बढ़ता तापमान
दुनिया के अलग अलग क्षेत्र अलग-अलग दरों पर गर्म होते हैं. समसामयिक जलवायु परिवर्तन में ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)और पृथ्वी के मौसम पैटर्न पर इसके प्रभाव दोनों शामिल हैं. आज के समय में जलवायु परिवर्तन स्पष्ट रूप से अधिक तीव्र हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse Gases) के उत्सर्जन है. ग्रीनहाउस में ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन पाए जाते है. ऊर्जा उपयोग के लिए ईंधन को जलाने से इन गैसों में बढ़ोतरी होती है, जिसके कारण वातावरण का तापमान बढ़ता है (Rising Temperature).
कृषि, इस्पात निर्माण, सीमेंट उत्पादन और वन हानि अतिरिक्त स्रोत भी तापमान को बढ़ाने में भागीदार हैं. ग्रीनहाउस गैसें सूर्य के प्रकाश के लिए पारदर्शी होती हैं, जो इसे पृथ्वी की सतह को गर्म करने की अनुमति देती हैं. ग्रीनहाउस गैसें पूरे ग्रह में फैलने के लिए पर्याप्त समय तक बनी रहती हैं. पहले के मुकाबले अब भूमि क्षेत्रों पर औसत सतह का तापमान वैश्विक-औसत सतह के तापमान से लगभग दोगुना तेजी से बढ़ा है. कई स्वतंत्र वाद्य डेटासेट दिखाते हैं कि जलवायु प्रणाली गर्म हो रही है. 1850-1900 की तुलना में 2011-2020 का दशक औसतन 1.09 डिग्री सेल्सियस तक गर्म रहा है. सतह के तापमान में प्रति दशक लगभग 0.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है. 2020 के साथ pre-industrial era के वनिस्पत 1.2 डिग्री सेल्सियस के तापमान तक पहुंच गया है. 1950 के बाद से, ठंडे दिनों और रातों की संख्या में कमी आई है, और गर्म दिनों और रातों की संख्या में वृद्धि हुई है (Causes of Rising Heat).
समजंग गांव की कहानी जलवायु परिवर्तन की क्रूर सच्चाई को दर्शाती है. पानी की कमी ने इस गांव को उजाड़ दिया. लोगों को नया ठिकाना ढूंढने पर मजबूर किया. हिंदू कुश और हिमालय के ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना लाखों लोगों के जीवन को खतरे में डाल रहा है.
एक गंभीर चेतावनी है कि ग्लेशियरों का पिघलना न केवल समुद्र के जलस्तर को बढ़ाएगा, बल्कि ज्वालामुखी विस्फोटों को भी ट्रिगर कर सकता है. आइसलैंड और चिली जैसे क्षेत्रों के उदाहरण बताते हैं कि बर्फ के दबाव के हटने से ज्वालामुखी अधिक सक्रिय हो सकते हैं.
भारत के दो वर्षा क्षेत्र—उष्णकटिबंधीय मानसून और सवाना जलवायु—हरियाली और तबाही दोनों लाते हैं. मानसून कृषि और जैव-विविधता को बढ़ावा देता है, लेकिन बाढ़ और भूस्खलन भी लाता है. जुलाई 2025 में हिमाचल प्रदेश में अचानक आई बाढ़ ने भारी नुकसान किया. जलवायु परिवर्तन ने चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ाया, जिससे बेहतर प्रबंधन और नीतियों की जरूरत है.
जून 2025 में यूरोप के कई देश भीषण गर्मी की चपेट में हैं, जहाँ तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच चुका है. स्पेन में सबसे ज्यादा 46 डिग्री सेल्सियस का रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया है. जबकि पुर्तगाल, इटली और फ्रांस में 42-43 डिग्री तक तापमान रिकार्ड किया गया है.
हिमाचल में बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं का कारण जलवायु परिवर्तन, हिमालय की भौगोलिक अस्थिरता और मानव-निर्मित गलतियां हैं. अनियोजित विकास, जंगलों की कटाई और नीतिगत कमियों ने स्थिति को और गंभीर बनाया है. अगर समय रहते सही कदम नहीं उठाए गए, तो ये आपदाएं और बढ़ सकती हैं.
चीन में पहली बार ह्यूमनॉइड रोबोट्स ने AI की मदद से फुटबॉल मैच खेला. बिना इंसानी मदद के खेले गए इस टूर्नामेंट ने दर्शकों को चौंका दिया.
वर्ल्ड मीटियोरोलॉजिकल ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट के अनुसार एशिया का तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिससे हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं और भारत सहित तटीय इलाकों में बाढ़-तूफान का खतरा बढ़ गया है. जानें रिपोर्ट में क्या कहा गया है.
क्या IMD का मानसून अनुमान कोई जादू है? जानिए कैसे सैटेलाइट, सुपरकंप्यूटर और वैज्ञानिक विश्लेषण से भारत मौसम विभाग करता है बारिश की सटीक भविष्यवाणी.
जानिए AC में 'Ton' का मतलब क्या होता है और कैसे टन के हिसाब से कूलिंग क्षमता तय की जाती है. अपने कमरे के आकार के लिए सही AC चुनने के टिप्स भी जानें.
उत्तर भारत में गर्मी का प्रकोप जारी है, दिल्ली में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है और पहाड़ी क्षेत्रों में भी गर्मी है. मौसम विभाग का कहना है कि 'अगले 3 दिन तक राहत नहीं मिलने वाली है,' जिसके बाद पश्चिमी विक्षोभ से कुछ वर्षा हो सकती है. कश्मीर और उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाएं हुई हैं.
दिल्ली-एनसीआर का मौसम एक्सट्रीम होने की मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और मॉनसूनी गतिविधियां हैं. प्रचंड गर्मी, डुबाने वाली बारिश और कड़कड़ाती सर्दी से निपटने के लिए हमें जलवायु परिवर्तन से लड़ने, हरियाली बढ़ाने और बेहतर ड्रेनेज सिस्टम बनाने की जरूरत है.
दिल्ली में तापमान 43.4°C लेकिन महसूस हुई 49°C गर्मी! जानें क्या होता है फील लाइक टेंपरेचर और इसका आपके स्वास्थ्य से क्या कनेक्शन?
दिल्ली-एनसीआर में 10 जून 2025 को फील लाइक टेंपरेचर 48.9 डिग्री सेल्सियस रहा, जबकि वास्तविक तापमान 43.4 डिग्री था. 70% आर्द्रता के कारण. फील लाइक टेंपरेचर हवा के तापमान, आर्द्रता और हवा की गति का संयुक्त प्रभाव है. ज्यादा आर्द्रता से पसीना वाष्पीकृत नहीं होता, गर्मी बढ़ जाती है. आईएमडी ने हीटवेव की चेतावनी दी है.
राजस्थान के जैसलमेर में बना राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल बिना एसी के भी ठंडा रहता है. जानिए कैसे अनोखी डिजाइन, लोकल पत्थर और सोलर एनर्जी से यह स्कूल बना सस्टेनेबिलिटी की मिसाल.
प्रकृति का गुस्सा, खासकर जलवायु परिवर्तन भारत और दुनिया के लिए बड़ी चुनौती है. 10 साल में भारत में 3.2 करोड़ और दुनिया में 26.48 करोड़ विस्थापन हुए. 2024 में 4.58 करोड़ बार लोग बेघर हुए. बेहतर डेटा, मजबूत ढांचा और जल्द चेतावनी सिस्टम से इस जोखिम को कम किया जा सकता है.
जलवायु परिवर्तन से भारत में 38% लोग भोजन की कमी से चिंतित हैं. 2024 में 71% ने भीषण गर्मी का सामना किया. सूखा, बाढ़ और प्रदूषण भी बढ़ रहे हैं. 86% लोग 2070 नेट जीरो लक्ष्य का समर्थन करते हैं. 93% अपनी जीवनशैली बदलने को तैयार हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ रही है. जागरूकता और नीतियों की जरूरत है.
सिक्किम के छातेन में 1 जून 2025 को भूस्खलन से सैन्य शिविर प्रभावित हुआ है. तीन लोग मारे गए हैं. छह सुरक्षाकर्मी लापता हैं. भारी बारिश ने तीस्ता नदी का जलस्तर बढ़ा दिया. जलवायु परिवर्तन, हिमनद झीलों का फटना और अनियंत्रित निर्माण इसके कारण हैं. 2023 में भी बाढ़ से 50+ लोग मरे. बचाव कार्य जारी है, 1200-1500 पर्यटक फंसे हैं.
क्या आप जानते हैं कि नौतपा सिर्फ एक मौसमीय बदलाव नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी बेहद खास है? वीडियो में जानें इसकी वजह.
हिंदू कुश हिमालय और दुनिया के अन्य ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जो 200 करोड़ लोगों के लिए खतरा है. अगर तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जाए, तो कुछ बर्फ बचाई जा सकती है. नहीं तो भारत समेत 6 देशों में भयानक प्राकृतिक आपदाएं आएंगी.
स्विट्जरलैंड का ब्लैटेन गांव बिर्च ग्लेशियर के टूटने से बर्फ और मलबे में दबा गया. 300 लोग सुरक्षित निकाले गए, लेकिन एक व्यक्ति लापता है. जलवायु परिवर्तन से पर्माफ्रॉस्ट पिघलने के कारण यह आपदा हुई. लोन्ज़ा नदी रुकने से बाढ़ आई, स्विस सेना राहत कार्य में जुटी है. यह जलवायु परिवर्तन का खतरनाक नतीजा है.
अफ्रीका धीरे-धीरे दो हिस्सों में बंट रहा है. अब वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि पृथ्वी की गहराई से निकलने वाला सुपरप्लम इसका कारण है. केन्या, मलावी और लाल सागर में मिली गैसों की रासायनिक निशानियां बताती हैं कि यह सुपरप्लम 2900 किमी की गहराई से आ रहा है. सुपरप्लम से ज्वालामुखी और भूकंप बढ़ रहे हैं. भविष्य में यह एक नया महासागर बना सकता है.