
भारतीय विवाहों में कुंअर कलेऊ एक महत्वपूर्ण परंपरा है जिसमें दूल्हे को कन्या पक्ष की महिलाओं द्वारा विशेष भोजन परोसा जाता है. यह रस्म दूल्हे की बुद्धि और तर्कशक्ति को परखने के लिए पहेलियों के माध्यम से भी होती है. मिथिला की लोककथाओं में राम-सीता के विवाह से जुड़ी इस परंपरा का वर्णन मिलता है, जहाँ दूल्हों से गूढ़ प्रश्न पूछे जाते हैं.

दिल्ली के सुंदर नर्सरी में SPIC MACAY द्वारा आयोजित लोक और जनजातीय कला एवं शिल्प महोत्सव में देशभर के कलाकारों ने मधुबनी, वारली, गोंड, टेराकोटा सहित विभिन्न पारंपरिक कलाओं का प्रदर्शन किया. तीन दिन चले इस आयोजन में वर्कशॉप, प्रदर्शनी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां शामिल थीं, जिनमें लोक संगीत और नृत्य भी प्रस्तुत किए गए.

कार्तिक मास की देव उठनी एकादशी भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है, जो आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. इस दौरान पेट की अग्नि तेज होती है और खान-पान में बदलाव आता है. पुराणों में इसे हरिहर मिलन उत्सव कहा गया है, जहां शिव और विष्णु का मिलन होता है.

देवोत्थान एकादशी, जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं. इस दिन उनकी पूजा और जागरण के लिए पारंपरिक मंत्रों के साथ-साथ लोक गीतों का भी विशेष महत्व है.

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली या इगास बग्वाल का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. यह पर्व देव प्रबोधिनी एकादशी से जुड़ा है, जब भगवान विष्णु जागते हैं और संसार का कार्यभार संभालते हैं. इस दिन पारंपरिक वाद्य जैसे ढोल और दमाऊं की धुन गूंजती है, घरों में अहिरसे और पूए बनाए जाते हैं, और लोग पारंपरिक वेश-भूषा में सज-धज कर दीप जलाते हैं.

मिथिलांचल में कार्तिक मास की द्वितीया से पूर्णिमा तक मनाया जाने वाला सामा-चिकेवा पर्व भाई-बहन के प्रेम और पारिवारिक बंधन को दर्शाता है। इस उत्सव में मिट्टी के पुतले बनाकर, गीत गाकर और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ इसे मनाया जाता है।
सामा-चिकेवा की कहानी श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री श्यामा और चकवाक्य के रूप में लोककथाओं में प्रचलित है. चुगला और चुगिला द्वारा श्यामा को बदनाम करने के बाद श्रीकृष्ण ने श्यामा को चिड़िया बनने का शाप दिया. श्यामा के भाई की तपस्या से देवताओं ने शाप वापस लिया और दोनों भाई-बहन को अमरता का वरदान मिला.
गोपाष्टमी कार्तिक मास की एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो श्रीकृष्ण की गोसेवा से जुड़ी है. यह पर्व ब्रज क्षेत्र की लोकपरंपरा का हिस्सा है और इसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जितना ही महत्व दिया जाता है. इस दिन गायों की पूजा की जाती है और उन्हें माता का दर्जा दिया जाता है.
मिथिला क्षेत्र में कार्तिक मास के दौरान मनाया जाने वाला सामा-चिकेवा त्योहार भाई-बहन के प्रेम और पारिवारिक संस्कृतियों का प्रतीक है. यह त्योहार प्रवासी पक्षियों के आगमन के साथ शुरू होता है और मिट्टी से बने पात्रों के माध्यम से लोकनाट्य की परंपरा को जीवित रखता है. सामा-चिकेवा की कहानी श्रीकृष्ण से जुड़ी पौराणिक कथाओं पर आधारित है.
बिहार कोकिला शारदा सिन्हा ने लोक साहित्य को जनमानस में लोकप्रिय बनाया और बिहार के प्रवासियों के दर्द को अपनी आवाज़ में समेटा. उनकी गायकी ने छठ व्रतियों को सांत्वना दी और उनकी यादें आज भी छठ घाटों पर गूंजती हैं.
गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रथमा को मनाया जाता है, जिसमें गोबर से पर्वताकार स्वरूप बनाए जाते हैं. यह पर्व श्रीकृष्ण की गिरधारी छवि से जुड़ा है, जो इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा करते हैं. विभिन्न क्षेत्रों में पूजा की विधि भिन्न है, जैसे मथुरा में गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाना.
गोवर्धन पूजा, दीपावली के बाद मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है, जिसकी जड़ें पौराणिक कथाओं और ग्रामीण परंपराओं में गहराई से जुड़ी हैं. यह पूजा श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र की वैदिक पूजा के विरोध में स्थापित की गई थी, जिसमें प्रकृति, पशुधन और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है.
कार्तिक अमावस्या को मनाई जाने वाली दीपावली की परंपरा श्रीराम की अयोध्या वापसी से जुड़ी है. लोककथाओं के अनुसार, 14 वर्षों के वनवास के बाद श्रीराम के लौटने पर अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था.
दीपावली की रात पूर्वी भारत में मां लक्ष्मी की बजाय मां काली की पूजा की जाती है, जिसे महानिशा पूजा कहा जाता है, यह पूजा निशीथ काल में होती है और तांत्रिक परंपरा से जुड़ी है, जो भय और अंधकार के विनाश तथा आत्ममुक्ति का प्रतीक है.
पश्चिम बंगाल में भूत चतुर्दशी दीपावली से भी प्राचीन त्योहार है, जो पूर्वजों को समर्पित है और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के लिए मनाया जाता है. इस दिन लोग घरों के बाहर डरावने चेहरे वाले पुतले लगाते हैं, चौदह दीपक जलाते हैं और चौदह प्रकार की पत्तेदार सब्जियां खाते हैं.
दिवाली के उत्सव में रंगोली सजावट की प्राचीन परंपरा और आधुनिक बदलावों का समावेश है. पारंपरिक फूलों और पत्तियों की जगह अब रंगीन पाउडर और प्लास्टिक फूलों का उपयोग बढ़ा है. रंगोली न केवल सजावट का हिस्सा है, बल्कि पूजा पद्धति और सांस्कृतिक प्रतीकों से जुड़ी एक कला है. इसका इतिहास कामसूत्र और नारद शिल्प शास्त्र तक जाता है, जो इसे धार्मिक और सामाजिक महत्व प्रदान करता है.
जयपुर में 28वें लोकरंग महोत्सव का आयोजन हुआ, जिसमें भारत के 25 राज्यों से लगभग 2500 कलाकार अपनी लोक कलाओं और परंपराओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. यह 11 दिनों तक चलने वाला कार्यक्रम लोक संस्कृति की विविधता और समृद्धि को दर्शाता है.
कर्नाटक और दक्षिण भारत की लोक परंपराओं में स्थानीय रक्षक देवताओं की पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है. फिल्म कांतारा ने पंजुरली और गुलिगा जैसे दैवों की कथाओं को लोकप्रिय बनाया है. भूत कोला उत्सव में कलाकार दैव की आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं और समुदाय के विवादों का समाधान करते हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में शरद पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली टेसू-झांझी परंपरा प्रेम, बलिदान और उत्सव की जीवंत लोककथा प्रस्तुत करती है. किशोर उम्र के लड़के-लड़कियों का ये खेल परंपरा का उत्सव है.