scorecardresearch
 

श्रीराम का कुंअर कलेऊ और विवाह की लोक परंपरा... जब थाली में पकवान ही नहीं पहेलियां भी परोसी जाती हैं

भारतीय विवाहों में कुंअर कलेऊ एक महत्वपूर्ण परंपरा है जिसमें दूल्हे को कन्या पक्ष की महिलाओं द्वारा विशेष भोजन परोसा जाता है. यह रस्म दूल्हे की बुद्धि और तर्कशक्ति को परखने के लिए पहेलियों के माध्यम से भी होती है. मिथिला की लोककथाओं में राम-सीता के विवाह से जुड़ी इस परंपरा का वर्णन मिलता है, जहाँ दूल्हों से गूढ़ प्रश्न पूछे जाते हैं.

Advertisement
X
भारतीय विवाह की लोक परंपरा में कुंअर कलेऊ एक खास रस्म है
भारतीय विवाह की लोक परंपरा में कुंअर कलेऊ एक खास रस्म है

अगहन का महीना समाप्ति की ओर है और लगन भी पुरजोर चढ़ी हुई है. जो-जो दिन शुभ तिथि के रखे जा रहे हैं, उन दिनों शादियों-बरातों की भरमार है. घर से दूल्हे निकल रहे हैं, बारात चढ़ रही है, मंगल गीत गाए जा रहे हैं. भारतीय विवाह परंपराओं में रीति रिवाज के बीच एक खास परंपरा रही है, कुंअर कलेऊ की. 

पहले जब बारातें लगभग तीन दिनों तक रुकती थीं तो इस तरह की तमाम परंपराओं के लिए खास समय मिल जाता था और सारे रीति रिवाज बड़े ही चुहलबाजी, प्रेम और उत्साह के साथ हंसी-खुशी संपन्न होते थे. आज की तरह उनमें निपटाने वाला भाव नहीं था और न ही परंपराओं का बोझ, बल्कि ये रिवाज तो वर और कन्या पक्ष को एक-दूसरे के करीब ले आते थे. उन्हें जानने-समझने का मौका देते थे. 

कुंअर कलेऊ के कितने नाम?
आज कुंअर कलेऊ फेरे के तुरंत बाद बारात विदा होने से ठीक पहले 10 मिनट में हो जाता है. कुंअर कलेऊ का मतलब है, दूल्हे को कन्या पक्ष की ओर से विशेष भोजन कराना. कन्या पक्ष की बड़ी-बूढ़ी, दादी, मौसी, काकी, बुआ, मामी, बड़ बहनें और सखियां सभी आकर दूल्हे को कुंअर कलेऊ में अपने हाथ से भोजन परोसती हैं और कौर भी खिलाती हैं. इसमें मिठाइयां-पकवान दही आदि शामिल होते हैं. राजस्थान में इसे कलेवा, यूपी के कुछ इलाकों में कुंअर कलेवा, जेवनार भी कहा जाता है. अवध में इसे खिचड़ी खबाई कहते हैं, तो बिहार की मिथिला परंपरा में भी इसे कुंअर कलेऊ कहा जाता है. 

Advertisement

कुंअर कलेऊ, सिर्फ दूल्हे को नाश्ता या भोजन कराने की रस्म नहीं होती थी. बल्कि यह दूल्हे के व्यावहारिक बुद्धि और तर्कशक्ति को समझने का भी समय होता है. कन्या पक्ष कुछ पहेलियों और प्रश्नों के जरिए ये परखता था कि दूल्हा तर्क शक्ति में कितना अच्छा है. 

... जब श्रीराम से पूछे गए तर्कबुद्धि के प्रश्न
मिथिला की विवाह परंपरा राम-सीता की विवाह से ही निकलती है, लिहाजा वहां की वैवाहिक लोक कथाओं में इनके ही विवाह का वर्णन अधिक है और कथाओं के कथानक भी इन्हीं दोनों के इर्द गिर्द हैं. एक लोककथा में उन प्रश्नों का भी वर्णन है, जो श्रीराम और चारों भाइयों से उनके कुंअर कलेऊ के दौरान राजा जनक की रानियों और मिथिला की बड़ी-बूढ़ियों ने किए थे.

Shri Ram Kuar Kaleu

कथा कुछ ऐसी है कि, चारों भाई विवाह के फेरे और अन्य रस्मों के बाद आज कु्ंअर कलेऊ पर बैठे हैं. जेवनार परोसे जाने को रखे हैं. थालियां सज गईं हैं, लेकिन तभी चुहलबाजी और हंसी-मजाक के बीच एक बूढ़ी माई प्रश्न करती हैं. वह कहती हैं...
“बाप के नाम से पूत के नाम 
  नाती के नाम कछु और,
  ई बुझौवल बूझ के 
  तब दुलहा उठावें कौर।।”

अब सामने थाली परोसी जा चुकी है, लेकिन कौरा उठाने पर टोक लग गई है. राम हाथ बढ़ाते हैं पर माई का प्रश्न सुनकर वहीं के वहीं जड़वत हो जाते हैं. प्रश्न आया है तो उत्तर देना ही होगा. प्रश्न भी ऐसा जो देखने में सीधा सा लगे, लेकिन इसके मर्म में लोक और वेद का गहरा रहस्य छिपा हो. देखते हैं कि दूल्हा महाराज ये बुझौवल बूझ पाते हैं कि नहीं. 

Advertisement

लक्ष्मणजी ने दिया उत्तर
तो अब चारों दूल्हा रुके हुए हैं. इशारों से ही एक-दूसरे को देख रहे हैं. श्रीराम जो एक मंद मुस्कान के साथ हमेशा मौन ही रहते हैं, उनकी हर तरह की आवाज लक्ष्मण हैं. उन्होंने पलकें गिराकर लक्ष्मण को संकेत कर दिया कि वह उत्तर जानता हो तो मेरी ओर से दे दे. लक्ष्मण ने चहकते हुए कहा- माई ये तो आसान सी बात है, भैया से क्यों पूछती हो, मैं ही बता देता हूं.  इस पहेली का उत्तर हुआ महुआ (महुआ का संस्कृत तत्सम में मधूक कहते हैं)

माई पूछती हैं, कैसे लाला- स्पष्ट करो. तब लक्ष्मण कहते हैं, आपने कहा- बाप के नाम से पूत के नाम... यानी पिता-पुत्र के नाम एक ही हैं. तो महुआ का पेड़ महुआ नाम से जाना जाता है और उसका फूल भी (यानी पुत्र) भी महुआ ही कहलाता है. तो पिता-पुत्र के नाम एक ही हुए. अब अगली पंक्ति में आपने कहा- नाती के नाम कछु और... महुआ के फूल सूखकर जो फल झरते हैं उन्हें कलींदी कहते हैं. यानी नाती का नाम कुछ और हुआ. इस तरह पिता-पुत्र (महुआ का पेड़ और महुआ फूल) के नाम एक हैं, लेकिन नाम कलींदी है. 

श्रीराम से पूछे गए सवाल
लक्ष्मण जी के उत्तर ने सभा को संतुष्ट कर दिया, लेकिन जेवनार उठाने की रोक अब भी लगी हुई है. यह तो तर्क परीक्षण लक्ष्मण जी का हुआ. श्रीराम की परमबुद्धि किसने जानी? आखिर उनका विवाह सीता के साथ हुआ है तो यहां उनके मौनभर से काम नहीं चलेगा. उन्हें खुद भी उत्तर तो देना ही होगा. अब ये मोर्चा संभाला एक दूसरी ही माई ने. सीता की अंतरंग सखी की माता और महारानी सुनयना की सहेली. 

Advertisement

अब वे पूछती हैं, लाला ये बताओ-

'तीस चरण महि चलत नहीं, 
   श्रवण-नयन छत्तीस,
   सो तुम्हरी रक्षा करें 
  नौ मुख देहिं असीस॥'

भाव ऐसा है कि- उनके तीस चरण हैं, पर धरती पर नहीं चलते हैं. कान और आंखें उनकी छत्तीस हैं. वही तुम्हारी रक्षा करें और नौ मुखों से खूब आशीर्वाद दें.

अब ये पहले से तय है कि उत्तर श्रीराम को ही देना है, इसलिए बाकी भाई चाहकर भी कुछ हलचल नहीं कर रहे हैं. श्रीराम ने भी सिर्फ अपनी कानी उंगली के इशारे से सबको शांत रहने को कह दिया है, जिसे उनके भाइयों के सिवा किसी ने नहीं देखा. अब बड़ी ही सुंदर वाणी से श्रीराम ने उत्तर दिया. वह बोले- आपकी पहेली का उत्तर है, हमारे कुलदेवता भगवान सूर्य.

वह कैसे?

अपने उत्तर की श्रीराम ने की व्याख्या
राजीव नयन मुस्कुराकर व्याख्या करने लगे-'सूर्य देव के रथ में सात घोड़े हैं, एक सारथी. खुद सूर्य नारायण समेत तीस चरण हुए. 28 पैर घोड़ों के और दो सूर्यदेव के. उनके सारथि अरुण के पैर नहीं हैं. (पुराण कथाओं में जिक्र है कि अरुण का जन्म समय से पहले हो गया था इसलिए उनके पैर विकसित नहीं हो सके थे.) सूर्य देव अपने घोड़ों से जुते रथ पर चढ़कर आकाश में परिक्रमा करते हैं, यानी उनके सभी चरण धरती पर नहीं पड़ते हैं. वे तीस चरणों से धरती का स्पर्श किए बिना गतिशील रहते हैं. इसी गणना-क्रम से नेत्र और श्रवण की कुल संख्या छत्तीस हुए. सात घोड़ों के दो-दो कान यानी 14 कान, दो-दो आंखें यानी 14 आंखें. भगवान सूर्य की दो आंखें दो कान यानी चार, अरुण के दो कान और दो आंखें यानी ये भी चार. इस तरह कुल संख्या हुई 36. 

Advertisement

सबके मिलाकर नौ मुख हुए. वे तीस चरण, छत्तीस श्रवण-नयनों से युक्त सूर्य भगवान नौ मुखों से हमें आशीर्वाद दें, रक्षा करें और जीवन सफल बनाएं.

श्रीराम के मुख से इतनी सुंदर व्याख्या और ऐसा उत्तर सुनकर सभी बुजुर्ग बहुत प्रसन्न हुए. वह सीता के पति गुणों के खान श्रीराम से अभिभूत हुए. उन्हें उनके लिए सर्वथा योग्य माना और फिर खुशी-खुशी जय-जयकार के साथ इतने प्रकार के व्यंजय कराए कि शारदा भवानी भी उनका वर्णन नहीं कर सकती हैं. हर तरफ आनन्द-उल्लास की सीमा नहीं रही.

हृदय से वात्सल्य बहाते हुए जनकजी और माता सुनयना ने अपने जामाता को पंच कवल कराया. यानी पहले पांच कौर लेकर 'प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा और समानाय स्वाहा' इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए पहले पांच ग्रास लेकर उन्हें न्योछावर किया और फिर भोजन शुरू कराया. फिर तरह-तरह के अमृत के समान (स्वादिष्ट) पकवान परोसे गए, 
जिनका बखान नहीं हो सकता.

गोस्वामी तुलसी दास इसका वर्णन करते हैं कि ‘

पंच कवल करि जेवन लागे। गारि गान सुनि अति अनुरागे।
भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने॥1॥

 परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना॥
चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई॥2॥

परोसे गए चार प्रकार के जेवनार
फिर तो खाद्य चर्व्य ( चबाकर खाने वाले), पेय (पीने योग्य), लेह्य (चाटकर खाने वाले) और चोष्य (चूस कर खाने वाले) के चार प्रकार में समस्त भोज्य पदार्थ हैं. मधुर, अम्ल, लवण, तिक्त, कटु और कषाय के भेद से छ: भोज्य रस हैं, इनके सबके अलग-अलग प्रकार थाली में हैं. इस तरह राम सीता विवाह में कुंअर कलेऊ की परंपरा संपन्न हुई.

Advertisement

इस घटना को युगों बीत गए हैं. विवाह पद्धतियां उसी रीति का अनुकरण कर रही हैं. अब जेवनार होता है तो सिर्फ दूल्हे का मुंह जुठार दिया जाता है. न उन्हें किसी प्रश्न में उलझाया जाता है और न ही उनसे कुछ मान-मनुहार की जाती है. फिर भी जब नए-नवेले दूल्हे के सामने कन्या पक्ष की बड़ी-बूढ़ीं मिठाइयों की थाली लेकर आती हैं, तो सिर्फ वह पकवान की थाली नहीं होती, उसमें भरा होता है बहुत सा प्यार, सम्मान और आशीर्वाद. बिटिया-दामांद को सुखी रखने का आशीर्वाद

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement