मुंबई का ट्रैफिक, भागती-दौड़ती जिंदगी और मौसम की अलग-अलग रंगत के बीच खिलता-सांस लेता जीवन. इसके साथ ही राजधानी दिल्ली का मिजाज और यहां की जीवन शैली... वंदना अपनी पेंटिंग ट्रे में इन्हीं अहसासों के साथ रंगों को घोल लेती हैं और कूची से कैनवस पर जो स्ट्रोक आते हैं, उनमें कहीं-कहीं छाये धुंधलके जीवन की ऐसी ही अनिश्चितता और अनजाने पन को बयां करते हैं.
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में प्रदर्शनी
सोचिए कि आपने अपने जीवन का एक अच्छा समय बिता लिया है. फिर एक दिन आप किसी आराम कुर्सी पर तफसील से बैठते हैं तो गुजरा जमाना किसी फिल्म की तरह सामने घूम जाता है. कुछ-कुछ धुंधली तो कुछ ज्यादा ही चमकदार हालत में. दोनों ही स्थितियों में धुंध तो बरकरार रहती ही है. बस यही धुंध, यही उधेड़बुन और यही अनजाना सा भूत-भविष्य वंदना कृष्णा की कलाकृतियों का विषय है, जो कैनवस पर रंगत बिखेर रहा है और आप इसका दीदार करना चाहें तो उनकी सोलो पेंटिंग एग्जिबशन के लिए इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में पहुंच जाएं. यहां दीवारों पर टंकी हुई उनकी कृतियां 'रिफ्लेक्शन्स' नाम से बहुत कुछ कहने के लिए आपका इंतजार कर रही हैं.

24 नवंबर को हुआ उद्घाटन
बीते 24 नवंबर को इसके उद्घाटन सत्र में प्रख्यात नृत्यांगना पद्मश्री गीता चंद्रन पहुंची थीं, जिन्होंने उनकी पेंटिंग्स को मौन अनुभूति बताया साथ ही इसके विषय की भी सराहना की. एनेक्सी आर्ट गैलरी, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर दिल्ली में यह पेंटिंग प्रदर्शनी सभी के लिए 30 नवंबर 2025 तक जारी रहेगी और यहां इसका दीदार करने के लिए कोई शुल्क नहीं है.
जीवन.. जो बन जाता है हमारा प्रतिबिंब
दिल्ली में पैदा हुई, मुंबई में निवास और पब्लिक सर्विस का दौर... वंदना कहती हैं कि 'मैं दिल्ली में पैदा हुई, महाराष्ट्र में नौकरी की और अब मुंबई में रहती हूं. इन सारे अनुभवों को देखते हुए एक शाम मुझे लगा कि जिंदगी खुद एक आईना है और तभी ऐसा लगा कि पूरा जीवन ही कहीं से कहीं को रिफ्लेक्ट करता है. यहीं से यह प्रदर्शनी जन्मीं.

क्यों खास है पेंटिंग और प्रदर्शनी
इसमें मुंबई शहर की झलक दिखाई गई है, बारिश में भीगी सड़कें, चमकती हुई इमारतों के शीशे, समंदर का किनारा सब कुछ. तस्वीरें न पूरी तरह वास्तविक हैं और न ही काल्पनिक. यह जिंदगी की तरह है. जैसे जीवन न ब्लैक होता है न वाइट, उसमें ग्रे शेड होता है, तस्वीरें वैसे ही हैं और उनमें बसा धुंधलापन ही हमारी सच्चाई है.
यह बीच का रास्ता है, जिसे बौद्ध और जैन परंपरा मध्यम मार्ग कहती है, कुछ वैसा ही है. मध्यम मार्ग और धुंधलके की खासियत ये होती है कि हर देखने वाला अपने अनुसार अपना अर्थ समझ सकता है. अपने अनुसार मंथन कर सकता है. उनकी पेंटिंग में रंग बहुत जीवंत हैं, मगर कहीं-कहीं बहुत शांत भी. बीते 18 साल से वे अपनी सर्विस के साथ-साथ पेंटिंग बनाती रही हैं. पेंटिंग उनके लिए ध्यान करने जैसा है, मन को शांति देता है.

कूची के स्ट्रोक्स में जीवन की पहेलियां
वे मानती हैं कि जिंदगी और शहर हमें हर पल कुछ नया दिखाते हैं, बस उसे देखने की नजर चाहिए. यही बात उनकी पेंटिंग में दिखती है. दिल्ली की जड़ें, महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में उनकी लंबी सेवा और आज मुंबई में बिताया जा रहा उनका जीवन. 'नई भाषाएं सीखने, नई संस्कृतियों के साथ कदम मिलाने और एक बिल्कुल अलग दुनिया में अपनी जगह खोजने वाले वे शुरुआती अनुभव ही थे, जिन्होंने उन्हें एक व्यक्ति और एक कलाकार दोनों के रूप में गढ़ा,' वह कहती हैं. 'मुंबई अपनी रफ्तार, ऊर्जा और विरोधाभासों के साथ मेरी प्रेरणा बन गई, आखिरकार यह एक ऐसा शहर है जो जीवन को गति में प्रतिबिंबित करता है.'

रिफ्लेक्शन्स” के जरिए वंदना मुंबई के बदलते रूप को कैद करती हैं. शीशे से ढकी ऊंची इमारतें, समुद्र-किनारे के दृश्य, बारिश में भीगी सड़कें, और वे परछाइयाँ जो अपने भीतर अराजकता और शांति, दोनों को समेटे हुए हैं. उनकी सेमी-ऐब्सट्रैक्ट शैली लोगों को सतह से आगे देखने को प्रेरित करती हैं, वह शहरी प्रतिबिंबों में छिपी कविता खोजने का, और गति के बीच मौजूद स्थिरता को महसूस करने का मौका देती हैं.