जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से मतलब तापमान और मौसम के पैटर्न में लंबे वक्त के बदलाव से है. ये बदलाव स्वाभाविक हो सकते हैं. जलवायु परिवर्तन में जलवायु में आने वाले वैसे तमाम बदलाव शामिल हैं जो, दशकों या सदियों तक बने रहते हैं. औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के समय से, जलवायु मानवीय गतिविधियों के कारण तेजी से प्रभावित हुई है जो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही हैं (Climate Change due to Human Activities).
पृथ्वी की जलवायु प्रणाली अपनी लगभग सारी ऊर्जा सूर्य से प्राप्त करती है. यह बाहरी अंतरिक्ष में भी ऊर्जा को फैलाती है. आने वाली और जाने वाली ऊर्जा का संतुलन ही पृथ्वी की जलवायु को निर्धारित करता है. जब आने वाली ऊर्जा बाहर जाने वाली ऊर्जा से ज्यादा होती है, तो पृथ्वी की ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है जिससे जलवायु गर्म होती है. अगर आउटर स्पेस में ज्यादा एनर्जी चली जाती है, तो ऊर्जा बजट (Energy Budget) निगेटिव होता है और पृथ्वी पर ठंड बढ़ जाती है (Balance of Energy in Climate System).
किसी खास क्षेत्र में लंबे वक्त के लिए हुए मौसम में बदलाव से उस क्षेत्र की जलवायु का निर्माण होता है. जलवायु में बदलाव बाहरी दबाव के कारण भी हो सकता है. इसके उदाहरणों में सोलर आउटपुट और ज्वालामुखी में परिवर्तन शामिल हैं (Changes in Solar Output and Volcanism).
व्यापक पैमाने पर, जिस दर पर सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है और जिस दर पर यह अंतरिक्ष में वापस जाती है, वह पृथ्वी के संतुलित तापमान और जलवायु को निर्धारित करती है (Equilibrium of Temperature and climate of Earth). यह ऊर्जा अलग-अलग क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती है. जलवायु को आकार देने वाले कारकों को जलवायु बल कहा जाता है (Climate Forcings). इनमें सौर विकिरण में बदलाव (Variations in Solar Radiation), पृथ्वी की कक्षा में बदलाव (Variations in Earth's Orbit), अल्बेडो में बदलाव या महाद्वीपों, वायुमंडल और महासागरों के एनर्जी को रिफ्लेक्ट करने की क्षमता में बदलाव और ग्रीनहाउस गैस में बदलाव (Changes in Greenhouse Gas Concentrations) जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं. ये बाहरी बल या तो मानवजनित (उदाहरण के लिए ग्रीनहाउस गैसों और धूल के उत्सर्जन में वृद्धि) या प्राकृतिक (जैसे, सौर उत्पादन में परिवर्तन, पृथ्वी की कक्षा, ज्वालामुखी विस्फोट) हो सकते हैं (Causes of Previous Period of Climate Change).
लखनऊ में भारत-दक्षिण अफ्रीका टी-20 मैच घने कोहरे व स्मॉग से रद्द हो गया. शशि थरूर ने तंज कसा कि मैच तिरुवनंतपुरम में रखते तो खेल होता, जहां AQI सिर्फ 68 है. उत्तर भारत में सर्दियों में कम तापमान, वेस्टर्न डिस्टर्बेंस व प्रदूषण से घना कोहरा बनता है. दक्षिण भारत में समुद्री प्रभाव से मौसम गरम व साफ रहता है.
तुर्की के कोन्या इलाके में भयंकर सूखे और भूजल के ज्यादा दोहन से करीब 700 ओब्रुक (सिंकहोल) बन चुके हैं. ये विशाल गड्ढे खेतों को निगल रहे हैं. किसानों की जिंदगी खतरे में डाल रहे हैं. नए ओब्रुक लगातार बन रहे हैं, जो क्लाइमेट चेंज की बड़ी चेतावनी है. सरकार रिस्क मैप बना रही है, लेकिन समस्या गंभीर बनी हुई है.
दिल्ली-एनसीआर के पॉल्युशन में इस बार पराली का योगदान सिर्फ 5-22% रहा, फिर भी नवंबर भर AQI गंभीर रहा. CSE की रिपोर्ट के मुताबिक PM2.5 के साथ NO2 और CO का जहरीला मिश्रण बढ़ा है. नए हॉटस्पॉट बने हैं. छोटे शहर भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. प्रदूषण के लिए लोकल स्रोत (वाहन, उद्योग, कचरा) अब 85% जिम्मेदार हैं. छोटे कदम नहीं चलेंगे; इलेक्ट्रिक वाहन, साफ ईंधन और बड़े सुधार तुरंत चाहिए.
30 साल में सुंदरबन के भंगादूनी और जम्बूद्वीप समुद्र में गायब हो गए. समुद्र स्तर बढ़ने, मैन्ग्रूव कटाई और जलवायु परिवर्तन ने 23 वर्ग किमी जमीन निगल ली. 2050 तक सुंदरबन के 15% द्वीप डूबेंगे. 45 लाख लोग बेघर होंगे. मुंबई, चेन्नई, कोच्चि भी खतरे में हैं. मैन्ग्रूव बचाना होगा नहीं तो पूरा तट डूब जाएगा.
30 साल में समंदर निगल गया सुंदरबन के दो आइलैंड, अब इन शहरों को खतरा
हिमाचल, केरल, उत्तराखंड, इंडोनेशिया, हैती… जहां-जहां जंगल काटे गए, वहां बाढ़-भूस्खलन ने हजारों जिंदगियां लील लीं. पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधती हैं. पानी सोखती हैं. बादल बनाती हैं. जंगल गए तो पहाड़ ढह गए. विज्ञान और बुजुर्ग एक ही बात कहते हैं- जंगल है तो जीवन है. अब भी नहीं चेते तो अगली बाढ़ हमारा इंतजार कर रही है.
दक्षिण अफ्रीका में 60,000 से ज्यादा अफ्रीकी पेंग्विन भूख से मर गए. मुख्य वजह है सारडीन मछली का गायब होना. जलवायु परिवर्तन और ज्यादा मछली पकड़ने से दो बड़े कॉलोनियों में 95% पेंगुइन खत्म हो गई है. अब सिर्फ 10,000 प्रजनन करने वाले जोड़े बचे है. प्रजाति गंभीर रूप से संकटग्रस्त है. मछली पकड़ने पर बैन और कृत्रिम घोंसले बनाकर इन्हें बचाने की कोशिश की जा रही है.
South Africa में 60 हजार से ज्यादा Penguins की मौत, जानिए क्या है इसके पीछे की बड़ी वजह
कश्मीर में इस बार बर्फ नहीं गिरी, ठंड तो है पर भालू सो (हाइबरनेट) नहीं पा रहे. भूखे हिमालयी काले भालू जंगलों से निकलकर गांवों-शहरों में घुस रहे हैं. नवंबर में रिकॉर्ड 50 भालू पकड़े गए. ग्लोबल वार्मिंग से मौसम बदला गया है. जंगल में खाना कम हुआ, इसलिए भालू इंसानी इलाकों में आ रहे हैं. अब श्रीनगर भी भालुओं का नया ठिकाना बनता जा रहा है.
सुमात्रा में साइक्लोन सेन्यार ने 836 लोगों की जान ली. 40 साल में 74% जंगल कट चुके हैं, खासतौर से पाम ऑयल और कागज उद्योग के लिए. बारिश में बिना जड़ों वाली मिट्टी खिसकी. कटे लट्ठे बहकर घर तोड़ते चले गए. जंगल होते तो यह तबाही 70% तक कम होती.
ईरान लगातार छह सालों से सूखा झेल रहा है. गर्मियों में यहां तापमान 50 डिग्री से ऊपर जाने लगा. अब सैटेलाइट इमेज भी इस देश की खस्ता हालत को बता रही है. तेहरान में पांच में से चार पानी के स्त्रोत सूखे दिखने लगे. यहां तक कि अब राजधानी शिफ्ट करने की भी बात होने लगी.
अमेरिका के उत्तर-पूर्वी इलाकों में सदी में एक बार आने वाली भयंकर बाढ़ अब हर साल आएगी. समुद्र का बढ़ता जलस्तर और तेज होते तूफान इसके जिम्मेदार हैं. नई रिसर्च कहती है कि 2100 तक न्यूयॉर्क-बोस्टन जैसे शहरों में हर साल बाढ़ आएगी. हमें अभी कार्बन उत्सर्जन कम करना होगा वरना तबाही तय है.
चक्रवात दित्वाह ने श्रीलंका में 390+ लोगों की जान ली. 10 लाख लोगों को प्रभावित किया और 20 साल की सबसे भयानक बाढ़ लेकर आया. अब तमिलनाडु-चेन्नई में भारी बारिश से 3 मौतें हो चुकी हैं. सैकड़ों उड़ानें रद्द हुई है. जलवायु परिवर्तन से ऐसे चक्रवात, टाइफून और हरिकेन तेज व घातक हो रहे हैं.
दुनिया का मौसम इस समय पूरी तरह बेकाबू हो चुका है. जमीन से 20-30 km ऊपर बहने वाली हवा यानी QBO नवंबर में ही पलट गई, जो आमतौर पर जनवरी-फरवरी में बदलती है. भारत समेत पूरी दुनिया पर 2025-26 में इसका भयंकर असर पड़ेगा. यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब भी बाढ़, ठंड और सूखे की दोहरी मार झेल रहे हैं. यह कोई स्थानीय मौसम नहीं, पूरा ग्लोबल सिस्टम टूटने की शुरुआत है.
बंगाल की खाड़ी में दो चक्रवात सक्रिय हैं. सेन्यार कमजोर हो चुका है, लेकिन दितवा तेजी से मजबूत हो रहा है. तमिलनाडु, पुडुचेरी व दक्षिण आंध्र में 28-30 नवंबर तक भारी-अत्यधिक भारी बारिश का अलर्ट है. मछुआरों को समुद्र में न जाने की चेतावनी दी गई है. IMD हर 6 घंटे अपडेट जारी कर रहा है.
इथियोपिया में हायली गुब्बी ज्वालामुखी के फटने का असर भारत तक दिख रहा है. आसमान धूल और राख के गुबार से भर चुका, जिसकी वजह से कई इंटरनेशनल उड़ानें रद्द हो गईं. अगर वॉल्केनिक इरप्शन लगातार होता रहा तो धरती और आसमान के बीच धूल की मोटी परत आ जाएगी, जिससे तापमान काफी नीचे भी गिर सकता है.
दिल्ली-एनसीआर में आज AQI 479 तक पहुंच गया, हवा 20 गुना जहरीली है. पराली का धुआं, गाड़ियों का प्रदूषण और सर्दी का तापमान इनवर्शन होने से स्मॉग फंसा हुआ है. हवा नहीं चल रही है. बारिश नहीं हो रही. 27-28 नवंबर तक राहत मुश्किल है.
इस साल हम भारतीयों ने 273 दिनों में से 270 दिन भयानक मौसम की मार झेली है. जिसमें लू, बाढ़, ठंड, लैंडस्लाइड शामिल है. इससे सभी 36 राज्य प्रभावित हुए हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ हिमाचल प्रदेश. यहां 217 दिन ऐसे खतरनाक मौसम देखे गए. यह संकट अब रोजमर्रा का हाल बन गया है. कारण मौसम का बदलना है, जो हमारी हरकतों से बदल रहा है.
अंटार्कटिका के हेक्टोरिया ग्लेशियर ने रिकॉर्ड तोड़ा है – सिर्फ 15 महीनों में 25 किमी पीछे खिसक गया. पहले के रिकॉर्ड से 10 गुना तेज. 2022 में आइस टंग टूटने से तेज पिघलना शुरू हुआ. वैज्ञानिक चिंता में हैं कि दूसरे ग्लेशियरों में भी ऐसा हो सकता है. इससे समुद्र स्तर तेजी से बढ़ेगा.
ईरान में महीनों के भयानक सूखे के बाद सोमवार को पश्चिमी इलाकों में तेज बारिश से बाढ़ आ गई. औसत से 85% कम बारिश से तेहरान में नल सूख गए हैं. जल संकट गहराया हुआ है. सरकार ने क्लाउड सीडिंग शुरू की, लेकिन विशेषज्ञ बोले – यह महंगी और अस्थायी राहत है. सूखी जमीन पानी सोख नहीं पाई, इसलिए फ्लैश फ्लड आया.
COP30 सम्मेलन से उम्मीद लगाई जा रही है कि तमाम देश विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अहम कदम उठाएंगे. यह इस लिहाज से भी अहम माना जा रहा है कि पिछला साल अब तक का सबसे गर्म साल दर्ज किया गया था. इसके प्रभाव पहले ही दुनिया भर में तूफान, बाढ़, आग और भीषण गर्मी के रूप में दिख रहे हैं.