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संदेह, शक्ति और आस्था... इंडिया हैबिटेट सेंटर में नाटक 'डाउट' का मंचन, दर्शकों ने की सराहना

यह नाटक संदेह, शक्ति और आस्था जैसे गहरे विषयों को छूता है. आज के समय में, जब दुनिया में अविश्वास और झगड़े बढ़ रहे हैं, यह नाटक बहुत प्रासंगिक लगता है. यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सच को पूरी तरह जान सकते हैं? 

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इंडिया हैबिटेट सेंटर में नाटक डाउट का मंचन
इंडिया हैबिटेट सेंटर में नाटक डाउट का मंचन

मशहूर लेखक जॉन पैट्रिक शैनली द्वारा रचित और  Pulitzer व Tony अवॉर्ड से सम्मानित नाटक "डाउट: ए पैरेबल" के मंचन ने दिल्ली की सांझ को एक वैचारिक संध्या में बदल दिया. बीते ,सप्ताह 4 और 5 सितंबर को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर के स्टीन ऑडिटोरियम में हुई इसकी प्रस्तुति को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला और उन्होंने इस नाटक के सम्मान में खड़े होकर तालियां बजाते हुए आभार जताया. 

इस नाटक को कात्यायनी ग्रुप और थ्री आर्ट्स क्लब ने मिलकर पेश किया. जिसमें अभिनेत्री और निर्देशक सोहेला कपूर का निर्देशन और अनुराधा दर की संकल्पना इसके निर्माण में नजर आई. नाटक में संजीव देसाई, कविता सेठ, आरती नायर और कृतिका भाटिया जैसे शानदार कलाकारों ने अभिनय किया और दर्शकों के सामने उनकी भाव अभिव्यक्ति बड़ी ही शानदार रही. ऑडिटोरियम में मौजूद हर उम्र के दर्शकों ने इस नाटक के कथानक का आनंद लिया. 

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1960 के दशक में पिरोया गया है नाटक
यह नाटक 1960 के दशक में पिरोया गया है, जिसकी पृष्ठभूमि में अमेरिका के एक कैथोलिक चर्च की कहानी है. यह वह दौर था, जब नागरिक अधिकार आंदोलन जारी था. कहानी में एक पादरी पर एक छोटे लड़के के साथ गलत व्यवहार का आरोप लगता है और एक सख्त नन उससे सवाल-जवाब करती है, लेकिन सच्चाई क्या है, यह दर्शकों को खुद तय करना होता है. यह नाटक संदेह, शक्ति और आस्था जैसे गहरे विषयों को छूता है. आज के समय में, जब दुनिया में अविश्वास और झगड़े बढ़ रहे हैं, यह नाटक बहुत प्रासंगिक लगता है. यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सच को पूरी तरह जान सकते हैं? 

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इस नाटक को शैनली के एजेंट्स CAA से विशेष अनुमति लेकर दिल्ली में केवल दो बार मंचन किया गया. सोहेला कपूर, जो एक अभिनेत्री भी हैं और रंगमंच से भी जुड़ी हुई है उन्होंने इसे बहुत खूबसूरती से निर्देशित किया. उन्होंने कहा, "मैंने पहले 'आनंद ही आनंद' के जरिए मंच पर स्टोरी टेलिंग की विधा को सामने रखा है. अब मैं रिश्तों में संदेह और अनिश्चितता को दिखाना चाहती थी. 'डाउट' एक ऐसा नाटक है जो समय और जगह की सीमाओं को तोड़ता है. यह 1960 के दशक की तरह आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है. यह हमें हमारी कमजोरियों को दिखाता है और सवाल उठाता है कि क्या हम सच को जानते हैं या सिर्फ वही मानते हैं जो हम चाहते हैं?"

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दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है नाटक
यह नाटक कात्यायनी और थ्री आर्ट्स क्लब के बीच एक खास साझेदारी का नतीजा था. थ्री आर्ट्स क्लब की स्थापना 1943 में शिमला में हुई थी और यह 82 साल से भारतीय रंगमंच में योगदान दे रहा है. 2008 में इसे फिर से शुरू किया गया और तब से यह सामाजिक और समावेशी नाटकों को पेश कर रहा है. कात्यायनी के साथ मिलकर इस ग्रुप ने दिल्ली में कई शानदार नाटक, नाटकीय पठन, कला प्रदर्शनियां और कार्यशालाएं आयोजित की हैं.

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"डाउट: ए पैरेबल" सिर्फ एक नाटक नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है. यह आज के समय में, जब लोग एक-दूसरे पर भरोसा कम कर रहे हैं, बहुत जरूरी है. सोहेला कपूर के निर्देशन ने इस नाटक को और भी खास बना दिया. दोनों दिन दर्शकों की खासी मौजूदगी रही. यह नाटक दिल्ली के रंगमंच प्रेमियों के लिए एक यादगार अनुभव रहा.

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