scorecardresearch
 

अंटार्कटिका के हेक्टोरिया ग्लेशियर ने तोड़ा रिकॉर्ड, 15 महीनों में 25 किमी पीछे खिसका

अंटार्कटिका के हेक्टोरिया ग्लेशियर ने रिकॉर्ड तोड़ा है – सिर्फ 15 महीनों में 25 किमी पीछे खिसक गया. पहले के रिकॉर्ड से 10 गुना तेज. 2022 में आइस टंग टूटने से तेज पिघलना शुरू हुआ. वैज्ञानिक चिंता में हैं कि दूसरे ग्लेशियरों में भी ऐसा हो सकता है. इससे समुद्र स्तर तेजी से बढ़ेगा.

Advertisement
X
अंटार्कटिका का हेक्टोरिया ग्लेशियर दुनिया में सबसे तेजी से पिघलने वाला ग्लेशियर बन गया है. (Photo: Representative/Getty)
अंटार्कटिका का हेक्टोरिया ग्लेशियर दुनिया में सबसे तेजी से पिघलने वाला ग्लेशियर बन गया है. (Photo: Representative/Getty)

अंटार्कटिका के पेनिन्सुला पर स्थित हेक्टोरिया ग्लेशियर ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है. यह ग्लेशियर सिर्फ 15 महीनों (जनवरी 2022 से अप्रैल 2023 तक) में 25 किलोमीटर पीछे खिसक गया – यह आधुनिक इतिहास का सबसे तेज पिघलाव है, जो पहले के रिकॉर्ड से 10 गुना तेज है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे दूसरे ग्लेशियर भी प्रभावित हो सकते हैं. समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ सकता है.

क्या हुआ था हेक्टोरिया ग्लेशियर के साथ?

  • 2022 की शुरुआत में ग्लेशियर के आगे का बड़ा समुद्री बर्फ का हिस्सा टूटकर अलग हो गया.
  • इससे ग्लेशियर का फ्लोटिंग हिस्सा (आइस टंग) पूरी तरह बिखर गया.
  • बिना सहारे के ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगा और बहने लगा.

सबसे ज्यादा नुकसान नवंबर-दिसंबर 2022 में हुआ, जब ग्लेशियर 8 किलोमीटर पीछे हट गया. वैज्ञानिकों ने इसे ग्लेशियल अर्थक्वेक कहा, क्योंकि टूटते हिमखंडों से भूकंप जैसे कंपन दर्ज हुए.

यह भी पढ़ें: ईरान में लंबे सूखे के बाद अचानक बारिश से बाढ़, क्लाउड सीडिंग के बाद भी गहराया संकट

Hektoria Glacier, Antarctica

वैज्ञानिकों की राय: क्यों इतनी तेजी से पिघला?

कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय की नाओमी ओचवाट और उनकी टीम ने अध्ययन किया. उनका कहना है...

  • ग्लेशियर का मुख्य हिस्सा (ट्रंक) पतला होकर एक सपाट समुद्री तल (आइस प्लेन) पर आ गया.
  • यह हिस्सा जमीन से चिपका था, लेकिन पतला होने से यह तैरने लगा.
  • इससे हिमखंड तेजी से टूटकर अलग होने लगे और ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ गया.

टीम के सदस्य टेड स्कैम्बोस ने इसे शॉकिंग बताया और कहा कि इससे दूसरे बड़े ग्लेशियरों के लिए खतरा बढ़ गया है. 

Advertisement

यह भी पढ़ें: दिल्ली से 6913 KM दूर क्या कर रहे हैं इंडियन एयरफोर्स के राफेल, सुखोई फाइटर जेट

क्या विवाद भी है?

यह अध्ययन वैज्ञानिकों में बहस का विषय बन गया है. कुछ विशेषज्ञ सहमत नहीं...

Hektoria Glacier, Antarctica

  • एयरबस डिफेंस एंड स्पेस के फ्रेजर क्रिस्टी कहते हैं कि सैटेलाइट डेटा से साफ नहीं कि ग्लेशियर कहां तक जमीन पर टिका था. 
  • ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स की एना हॉग कहती हैं कि उनका डेटा दिखाता है कि आइस प्लेन वाला हिस्सा पहले से तैर रहा था, इसलिए यह सामान्य हिमखंड टूटना था, न कि कोई नई घटना. 
  • न्यूकैसल यूनिवर्सिटी की क्रिस्टीन बैचलर कहती हैं कि अगर यह हिस्सा तैर रहा था, तो यह बस 'आइस शेल्फ से हिमखंड टूटना' जैसा सामान्य है, कोई बड़ी खबर नहीं.

इसका मतलब क्या है?

हेक्टोरिया छोटा ग्लेशियर है (करीब फिलाडेल्फिया शहर जितना बड़ा), लेकिन अगर यही तरीका बड़े ग्लेशियरों जैसे थ्वाइट्स या पाइन आइलैंड पर लागू हुआ, तो समुद्र स्तर तेजी से बढ़ सकता है. वैज्ञानिक कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल रही है. ऐसे घटनाओं से हमें सतर्क रहना चाहिए. अध्ययन नेचर जियोसाइंस जर्नल में छपा है. दुनिया भर के वैज्ञानिक अब और सैटेलाइट डेटा जुटाकर इसकी जांच कर रहे हैं ताकि भविष्य की आपदाओं से बचा जा सके.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement