अमेरिका ने हमले के लिए तीन न्यूक्लियर साइट को क्यों चुना? जानें कैसे आगे बढ़ा ईरान का परमाणु कार्यक्रम

अमेरिका ने जिन तीन परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने का दावा किया है, वह ईरान के लिए काफी अहम हैं. इन ठिकानों पर काफी मात्रा में यूरेनियम एनरिचमेंट किया जा रहा था और यह तीनों साइट ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के लिए बहुत अहम हैं. इस हमले के बाद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बड़ा झटका लगा है.

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ईरान-इजरायल की जंग में अमेरिका की एंट्री ईरान-इजरायल की जंग में अमेरिका की एंट्री

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2025,
  • अपडेटेड 11:54 AM IST

इजरायल और ईरान के बीच दस दिन से जारी जंग में अब अमेरिका की एंट्री हो चुकी है. अमेरिका ने रविवार को अपने बंकर बस्टर बमों से ईरान की तीन न्यूक्लियर साइट फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर हमले का दावा किया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हमले को सफल बताया है जबकि इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस हमले के लिए अमेरिका को बधाई दी है. अमेरिका ने जिन परमाणु ठिकानों पर हमला किया है, वह ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए बेहद अहम हैं.

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फोर्डो न्यूक्लियर साइट पर हमला

तेहरान से करीब 60 मील साउथ-वेस्ट में स्थित फोर्डो न्यूक्लियर साइट को ईरान का सबसे सुरक्षित परमाणु ठिकाना माना जाता है. यह ईरान का यूरेनियम एनरिचमेंट सेंटर है जो कि एक पहाड़ी के किनारे स्थित है. फोर्डो में ईरान का सबसे एडवांस सेंट्रीफ्यूज है, जिसको अमेरिका कई सालों से टारगेट करना चाहता था. अब अमेरिका के हमले से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बड़ा झटका लगा है, जिससे उबर पाना आसान नहीं होगा. हालांकि ईरान ने अमेरिकी हमले की बात को कुबूली है लेकिन बड़े नुकसान के दावे को खारिज किया है. 

इस फैसिलिटी में यूरेनियम एनरिचमेंट के लिए सेंट्रीफ्यूज कैस्केड का इंतजाम है और इसे हवाई हमलों का सामना करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसका निर्माण 2007 में सीक्रेट तरीके से शुरू हुआ था और ईरान ने 2009 में इसकी बात कुबूली थी. अमेरिका ने कथित तौर पर फोर्डो की अंडरग्राउंड फैसिलिटी को निशाना बनाने के लिए 6 बंकर-बस्टर बमों, खास तौर पर जीबीयू-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर का इस्तेमाल किया है.

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अमेरिका ने ईरान के नतांज न्यूक्लियर साइट को भी टारगेट किया है. ईरान की राजधानी तेहरान से करीब 135 मील साउथ-ईस्ट में स्थित नतांज न्यूक्लियर फैसिलिटी दो हिस्सों में बंटी हुई है, पहला फ्यूल एनरिचमेंट प्लांट और दूसरा पायलट फ्यूल एनरिचमेंट प्लांट. पहला हिस्सा अंडरग्राउंड है जिसमें पांच फीसदी की शुद्धता के साथ यूरेनियम एनरिचमेंट किया जाता है और यहां करीब 14 हजार सेंट्रीफ्यूज होने की बात सामने आई है.

नतांज में 60% तक एनरिचमेंट

दूसरा हिस्सा पायलट फ्यूल एनरिंचमेंट प्लांट है, जहां 60 फीसदी तक यूरेनियम एनरिचमेंट किया जाता है, जो कि परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी 90 फीसदी यूरेनियम एनरिचमिंट के काफी करीब है. नतांज प्लांट का यह हिस्सा जमीन के ऊपर बना हुआ है और यहां भी सैंकड़ों की संख्या में सेंट्रीफ्यूज होने की बात सामने आई है. नतांज को पहले भी कई बार निशाना बनाया गया है, जिसमें स्टक्सनेट वायरस और इज़रायली हवाई हमले शामिल हैं, जिसमें इसके ज़मीन के ऊपर का इंफ्रास्ट्रक्चर और सेंट्रीफ्यूज तबाह हो गए थे. 

नतांज न्यूक्लियर साइट (फाइल फोटो)

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ईरान का तीसरा परमाणु ठिकाना इस्फहान है, जिसे अमेरिका ने निशाना बनाया है. यह ईरान की न्यूक्लियर कन्वर्जन फैसिलिटी है, जिसका काम येलोकेक को अन्य परमाणु ठिकानों पर एनरिचमेंट के लिए इस्तेमाल होने वाली यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (UF6) गैस में बदलना है. ईरान का नतांज प्लांट भी इस्फहान प्रांत में ही स्थित है और यहां देश का प्रमुख मिसाइल डेवेलेपमेंट और रिसर्च सेंटर भी मौजूद है. 

इस्फहान को हजारों परमाणु वैज्ञानिकों का घर कहा जाता है. यहां यूरेनियम कन्वर्जन फैसिलिटी के अलावा रिसर्च लैब और चीन की मदद से तैयार अनुसंधान रिएक्टर हैं. इज़रायली सेना ने पहले भी इस्फहान में इमारतों पर हमला किया था, जिसमें एक यूरेनियम कन्वर्जन फैसिलिटी शामिल थी. मौजूदा हमले के बाद यहां से किसी तरह के रेडिएशन लीक के कोई संकेत नहीं बताए गए हैं.

कैसे आगे बढ़ा ईरान का परमाणु कार्यक्रम

ईरान पर अमेरिका-इजरायल समेत तमाम देश परमाणु हथियार बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के आरोप लगाते आए हैं. हालांकि ईरान का पक्ष है कि वह सिर्फ अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए यूरेनिमय एनरिचमेंट कर रहा है और वह परमाणु अप्रसार संधि का पालन करता है. जानते हैं कि अब तक ईरान का परमाणु कार्यक्रम समय के साथ कैसे आगे बढ़ा. 

1958: ईरान अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में शामिल हुआ.

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1967: अमेरिका ने ईरान को शांति के परमाणु कार्यक्रम के तहत एक रिसर्च रिएक्टर दिया.

1970: ईरान ने परमाणु हथियारों के अप्रसार संधि (NPT) की पुष्टि की.

1979: इस्लामिक क्रांति ने एक पश्चिम-विरोधी इस्लामवादी सरकार स्थापित की.

1984: अमेरिका ने ईरान को आतंकवाद का पोषक राज्य घोषित किया और प्रतिबंध लगाए.

2000: IAEA ने ईरान को गैर-अनुपालन के लिए संयुक्त राष्ट्र को भेजा, ईरान ने यूरेनियम एनरिचमेंट शुरू किया. संयुक्त राष्ट्र ने पहला परमाणु प्रतिबंध लगाया.

2002: नतांज और अराक के पास सीक्रेट परमाणु साइट्स का पर्दाफाश हुआ.

2003: ईरान के सुप्रीम लीडर ने परमाणु हथियार विकास पर प्रतिबंध लगाने वाला फतवा जारी किया.

2009: फोर्दो, क़ुम के पास सीक्रेट परमाणु साइट का पता चला.

2010: संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलों पर प्रतिबंध के साथ प्रतिबंधों का विस्तार किया.

2013: ईरान और विश्व शक्तियों (P5+1) ने एक प्रारंभिक परमाणु समझौते पर सहमति जताई.

2015: जेसीपीओए (JCPOA) को अपनाया गया.

2016: IAEA ने ईरान के अनुपालन की पुष्टि की, जिससे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में राहत मिली.

2018: अमेरिका परमाणु समझौते से हट गया, ईरान ने शुरू में इसका पालन जारी रखा.

2019: ईरान ने घोषणा की कि वह समझौते के तहत प्रतिबंधों का सम्मान नहीं करेगा.

2020: ईरान ने अपने सैन्य-चलित अंतरिक्ष कार्यक्रम का खुलासा किया.

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2021: परमाणु समझौते को बहाल करने पर वार्ता फिर शुरू हुई.

2022: अमेरिका-ईरान की वार्ता रुकी, ईरान ने एनरिचमेंट एक्टिविटीज को बढ़ाया.

2025: ट्रंप और ईरान के विदेश मंत्री ने नई परमाणु वार्ता की घोषणा की, फिर इजरायली हमले के बाद ईरान ने इसे रद्द कर दिया.

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने अमेरिकी हमले के बाद अपने पहले बयान में कहा कि कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य होते हुए भी अमेरिका ने ईरान पर हमला किया, जो कि यूएन चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सीधा उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि अब ईरान आत्मरक्षा और संप्रभुता को बचाने के लिए जवाबी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है और हर विकल्प पर विचार कर रहा है.

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