॉयल एलिमेंट्स जैसे मुकुट, कमरबंध, सोने-चांदी की कढ़ाई, रत्नजड़ित वस्त्र आदि शामिल होंगे.
आम आदमी और आम को एक पायदान पर ला खड़ा करती हैं दोनों के बीच कुछ समानताएं. एक समानता तो यही है कि जैसे एक आदमी में दस-बीस आदमी होते हैं वैसे ही एक आम कई-कई नामों से पुकारा जा सकता है. अब सफेदा को ही ले लीजिए. रंग है पीला, इसका गूदा केसरिया, स्वाद ऐसा मीठा जैसे चाशनी या शहद लेकिन नाम है सफेदा. 'यथा नाम ततो गुणः' वाली भीड़ में बिल्कुल विरोधाभासी.
ये लो, फिर निकल गई बात इधर से उधर. क्या बताएं, आम की बात पर बने भी रहना है और दिल उछल-उछल कर कविता, शायरी, गजल-नज्म पर पहुंच जा रहा है. ये आम भी तो अजीब हैं. हर जगह तो इनकी मौजूदगी है. 3 महीने के लिए आते हैं और बस छा जाते हैं. भीतर आम-बाहर में आम.
इस अद्भुत कृति का नाम राघवयादवीयम है. इसे लिखने वाले महान प्राचीन कवि श्रीवेंकटाध्वरि हैं. अपनी इस रचना में कवि ने श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों के ही जीवन चरित्र का अद्भुत वर्णन किया है. श्रीवेंकटाध्वरि का जन्म कांचीपुरम के एक गांव अरसनीपलै में हुआ था.
खैर, आगरे में पैदा हुए और जमाई बनकर दिल्ली पहुंचे मिर्जा नौशा जितने शराब के शौकीन थे, आम के भी उतने ही शैदायी थे. उनकी जिंदगी में आम के इतने किस्से हैं कि क्या कहा जाए. एक खास किस्सा तो उनका आखिरी मुगल सरताज बहादुर शाह जफर के साथ का ही है.
आम ने ऐसे-ऐसों के ऐसे -ऐसे काम बनाए हैं कि आम नाम होने के बावजूद वो खास बन गया. लेखक सोपान जोशी तो अपनी किताब मैग्नीफेरा इंडिका में लिखते हैं कि आम के लिए दीवानगी तो ऐसी है कि बड़े-बड़े भी इसके चाव से बचाव नहीं कर पाते. वह लिखते हैं आम महज एक फल नहीं, जुनून है.
आम बस एक फल नहीं है, एक भावना है, एक परंपरा है, एक पहचान है. इस फल के साथ अमीरी-गरीबी का कोई कायदा नहीं है. बाहर निकलिए तो फुटपाथ पर लू के थपेड़े के बीच फटे गालों और चरपराए होंठ और बहती नाक वाले बच्चों के मुंह भी अमरस से सने दिख जाएंगे और आम पर पूरा 'ग्रंथ' रच देने वाले सोपान जोशी तो लिखते हैं कि ये फल अमीरी दिखाने का भी जरिया बन जाता है.
सादा जीवन और उच्च विचार वाली भारतीय परंपरा में सत्तू आसान भोजन के साथ सात्विक भोजन का भी प्रतीक है. वनवास के दौरान सत्तू पांडवों के भी जीवन का आधार बना था. जब वह घरों से अनाज की भिक्षा मांगकर लाते थे तो माता कुंती सभी अनाज को पीसकर उससे सत्तू तैयार कर देती थीं.
पौराणिक कथाओं से निकलकर इतिहास गाथाओं में पहुंचते हैं तो वहां गुप्तचर ज्यादा सक्रिय और अधिक प्रशिक्षित नजर आते हैं, बल्कि 'मोहिनी' की तरह महिलाएं भी साफ तौर पर गुप्तचर विधा का हिस्सा बनती दिखती हैं. हालांकि ये कल्पना है या सटीक इतिहास, लेकिन चंद्रगुप्त और चाणक्य के सैन्य अभियानों में गुप्तचर और विषकन्याओं का जिक्र मिलता है.
बेलूर और हेलिबिड में बने भव्य मंदिरों का निर्माण काल 12वीं-13वीं शताब्दी का है. इस प्रतिमा के 8 हाथ हैं. जिनमें दाहिनी ओर के चारों हाथ में तो विष्णु प्रतीक शंख-चक्र, गदा-पद्म हैं, लेकिन बाईं ओर के हाथों में अमृत कलश, वारुणि कलश, पुष्पमाला और स्फटिक हैं. देवी की प्रतिमा कुछ-कुछ नृत्य की मुद्रा में है, जो कि समुद्ग मंथन के बाद उसी कथा को बताने की कोशिश है, जिसमें मोहिनी ने असुरों से अमृत लेकर देवताओं को पिलाया था.
कोंदो जैसे मोटे अनाजों को प्राचीन काल से ऋषि अन्न की संज्ञा दी गई है. व्रत-उपवास और कठिन साधना करने वाले ऋषि-मुनि कोदों के भात को अपनी आहार परंपरा में शामिल करते आए हैं. असल में कोदों ऐसा अनाज है, जो कम वर्षा में भी उपज जाता है. हालांकि यह कभी भी कृषि की मुख्य धारा में शामिल नहीं रहा है और इसकी खेती को लेकर भी पहले खास प्रयास नहीं किए गए हैं.
चिनाब सिर्फ पानी का बहता सोता नहीं है, ये कोई पहाड़ों से बहकर आने वाला महज एक चश्मा भर नहीं है, इसे किसी आम दरिया की तरह समझने की भूल भी नहीं की जा सकती है, चिनाब खुद में एक औरत है, देवी है. किसी अल्हड़ किशोरी की तरह. जो इतनी चंचल है कि हर कहानी में किरदार बनकर शामिल हो जाती है और फिर कान लगाकर उनकी गुपचुप बातें सुन आती है.
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती इस आयोजन में योग की प्राचीन और शुद्ध विधियों को आसान तरीके से सिखाएंगे. उनके मार्गदर्शन में योग के जरिए अपने मन को शांत करना और जीवन को संतुलित करना सीखा जा सकता है. यह सत्र आंतरिक शांति और आध्यात्मिक जागृति के लिए एक सुनहरा मौका है.
पहलगाम हमले में आतंकियों ने दहशत का संदेश देने के लिए महिलाओं के सामने उनके पतियों की हत्या की थी और इस तरह से उनकी मांग सूनी कर दी थी. आज 15 दिन बाद, जब ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च हुआ तो ये समझिए कि इसका 'सिंदूर' नाम कितना सटीक है. यह उस सिंदूर का बदला है जो नई नवेली ब्याहताओं के माथे से पोंछ दिया गया था.
यह वही चिनाब है, जो भारत से निकलती है और पाकिस्तान को जाती है. कहते हैं न कि पंछी-नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके... लेकिन चिनाब का पानी सरहद पर रोकना पड़ा है. वजह है भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान. जो प्रेम की धारा बहाने वाली इस नदी से भी प्रेम में बहना नहीं सीख सका है, और सिर्फ नफरत व आतंक की पौध ही सींच रहा है.
दोनों मूर्तियां पद्मासन में स्थित हैं, जो ध्यान और ज्ञान का प्रतीक है. सिर के ऊपर छत्राकार संरचना, कंधों के दोनों ओर छोटी मूर्तियां, संभव है कि यह किसी गंधर्व या अप्सरा या यक्षी की प्रतिमाएं होंगी, या फिर उनके कोई विशेष गण, जिन्हें गणधर कहा जाता है. इसके बाद मूर्तियों के आधार पर निगाह डालिए.
शरभ, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अनोखा चरित्र है, जिसे भगवान शिव के क्रोधपूर्ण अवतार के रूप में जाना जाता है. यह आठ पैरों वाला, आंशिक रूप से शेर और आंशिक रूप से पक्षी का प्राणी है, जो शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है. शरभ की प्रतिमाएं और नक्काशियां प्राचीन भारतीय मंदिरों में पाई जाती हैं, जो इन मंदिरों की कलात्मक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं.
काव्य कृति की बात होती है तो केवल कवि सूरदास के प्रेम-श्रृंगार और भक्ति रस में डूबे काव्यों का वर्णन होता है. लेकिन सूरदास इससे कहीं अधिक सिद्ध हस्त थे. उन्होंने काव्य शैली में गुप्त सूचना और संकेतों में बात कहने की शैली की भी शुरुआत की थी. जिन्हें कूटपद (कोडवर्ड) कहते हैं.