रिवर्स गियर में हवा, Ice Age जैसा खतरा... भारत से लेकर यूरोप तक मौसम के सितम के पीछे का साइंस

दुनिया का मौसम इस समय पूरी तरह बेकाबू हो चुका है. जमीन से 20-30 km ऊपर बहने वाली हवा यानी QBO नवंबर में ही पलट गई, जो आमतौर पर जनवरी-फरवरी में बदलती है. भारत समेत पूरी दुनिया पर 2025-26 में इसका भयंकर असर पड़ेगा. यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब भी बाढ़, ठंड और सूखे की दोहरी मार झेल रहे हैं. यह कोई स्थानीय मौसम नहीं, पूरा ग्लोबल सिस्टम टूटने की शुरुआत है.

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इस समय पूरी दुनिया का मौसम विचित्र रूप दिखा रहा है. वजह एक है. (Photo: ITG) इस समय पूरी दुनिया का मौसम विचित्र रूप दिखा रहा है. वजह एक है. (Photo: ITG)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 30 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:49 AM IST

इस समय पूरी दुनिया का मौसम बदला हुआ है. कहीं ज्वालामुखी फट रहे हैं. कहीं चक्रवाती तूफान से बाढ़. सूरज भी आग उगल रहा है. धरती भी कांप रही है. इतने ज्यादा मौसमी बदलाव एकसाथ इससे पहले कभी नहीं देखे गए. अलग-अलग घटनाएं लेकिन सब आपस में कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं. इसका असर दुनिया पर तो पड़ ही रहा है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. इस साल चरम मौसमी आपदाएं आईं. अगले साल भी खतरा है. 

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मौसम वैज्ञानिक और एक्सपर्ट की मानें तो यह QBO (Quasi-Biennial Oscillation Collapse) का टूटना या गिरना कह रहे हैं. यानी धरती से 20-30 किलोमीटर ऊपर चलने वाली हवा की धारा पलट गई है. जो आमतौर पर 28-30 महीने में दिशा बदलती थी. ये धारा नवंबर में ही पलट गई है. जबकि, ये काम जनवरी-फरवरी में होता है. 

यह छोटी घटना नहीं है. इससे पूरी पृथ्वी का मौसम बदलता है. मौसम की मशीन इस समय हिल गई है. यानी मौसम को चलाने वाले इंजन ने रिवर्स गियर लगा दिया है. सोचिए आपकी गाड़ी सीधी चल रही हो और अचानक रिवर्स गियर लगे और वो भी आपसे कंट्रोल न हो. फिर तो हादसा होना तय है. 

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अमेरिकी मौसम विभाग NOAA के आंकड़ों के अनुसार हवाएं पश्चिमी से पूर्वी दिशा में तेजी से उलट रही हैं, जो सामान्य से 2-3 महीने पहले है. खासतौर से इसकी वजह से ला नीना भी प्रभावित होगा जो नवंबर 2025 से फरवरी 2026 तक रहेगा. QBO का टूटने से तूफान अनियमित हो जाते हैं. नमी असामान्य जगहों पर गिरती है.

चरम मौसमी घटनाएं (जैसे बाढ़, सूखा, लू) क्लस्टर में आती हैं. भारत पर इसका असर सीधा और गहरा होगा, क्योंकि हम हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच स्थित हैं. 

अभी दुनिया में क्या हो रहा है?

  • दक्षिण-पूर्व एशिया (वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस) में भयंकर बाढ़ और तूफान आ रहे हैं.
  • समुद्र का पानी रिकॉर्ड गर्म है (विशेषकर पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागर).

ऊपर की हवाएं टूटने से नीचे का मौसम अनियंत्रित हो जाता है – मतलब बारिश, तूफान, सूखा सब एकदम से आने लगते हैं और ज्यादा तीव्र हो जाते हैं.

1. QBO क्या है और 2025 में यह क्यों टूटा?

स्ट्रैटोस्फियर में एक हवा का इंजन है जो पूर्वी (ईस्टर्ली) और पश्चिमी (वेस्टर्ली) हवाओं को एक के बाद एक चलाता है. यह इंजन हर दो साल में दिशा बदलता है, जो नीचे के मौसम को नियंत्रित करता है. लेकिन 2025 में NOAA के जोनल विंड डेटासेट में पश्चिमी और पूर्वी हवाओं के बहने की लाइनें टूट गई हैं – मतलब पूरी उलट गई है.  

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कारण: जलवायु परिवर्तन से समुद्री सतह का तापमान बढ़ा है. पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागर रिकॉर्ड गर्म हैं (2-3°C ऊपर), जो ऊपरी हवाओं की धारा को अस्थिर बनाते हैं. ला नीना मतलब समुद्र का ठंडा होना. ऊपर हवा का बदलाव और नीचे ला नीना मिलकर डिसरप्शन पैदा कर रहे है.  

असर का समय: प्रभाव 15-30 दिनों में दिखेगा. 2026 तक चलेगा. भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, यह सर्दी (2025-26) को अनियमित बनाएगा. 

भारत के मौसम पर असर (2025-2026)

1. उत्तर-पूर्वी मॉनसून (अक्टूबर से दिसंबर 2025)

सामान्य सालों में इस मौसम में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और पुडुचेरी में हल्की से मध्यम बारिश होती है. एक या कभी-कभी दो कमजोर चक्रवात बनते हैं. लेकिन इस बार QBO के टूटने के कारण यह मौसम पूरी तरह बदला हुआ है और बदलेगा भी. इन राज्यों में सामान्य से 20 से 30% तक ज्यादा बारिश होने की संभावना है.

बंगाल की खाड़ी में 2 से 3 बहुत शक्तिशाली चक्रवात बन सकते हैं, जो फिलीपींस-वियतनाम जैसे तेजी से गहरा रहे तूफानों की तरह होंगे. चेन्नई, कोचीन, विशाखापट्टनम, काकिनाड़ा, मछलीपट्टनम जैसे तटीय शहरों में फिर से भयंकर बाढ़ आने का खतरा है. दिसंबर के पहले हफ्ते तक ही एक और बड़ा सिस्टम बन सकता है.

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2. सर्दी का मौसम (दिसंबर 2025 से फरवरी 2026)

भारत में सर्दी आमतौर पर हल्की ठंडी और कुछ पश्चिमी विक्षोभ लाती है, जो जम्मू-कश्मीर, हिमाचल में बर्फबारी और मैदानी इलाकों में हल्की बारिश देते हैं. इस बार ला नीना पहले से ही ठंड बढ़ा रही है (तापमान सामान्य से 2 से 4 डिग्री कम), लेकिन QBO का टूटना इसे और अनियमित बना देगा.

इसका मतलब है – पहले दिसंबर और जनवरी में बहुत तेज ठंड पड़ेगी, कोल्ड वेव आएगी, फिर फरवरी में अचानक तापमान 5-7 डिग्री ऊपर चला जाएगा. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार में घना कोहरा 10 से 15 दिन तक लगातार रहेगा. हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भारी बर्फबारी और हिमस्खलन का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा.

3. गर्मी का मौसम (मार्च से मई 2026)

सामान्य सालों में मार्च-अप्रैल-मई में तापमान 40 से 45 डिग्री तक रहता है. लेकिन QBO के इस तरह टूटने के बाद अगली गर्मी रिकॉर्ड तोड़ने वाली होगी. मध्य भारत – महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड और पूर्वी राजस्थान में तापमान 48 से 50 डिग्री तक पहुंच सकता है.

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लगातार 15 से 20 दिन तक भीषण लू चलेगी. QBO के असर से जेट स्ट्रीम में टेढ़ापन आएगा, जिससे बारिश के सिस्टम रुक जाएंगे. सूखे की स्थिति बन जाएगी. नागपुर, भोपाल, अहमदाबाद, रायपुर जैसे शहरों में दिन का तापमान 48-50°C तक जा सकता है. हीटवेव से होने वाली मौतें पिछले सालों से कई गुना बढ़ सकती हैं.

4. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून (जून से सितंबर 2026)

सामान्य तौर पर भारत को 90 से 100% LPA (लॉन्ग पीरियड एवरेज) बारिश मिलती है. मॉनसून जून के पहले हफ्ते में केरल पहुंच जाता है. लेकिन 2026 में QBO और ली नीना मिलकर मॉनसून को पूरी तरह बेकाबू बना देगा. मॉनसून केरल में देरी से आएगा – जून का आखिरी हफ्ता या जुलाई का पहला हफ्ता लग सकता है.

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शुरुआत में मॉनसून कमजोर रहेगा, लेकिन जुलाई-अगस्त में सक्रिय होगा. कई जगहों पर 110 से 120% तक भारी बारिश होगी. इसका मतलब है – कुछ इलाकों में भयंकर बाढ़ (बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र) और कुछ इलाकों में लंबा सूखा. यानी एक ही राज्य में एक जिला डूबेगा, दूसरा पानी की तरसेगा. कुल मिलाकर मानसून अनियमित, देर से और विनाशकारी होगा.

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आने वाले 12 महीने भारत के लिए मौसम की दृष्टि से सबसे कठिन दौर होने जा रहा है. यह बदलाव सिर्फ खराब मौसम नहीं है – यह पूरी जलवायु मशीन का एक बड़ा फ्रैक्चर है, जिसका असर हर घर, हर खेत और हर शहर पर पड़ेगा. 

विकसित देशों पर QBO टूटने का असर

यूरोप में सर्दी बहुत ठंडी पड़ेगी. फिर अचानक बाढ़ आ सकती है, जिससे फसलें बर्बाद होंगी. ऊर्जा संकट बढ़ेगा. अमेरिका में कैलिफोर्निया जैसे इलाकों में हफ्तों बारिश से बाढ़ और भूस्खलन होंगे. अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा.  ऑस्ट्रेलिया में रिकॉर्ड बाढ़ या सूखा चलेगा, कृषि प्रभावित होगी. सऊदी अरब में गर्मी और अनियमित बारिश से तेल उत्पादन बाधित, लेकिन ला नीना से कुछ राहत मिल सकती है. कुल मिलाकर, इन देशों की जीडीपी 1-2% तक गिर सकती है.

ज्वालामुखी फटने और भूकंपों से कनेक्शन

QBO टूटने का सीधे ज्वालामुखी या भूकंप नहीं से संबंध नहीं है, लेकिन इसकी वजह से होने वाली चरम मौसम घटनाएं से जमीन में दबाव बदलता है. भूकंप कभी-कभी ज्वालामुखी को ट्रिगर कर सकते हैं, जैसे मैग्मा हिलने से ज्वालामुखी का फटना. दोनों टेक्टॉनिक प्लेट्स की गति से जुड़े हैं, लेकिन QBO का असर मौसम पर ज्यादा है, न कि भूगर्भ पर. वैज्ञानिक कहते हैं, ये अलग घटनाएं हैं पर जलवायु परिवर्तन सबको जोड़ रहा है.

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मानव शरीर पर सीधा- अप्रत्यक्ष असर

  • सीधा असर: लू से डिहाइड्रेशन, हीट स्ट्रोक, मौत; बाढ़ से डूबना, चोटें. ठंड से हाइपोथर्मिया.
  • अप्रत्यक्ष: बीमारियां फैलना (मलेरिया, डेंगू), तनाव से डिप्रेशन, हृदय रोग बढ़ना. कमजोर लोग (बुजुर्ग, बच्चे) सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे.  

भारत की जीडीपी पर असर

2025-26 में अनियमित मॉनसून से कृषि 10-20% प्रभावित होगी. खाद्य महंगाई बढ़ेगी. बाढ़-सूखे से 1-2% जीडीपी का नुकसान हो सकता है, लेकिन ला नीना से अच्छी बारिश से ग्रोथ 6.5-7% रह सकती है. कुल 0.5-1% गिरावट संभव है.  

कृषि पर सबसे बड़ा खतरा

रबी फसल (गेहूं, चना, सरसों, आलू)

  • दिसंबर-जनवरी में ज्यादा ठंड और कोहरे से फसल देर से पकेगी.
  • फरवरी-मार्च में अचानक गर्मी पड़ने से दाने सिकुड़ जाएगा.
  • पंजाब-हरियाणा-उत्तर प्रदेश में गेहूं की पैदावार 10-20% तक कम हो सकती है.

बागवानी (सेब, अंगूर, संतरा, आम)

  • जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में सेब की फसल को ठंड की जरूरत पूरी नहीं होगी.
  • महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश में आम के पेड़ों पर फूल कम आएंगे.

खरीफ फसल 2026 (धान, मक्का, सोयाबीन)

  • अनियमित मॉनसून से बुआई देर से, फिर बाढ़ से फसल डूब जाएगी.

दुनिया में क्या होगा?

  • ऑस्ट्रेलिया: रिकॉर्ड बाढ़ या सूखा. 
  • यूरोप: सर्दी बहुत ठंडी, फिर अचानक बाढ़.
  • अमेरिका: कैलिफोर्निया में भयंकर एटमॉस्फेरिक रिवर यानी हफ्तों बारिश.   
  • दक्षिण-पूर्व एशिया: लगातार तूफान और बाढ़ (फिलीपींस, इंडोनेशिया, थाईलैंड).  

यह स्थानीय नहीं, वैश्विक संकट की शुरुआत है

जो वियतनाम-फिलीपींस में हो रहा है, वही 15-30 दिन बाद भारत में होगा. QBO का टूटना वैसे ही है जैसे ताश के पत्तों से बनाया गया पिरामिड. एक पत्ते का संतुलन बिगड़ा तो पूरा पिरामिड गिर जाता है.  

अगर बारिश होती है तो वो लोकल नहीं है, ग्लोबल मौसम का असर है

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) में अर्थ एंड एनवायरमेंट डिपार्टमेंट के मौसम विज्ञानी प्रो. पंकज कुमार ने कहा कि पूरी दुनिया में इस समय चरम मौसमी आपदाएं देखने को मिल रही हैं. अगर आपके यहां बारिश हो रही है तो वह लोकल मौसम की वजह से नहीं है. उसके पीछे ग्लोबल मौसम का पैटर्न होता है. इसलिए मॉनसून और ठंडी में होने वाली बारिश में बड़े पैमाने पर ग्लोबल मौसमी पैटर्न देखने को मिलता है. 

जो इस समय हालात है उससे लो प्रेशन सिस्टम हाई प्रेशर को खीचेंगा. इससे ठंड बढ़ेगी. अपने यहां साइबेरियन विंड्स आती है. ऐसे में कोई लो प्रेशर सिस्टम बनता है तो वो उसे खीचेंगा, जैसे पंप लगाकर पानी खींचते हैं. उसमें उत्तर का वेस्टर्न डिस्टर्बेंस भी असर डालेगा. ऊपर से ला नीना आ चुका है. अगले कुछ दिनों में ठंड बढ़ेगी. 

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वर्तमान ग्लोबल मौसम को देखकर लग रहा है कि ला नीना इस बार नीचे-नीचे चलेगी. यानी ये इस बार हिमालय के ऊपर से नहीं गुजरेगी. इससे बर्फबारी ज्यादा होगी. मैदानी इलाकों में ठंडा बढ़ेगा. पूरी दुनिया का मौसम इस समय ट्रांसजिशन फेज से गुजर रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है. हिंद महासागर 1 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है. इससे बड़े पैमाने पर नमी पैदा हो रही है. अगर कोई वेदर पैटर्न इसे सपोर्ट करेगा तो भयानक मौसम पैदा करेगा. 

अब तो चरम मौसम की बात ही नहीं होती. नया शब्द आया है कंपाउंड एक्सट्रीम वेदर. यानी संयुक्त चरम मौसम. यानी जब दो या दो से अधिक मौसमी पैटर्न मिलकर एकदूसरे को ट्रिगर करेंगे. इस समय मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस में कंपाउंड एक्सट्रीम वेदर चल रहा है.   

एक साल बारिश, दूसरे साल लू... यही नया नॉर्मल है

आईआईटी रुड़की के पूर्व रिसर्चर और ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. प्रवीण कुमार सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन ने भारत की खेती को बुरी तरह जकड़ लिया है. पिछले 100 साल में तापमान 0.7°C बढ़ चुका है, अब हर दशक तेज गर्मी बढ़ रही है. लू के दिन, तीव्रता और अवधि तीनों बढ़ गए है. 2030 तक दक्षिण एशिया के 90% लोग खतरनाक हीटवेव में रहेंगे. मजदूर, पशु, फसलें – सब संकट में जा रहे हैं. 

मॉनसून अब बेकाबू और अनियमित हो चुका है. गंगा का मैदान, पूर्वोत्तर और मध्य भारत में औसत बारिश घट रही है. लेकिन हालात ऐसे हैं कि दो-तीन घंटे में बाढ़ आ जाती है. एक ही मौसम में एक जिला डूबता है, पड़ोसी तरसता है. चरम मौसम हर साल बढ़ रहा है. शहरों में दो घंटे की बारिश से सड़कें नदी बनती हैं.

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गांवों में फ्लैश फ्लड और भूस्खलन आम हैं. हिमालय में ग्लेशियर झीलें फट रही हैं, तटीय इलाकों में नमकीन पानी घुस रहा है, चक्रवात ज्यादा ताकतवर हो गए हैं. एक साल लू, अगले साल बाढ़ – यही नया नॉर्मल है. फसलों पर सीधा हमला है. गेहूं, चावल, मक्का को तेज गर्मी मारती है.

2.5-5°C और बढ़ा तो गेहूं 40-50%, चावल 30-40% तक कम हो सकता है. बारिश 1600 मिमी से कम या ज्यादा हुई तो चावल की पैदावार 20-35% गिर जाती है. पशु बीमार हो जाते हैं. खेती के दिल वाले इलाकों (बिहार, यूपी, बंगाल, एमपी) में औसत बारिश घट रही है. राजस्थान-गुजरात में पहले सूखा था, अब एक-दो दिन में बाढ़ आ जाती है. पड़ोसी देश भी डूब रहे हैं. 

ये सबकुछ स्थानीय स्तर पर नहीं हो रहा है. इसके पीछे दुनिया भर के मौसमी पैटर्न भी जिम्मेदार है. अगर आर्कटिक सर्किल की जेट स्ट्रीम ठंडी होगी तो असर यूरोप, अफ्रीका और भारत पर भी पड़ेगा. इसे अटलांटिक मेरिडियन ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) कहते हैं. यह एक तरह की धारा है जो कम गर्म है. इससे बर्फबारी और बर्फीले तूफान बढ़ेंगे.    

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