भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की परंपरा में हाल ही में एक और मोती जड़ गया है. बीते दिनों नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में मौजूद स्टीन ऑडिटोरियम में 'ASAVARI' की ओर से आयोजित ‘Continuing Tradition 2025’ का आयोजन किया गया. यह उत्सव एक यादगार शाम के रूप में सामने आया. सर्द मौसम की ये शाम कथक की समृद्ध परंपरा, गुरु–शिष्य संबंध और संगीत विरासत को समर्पित रही. इस मौके पर पद्मश्री गुरु शोवना नारायण के कथक में पांच दशकों से अधिक के योगदान का उत्सव मनाया गया और उनकी जीवनी ‘I Am a Fleeting Moment in Time’ का लोकार्पण किया गया.
कार्यक्रम की शुरुआत महान संगीतकार 'पंडित ज्वाला प्रसाद' और 'पंडित माधो प्रसाद' को श्रद्धांजलि के साथ हुई. इन दोनों संगीतकारों की रचनाएं कथक की पहचान बन चुकी हैं और आज भी शास्त्रीय नृत्य की भाषा को दिशा देती हैं. गुरु शोवना नारायण की अनेक प्रसिद्ध कोरियोग्राफी में इन रचनाओं का विशेष स्थान रहा है. इस आयोजन ने यह स्पष्ट किया कि यह संगीत विरासत आज भी उतना ही जीवंत और प्रासंगिक है.

कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण गुरु शोवना नारायण की जीवनी ‘I Am a Fleeting Moment in Time’ का लोकार्पण रहा. इस पुस्तक को लेखिका माया पारिजात ने शब्द दिए हैं. किताब में शोवना नारायण के जीवन, उनकी कला यात्रा, संघर्ष, साधना और कथक के प्रति उनके नजरिये को सरल और संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत किया गया है. पुस्तक विमोचन के बाद आयोजित चर्चा में गुरु शोवना नारायण के अनुभवों और विचारों को जानने का अवसर मिला, जिसे दर्शकों ने बड़े ध्यान से सुना.
आयोजन के क्रम में गुरु शोवना नारायण के वरिष्ठ शिष्यों ने कथक प्रस्तुतियां दीं. इन प्रस्तुतियों में पंडित ज्वाला प्रसाद और पंडित माधो प्रसाद की चयनित रचनाओं को मंच पर उतारा गया. शिष्यों की प्रस्तुतियों में संयम, भाव-गंभीरता और गुरु–शिष्य परंपरा के प्रति निष्ठा साफ दिखाई दी. दर्शकों ने तालियों के साथ कलाकारों का उत्साहवर्धन किया. कार्यक्रम के अंत में गुरु शोवना नारायण ने दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह का स्नेह और एकाग्रता उनकी परंपराओं में विश्वास को और मजबूत करती है. उन्होंने अपने गुरुओं की स्मृति और शिष्यों की साधना को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया.

‘Continuing Tradition 2025’ एक सांस्कृतिक आयोजन था, बल्कि यह कथक की विरासत, स्मृति और निरंतरता का जीवंत उदाहरण भी बना. इस संध्या ने यह संदेश दिया कि भारतीय शास्त्रीय कलाएं तभी जीवित रहती हैं, जब परंपरा, गुरु और शिष्य एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं.