ग्लेशियर
ग्लेशियर (Glacier) घनी बर्फ का एक पिंड है जो अपने ही वजन के नीचे घूमता रहता है. जब बर्फ का संचय कई वर्षों या सदियों से अधिक हो जाता है तब एक ग्लेशियर बनता है (Formation of a Glacier). ग्लेशियर का आकार धीरे-धीरे बदलता रहता है. इसके वजन की वजह से इसमें दरारें और सेराक बनती हैं. वे अपने सब्सट्रेट से चट्टान और मलबे को भी हटाते रहते हैं ताकि सर्क, मोराइन या फोजर्ड जैसे लैंडफॉर्म बना सकें.
पृथ्वी पर, 99% ग्लेशियर ध्रुवीय क्षेत्रों में विशाल बर्फ की चादरों के भीतर समाहित है. ग्लेशियर ऑस्ट्रेलियाई मुख्य भूमि के अलावा हर महाद्वीप पर पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जा सकते हैं, जिसमें न्यूजीलैंड जैसे महासागरीय द्वीप भी शामिल है. ग्रीनलैंड और पेटागोनिया में भी महाद्वीपीय ग्लेशियरों का विशाल विस्तार है. अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरों को छोड़ दो तो ग्लेशियर लगभग 170,000 किमी3 में फैला हुआ है (Glacier on Earth).
ग्लेशियर बर्फ पृथ्वी पर ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है.यह दुनिया के ताजे पानी का लगभग 69 प्रतिशत है. समशीतोष्ण, अल्पाइन और मौसमी ध्रुवीय जलवायु के कई ग्लेशियर ठंडे मौसम के दौरान पानी को बर्फ के रूप में संग्रहीत करते हैं और बाद में इसे पिघले पानी के रूप में छोड़ते हैं क्योंकि गर्म तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल जाते हैं, जिससे एक जल स्रोत बनता है. जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर काफी प्रभावित होता है (Glacier, Sources of fresh Water).
आर्कटिक में 2024-25 रिकॉर्ड सबसे गर्म साल रहा. वैश्विक औसत से 4 गुना तेज गर्मी पड़ी. समुद्री बर्फ न्यूनतम स्तर पर है. रिकॉर्ड बारिश हुई है. सर्दी में भी बारिश से 'विंटर रीडिफाइंड' हो गया है. दुनिया के 79% ग्लेशियर इस सदी तक पिघल सकते हैं. समुद्र स्तर बढ़ेगा. 200 करोड़ लोगों की पानी सप्लाई खतरे में है.
अंटार्कटिका के हेक्टोरिया ग्लेशियर ने रिकॉर्ड तोड़ा है – सिर्फ 15 महीनों में 25 किमी पीछे खिसक गया. पहले के रिकॉर्ड से 10 गुना तेज. 2022 में आइस टंग टूटने से तेज पिघलना शुरू हुआ. वैज्ञानिक चिंता में हैं कि दूसरे ग्लेशियरों में भी ऐसा हो सकता है. इससे समुद्र स्तर तेजी से बढ़ेगा.
Switzerland के Glaciers ने पिछले 12 महीनों में अपनी बर्फ का 3% हिस्सा खो दिया है. ये इतिहास में चौथा सबसे बड़ा नुकसान है.
स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर पिछले 12 महीनों में इतनी तेजी से पिघले हैं कि वैज्ञानिक डर से कांप उठे हैं. ग्लामोस नाम की निगरानी संस्था ने बुधवार को चेतावनी दी है – यह बर्फ का चौथा सबसे बड़ा नुकसान है जो इतिहास में दर्ज हुआ है. क्या आप तैयार हैं इस भयावह कहानी के लिए?
स्विट्जरलैंड का ग्रीज ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है. जलवायु परिवर्तन से 12 महीनों में बर्फ 6 मीटर पतली हो गई. 2000-2023 में 800 मीटर छोटा हुआ. 1880 से 3.2 किमी कम. 2025 की गर्मी ने बिगाड़ा. निचले हिस्से 5 सालों में गायब हो सकते. स्विट्जरलैंड में 100 ग्लेशियर लुप्त.
विशेषज्ञों ने हिमालय नीति की मांग की, ताकि यमुना-भागीरथी नदियों में सड़क मलबा न डाला जाए. गंगोत्री हाईवे पर पेड़ों की कटाई रोकी जाए. गौमुख-बांदर पूंछ ग्लेशियरों की जैव विविधता बचाने और छोटे किसानों के लिए जलवायु-प्रतिरोधी आजीविका की जरूरत है.तीर्थयात्रियों की संख्या सीमित करें और कचरा प्रबंधन सख्त करें.
अलास्का के ग्लेशियर बे में अलसेक ग्लेशियर के पिघलने से प्रो नॉब नामक नया द्वीप बन गया. नासा की लैंडसैट 9 तस्वीरों से पता चला कि ग्लेशियर 2025 में पहाड़ से अलग हो गया. यह जलवायु परिवर्तन का संकेत है. ग्लेशियर के पीछे हटने से अलसेक झील बनी. यह पर्यावरण संरक्षण की जरूरत बताता है.
आईआईटी इंदौर के अध्ययन से पता चला कि गंगोत्री ग्लेशियर ने 40 सालों में 10% स्नो मेल्टिंग से मिलने वाला बहाव खो दिया है. जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ने से बर्फ कम बन रही है, जबकि बारिश और भूजल का योगदान बढ़ रहा है. इससे गंगा का प्रवाह बदल रहा है, जो कृषि, जलविद्युत और जल सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है.
एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय से पूछा कि गर्मियों में गंगा के प्रवाह में भूजल की क्या भूमिका है. आईआईटी रुड़की के अध्ययन से पता चला कि गंगा का प्रवाह ग्लेशियरों से नहीं, बल्कि भूजल से चलता है. 58% पानी वाष्पीकरण से खत्म होता है. एनजीटी ने 10 नवंबर की सुनवाई से पहले रिपोर्ट मांगी. भूजल संरक्षण और सहायक नदियों की बहाली जरूरी है.
2025 के सात महीनों में मौसमी आपदाओं ने भारत को हिला दिया. 1626 मौतें, 1.57 लाख हेक्टेयर फसलें बर्बाद और हजारों मवेशियों का नुकसान इस तबाही की गंभीरता दिखाता है. उत्तराखंड, हिमाचल और अन्य राज्य इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए.
लद्दाख के ग्लेशियर भारत के लिए पानी का खजाना हैं, लेकिन पर्यटन, सैन्य गतिविधियां और ग्लोबल वॉर्मिंग इन्हें खतरे में डाल रहे हैं. अगर इनका संरक्षण नहीं किया गया, तो लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में पानी का गंभीर संकट पैदा हो सकता है. सरकार, स्थानीय लोग और पर्यटकों को मिलकर इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की जरूरत है.
नासा और इसरो के संयुक्त मिशन #NISAR ने बड़ा कीर्तिमान हासिल किया. इसका 12 मीटर का रडार एंटीना अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक खुल गया, जो धरती के बदलाव मापेगा. 30 जुलाई को श्रीहरिकोटा से लॉन्च हुआ यह उपग्रह ग्लेशियर, भूकंप और जंगलों पर नजर रखेगा. यह मिशन इस साल के अंत में डेटा देगा, जो आपदाओं और खाद्य सुरक्षा में मदद करेगा.
तुर्की, भीषण गर्मी और सूखे का सामना कर रहा है. हक्कारी से लगभग 200 किलोमीटर दूर सिलोपी में 50.5 डिग्री सेल्सियस का रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया है. दुनिया के कई क्षेत्रों के ग्लेशियर जलवायु में हो रहे परिवर्तनों के कारण तेजी से पिघल रहे हैं. ग्लेशियरों के खत्म होने से करोड़ों लोगों के लिए जल आपूर्ति का एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
GLOF ग्लेशियर झीलों का फटना है, जो बड़े पैमाने पर तबाही लाता है, जैसे केदारनाथ (2013). जबकि LLOF भूस्खलन से बनी झीलों का टूटना है, जैसे किन्नौर (2023). दोनों प्राकृतिक हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां इन्हें बढ़ा रही हैं. समय रहते सही कदम उठाए गए, तो इन आपदाओं को कम किया जा सकता है.
उत्तरकाशी के हर्षिल के पास धराली गांव में मंगलवार को 12,600 फीट ऊंचे पहाड़ से मलबे के साथ पानी का सैलाब आया, जिसने 30-35 सेकंड में पूरा कस्बा तहस-नहस कर दिया. खीर गाड़ में अचानक आई बाढ़ ने घर, होटल और बाजार को मलबे में बदल दिया. इस भयंकर त्रासदी की तीन संभावित वजहें सामने आ रही हैं.
हर्षिल घाटी की जियोलॉजी, भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराव, ढीली एलुवियल मिट्टी, खड़ी ढलानें और ग्लेशियरों की उपस्थिति इसे भूकंप, बाढ़ और फ्लैश फ्लड के लिए बेहद संवेदनशील बनाती है. जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां इस जोखिम को और बढ़ा रही हैं. अगस्त 2025 की ताजा घटना हमें चेतावनी देती है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाना जरूरी है.
हिमाचल और अन्य पहाड़ी राज्य बाढ़-भूस्खलन से खतरे में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अनियोजित निर्माण और जंगल कटाई से हिमाचल नक्शे से गायब हो सकता है. 2025 में जुलाई में 170 लोग मरे, ग्लेशियर पिघल रहे हैं. सरकार को प्लान बनाना होगा, हमें प्रकृति बचानी होगी. समय रहते जागरूकता जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश को लेकर बड़ी चेतावनी दी है. अनियोजित विकास, जंगल कटाई और ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है. अगर अब भी नहीं संभले, तो हिमाचल नक्शे से मिट सकता है.
हिमालय के ऊंचे पहाड़ों में बसा लद्दाख, जो कभी प्राचीन सिल्क रूट का हिस्सा था. जलवायु परिवर्तन के कारण लद्दाख में याकों की संख्या कमी आ रही है. याकों को को चराना, दूध दुहना और ऊन इकट्ठा करना लद्दाख के लोगों की जीवनशैली का हिस्सा है. तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर, अनियमित बारिश और पहाड़ों पर घटती बर्फ से चरवाहों और उनके पशुओं, दोनों पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है.
NASA ISRO Nisar Satellite Launch: निसार मिशन पृथ्वी का "एमआरआई स्कैनर" है, जो भूकंप, सुनामी, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की पहले से चेतावनी देगा. यह सैटेलाइट दोहरे रडार सिस्टम, हर मौसम में काम करने की क्षमता, और सेंटीमीटर स्तर की सटीकता के साथ पृथ्वी की सतह को स्कैन करेगा.
NISAR धरती की निगरानी का सुपरहीरो है. ये भूकंप, बाढ़, हिमनद पिघलने और फसलों पर नजर रखेगा. किसानों को फसल की जानकारी, वैज्ञानिकों को डेटा और आपदा राहतकों को अलर्ट देगा. ISRO और NASA की साझेदारी भारत की अंतरिक्ष ताकत और वैश्विक सहयोग का प्रतीक है. 30 जुलाई 2025 को GSLV-F16 के साथ लॉन्च होने वाला ये सैटेलाइट भारत को आपदा प्रबंधन, कृषि और जलवायु परिवर्तन में नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा.