नाटक के मंचन की सबसे खास बात यह रही कि इस ऐतिहासिक नाटक को करीब तीन दशकों के बाद एक बार फिर से मंच पर जीवंत किया गया, जिसे उस दौर में त्रिपुरारी शर्मा ने निर्देशित किया था. त्रिपुरारी शर्मा भी भारतीय रंगमंच और हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण नाम रही हैं. इस प्रस्तुति में बतौर मूल प्रमुख कलाकार प्रतिमा कन्नन और रवि खानविलकर का होना दर्शकों के लिए सौगात जैसा रहा.
इस दास्तान में ऋग्वेद, उपनिषद, रामायण, सूर्य पुराण और महाभारत की पौराणिक कथाओं को मिस्र, रोम, चीन और जापान में सूर्य पूजा के ऐतिहासिक विवरणों के साथ जोड़ा गया है. मिस्र में, रा को सूर्य देवता के रूप में पूजा जाता था, जिन्हें अक्सर बाज के सिर के साथ उकेरा गया है.
'ताजमहल का टेंडर' हर दौर का एक बेहद सफल व्यंग्य नाटक है. इसमें आधार भले ही मुगल सल्तनत के सबसे मशहूर और शक्तिमान शख्सियत का जीवन और उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि को बनाया गया है, लेकिन उसकी समस्या आज की समस्या है. कहानी कुछ, ऐसी है कि बादशाह शाहजहां अपनी बेगम मुमताज के गुजर जाने के बाद उसकी याद में एक खूबसूरत इमारत बनवाना चाहते हैं, लेकिन उनका ख्वाब मुकम्मल नहीं हो पाता है.
मौका था, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रेपर्टरी कंपनी के समर थिएटर फेस्टिवल का, जिसके अंतर्गत, बुधवार को कालजयी नाटक अंधा युग का मंचन किया गया. प्रख्यात रंगनिर्देशक प्रो. राम गोपाल बजाज द्वारा निर्देशित यह काव्यात्मक और दार्शनिक नाटक महाभारत युद्ध के अंतिम दिन की घटनाओं को कहानी बनाकर सामने रखता है.
इस वर्ष का दूसरा खास आकर्षण है ताजमहल का टेंडर, जिसे अजय शुक्ला ने लिखा है और चित्तरंजन त्रिपाठी ने निर्देशित किया है. ताजमहल का टेंडर सर्वाधिक प्रसिद्ध नाटक है. इस बार इसके प्रदर्शन की खासियत यह है कि एक तो यह नाटक 25 वर्षों बाद लौट रहा है, जिसमें इसके मूल कलाकारों के महत्वपूर्ण सदस्य जैसे चित्तरंजन त्रिपाठी मंच पर होंगे और साथ ही टीवी एंकर के तौर पर मशहूर श्रीवर्धन त्रिवेदी भी अपनी प्रमुख भूमिकाओं को दोबारा निभाएंगे.
नाटक की शुरुआत प्रभाव डालती है. वह दर्शकों को अभ्यास कराती है कि आप प्ले देखने आए हैं तो सिर्फ मंच के भरोसी मत रहिए, पूरे सभागार में चारों तरफ नाटक है, चारों ओर मंच है. हर ओर दर्शक है और खुद दर्शक भी नाटक का सबसे अहम किरदार है. निर्देशक का ये अंदाज लोगों को पहली ही पंक्ति से नाटक से जोड़ देता है.
डॉ. एम सईद आलम का लिखा हुआ और उनके ही निर्देशन में सजा हुआ यह हास्य नाटक इतना समसामयिक है कि साल 1997 से शुरु हुआ इसके मंचन का सिलसिला आज तक मौजूं हैं. नाटक अपनी परिस्थितियों से ही हास्य पैदा करता है और ये परिस्थितियां वो होती हैं जिनसे खुद दर्शक भी रूबरू हो रहा होता है.
संझा, जो जंगल और औषधियों की दुनिया में रुचि रखती है, धीरे-धीरे बाहर की दुनिया को देखना चाहती है. वैद्य जी, सामाजिक दबाव में, उसका विवाह उस लड़के से कर देते हैं जो गांव के एक पुजारी का गोद लिया बेटा है. उसका अपना खुद का एक अतीत है. खैर, संझा और उसका पति दोनों एक-दूसरे के दर्द को समझते हैं और अपने बंधन को अनोखा बनाते हुए आगे बढ़ते हैं.
जब ईर्ष्या, विश्वासघात और आत्म-संदेह हावी होने लगते हैं, तो "स्टक" यह खोजता है कि क्या रिश्तों में पूरी ईमानदारी टिकाऊ है या रिश्ते में सर्वाइव करने के लिए झूठ भी जरूरी है. हास्य, संघर्ष और कच्ची उम्र की भावनाओं के जरिए से, नाटक नए जमाने के इस दौरा में रिश्तों में सच और छल के बीच नाजुक संतुलन की पड़ताल करता है.
श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की ओर से आयोजित चार दिवसीय शीला भरत राम नाट्य महोत्सव का आखिरी और चौथा दिन महान नाट्य कृति अग्नि और बरखा के नाम रहा. रविवार की शाम जो दर्शक सभागार में बैठे थे, लगभग तीन घंटे बाद जब वह बाहर निकले तो तमाम खामोशियों के बीच उनके पास कहने के लिए सिर्फ कुछ शब्द थे. बहुत खूबसूरत, Mind-blowing, क्या प्ले था, Amazing...
तुगलक नाटक में तुगलक को दुनिया बदलने की दीवानगी से ग्रसित एक ऐसे नायक/ प्रतिनायक के तौर पर प्रस्तुत किया गया है जो महज अपने स्वार्थ के लिए किसी भी बचकानी हरकत के प्रति कोई हिचक नहीं रखता. सुल्तान होने के नाते वह चाटुकारों और जीहुज़ूरी करने वालों से घिरा हुआ है. वह उसे भ्रमित करके रखे हुए हैं. वह असलियत से कोसों दूर अपने ही ख्वाब की मस्ती में है.
फेस्टिवल में गिरीश कर्नाड द्वारा लिखित ऐतिहासिक नाटक 'तुग़लक़' का मंचन किया जाएगा. इसका निर्देशन किया है जाने-माने रंग निर्देशक के. माडवाणे ने. ‘तुग़लक़’ मुहम्मद बिन तुग़लक़ की राजनीतिक और मानसिक द्वंद्व को बेहद सशक्त ढंग से प्रस्तुत करता है.
श्रीराम भारतीय कला केंद्र की ओर से आयोजित केंद्र डांस फेस्टिवल-2025 का गुरुवार को आखिरी दिन रहा. इस आखिरी दिन कमानी ऑडिटोरियम में 'नृत्य नाटिका कर्ण' की प्रस्तुति दी गई. मयूरभंज छऊ पर आधारित इस नृत्य नाटिका का सबसे प्रधान आकर्षण था कि इसमें जरूरी भाव गढ़ने के लिए सिर्फ पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ही संगीत दिया गया था.
प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण ने दुनिया के कई हिस्सों में अपनी अलग पहचान बनाई है. म्यांमार में इसे 'थिरी रामा', थाईलैंड में 'रमाकियेन' और इंडोनेशिया में 'काकविन रामायण' के नाम से जाना जाता है. यह भारतीय संस्कृति का विश्न में महज फैलाव भर नहीं है, बल्कि एक वैश्विक सांस्कृतिक पुनर्सृजन है. रूस से लेकर अमेरिका तक, रामायण ने विभिन्न मंचों पर नए रूप धारण किए हैं.
मशहूर शायर, गीतकार और नाटककार इरशाद खान सिकंदर का निधन हो गया है. 42 साल के इरशाद खान सिकंदर का इंतकाल दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुआ. उनके निधन की खबर से साहित्य और नाट्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई.