सौर तूफान
सौर तूफान (Solar Storm) सूर्य पर एक विक्षोभ है (Disturbance on Sun), जो पृथ्वी और उसके मैग्नेटोस्फीयर सहित पूरे सौर मंडल को प्रभावित करते हुए, हेलिओस्फीयर में बाहर की ओर निकल सकता है. यह लंबी अवधि के पैटर्न से थोड़े वक्त के लिए अंतरिक्ष के हालात को बदलने में सक्षम हो सकता है.
सौर मंडल में, सूर्य तीव्र भू-चुंबकीय और ऊर्जावान कण तूफान पैदा कर सकता है जो प्रौद्योगिकी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है. इसके परिणामस्वरूप, बड़े पैमाने पर बिजली की कटौती, रेडियो संचार (जीपीएस सहित) में रुकावट या ब्लैकआउट, पनडुब्बी संचार केबलों की क्षति या विनाश, और उपग्रहों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स के अस्थायी से स्थायी रूप से अक्षम हो सकते हैं. तीव्र सौर तूफान उच्च-अक्षांश, उच्च-ऊंचाई वाले उड़ान और मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए भी खतरनाक हो सकते हैं. सबसे बड़ा सौर तूफान सितंबर 1859 में आया था. सबसे शक्तिशाली सौर तूफान आधुनिक मानव सभ्यता की स्थिरता को खतरे में डालने में सक्षम हैं (Effects of Solar Storm)
सौर तूफानों में शामिल हैं: सोलर फ्लेयर, सूर्य के वातावरण में एक बड़ा विस्फोट होता है, जो मैग्नेटिक फील्ड के रिऑर्गनाइज होने या उसे क्रॉस करने के कारण होता है. कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सूर्य से बड़े पैमाने पर प्लाज्मा के फटने, और कभी-कभी सौर फ्लेयर्स से जुड़ा होता है. भू-चुंबकीय तूफान, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ सूर्य के विस्फोट की परस्पर क्रिया है. सोलर पार्टिकल इवेंट (SPE), प्रोटॉन या ऊर्जावान कण (SEP) का तूफान है (Types of Solar Storm).
दुनिया का मौसम इस समय पूरी तरह बेकाबू हो चुका है. जमीन से 20-30 km ऊपर बहने वाली हवा यानी QBO नवंबर में ही पलट गई, जो आमतौर पर जनवरी-फरवरी में बदलती है. भारत समेत पूरी दुनिया पर 2025-26 में इसका भयंकर असर पड़ेगा. यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब भी बाढ़, ठंड और सूखे की दोहरी मार झेल रहे हैं. यह कोई स्थानीय मौसम नहीं, पूरा ग्लोबल सिस्टम टूटने की शुरुआत है.
12 नवंबर 2025 को सूरज के विस्फोटों से भयानक जियोमैग्नेटिक तूफान आया. अमेरिका के आसमान को हरा-लाल-बैंगनी रंगों से सजाया. NOAA ने जीपीएस, बिजली ग्रिड और सैटेलाइट्स पर खतरे की चेतावनी दी. ब्लू ओरिजिन ने लॉन्च टाला. सोलर मैक्सिमम नजदीक है. ऐसे नजारे बढ़ेंगे. चश्मदीदों ने शानदार फोटो शेयर कीं.
भारत के चंद्रयान-2 ने पहली बार सूरज के कोरोनल मास इजेक्शन (CME) का चंद्रमा पर असर देखा. CHACE-2 उपकरण ने 10 मई 2024 को दिन वाले हिस्से में एक्सोस्फियर का दबाव 10 गुना बढ़ने का रिकॉर्ड किया. यह खोज चंद्रमा की पतली हवा, स्पेस वेदर और लूनर बेस निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है.
हाल ही में धरती की तरफ सूरज में प्यार भरा दिल दिखाया. सोलर सिस्टम के सबसे बड़े और पृथ्वी के एनर्जी सोर्स ने रोमांटिक सरप्राइज दिया. एक बड़ा सा कोरोनल होल उभरा, जो बिल्कुल दिल के आकार का था. ये दिल धरती से कई गुना बड़ा था. सोलर सिस्टम भर में सूर्य कणों की तेज धारा भेज रहा था.
सूरज की गतिविधियां बढ़ रही हैं. नासा को इसका कारण नहीं पता. 2019 में वैज्ञानिकों ने सोचा था कि सोलर साइकिल 25 कमजोर होगा, लेकिन यह औसत से ज्यादा एक्टिव है. 2008 से सौर हवा की ताकत बढ़ रही है. सनस्पॉट्स पूरी तस्वीर नहीं दिखाते. सौर तूफान और CMEs से बिजली, सैटेलाइट्स प्रभावित हो सकते हैं. नासा निगरानी और शोध कर रहा है.
14,300 साल पहले का सौर तूफान धरती पर आए सबसे बड़े तूफानों में से एक था. आज की दुनिया के लिए एक चेतावनी है. भारत जैसे देश, जो अंतरिक्ष और तकनीक में आगे बढ़ रहे हैं, को ऐसे तूफानों से बचने की तैयारी करनी होगी. यह खोज हमें सूरज की ताकत और अपनी कमजोरियों को समझने का मौका देती है.
सूरज इस समय भयानक गुस्से में है. सूरज की वजह से तीन ऑस्ट्रेलियाई सैटेलाइट धरती के ऊपर ही जल गए. ये बाइनर स्पेस प्रोग्राम के सैटेलाइट्स थे. इस समय सूरज का सोलर मैक्सिमम फेज़ चल रहा है. आइए समझते हैं कि सूरज का सोलर मैक्सिमम क्या है? इससे क्या नुकसान हो सकता है?
8 अगस्त 2024 को NASA के वैज्ञानिकों 24 घंटे के अंदर सूरज पर सैकड़ों धब्बे (Sunspots) देखे. ये सभी सूरज के अलग-अलग हिस्सों में निकले. इसकी वजह से वैज्ञानिक थोड़ा डरे हुए हैं, क्योंकि इस समय सूरज सोलर मैक्सिमम पर चल रहा है. यानी धरती पर कई बार और ताकतवर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तूफान आ सकता है. जिससे कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं.
सूरज ने इतिहास का सबसे ताकतवर सौर लहर छोड़ी है. जिसे ISRO के Aditya-L1 स्पेसक्राफ्ट ने कैप्चर किया है. ये भयानक X Class की सौर लहर थी. जिसका असर दुनिया भर के संचार सिस्टम, सैटेलाइट्स, पावर ग्रिड और नेविगेशन सिस्टम पर पड़ सकता है. आइए जानते हैं सूरज इतने गुस्से में क्यों है?
पिछले 20 वर्षों में सूरज ने 12 मई 2024 को सबसे ज्यादा आग उगली है. सूरज की सतह पर बड़ा विस्फोट हुआ है. जिससे निकले सौर तूफान की वजह उत्तरी ध्रुव से लेकर लंदन और अमेरिका के कई राज्यों में आसमान का रंग बदल गया. इसकी वजह से पृथ्वी के चारों तरफ रेडियो ब्लैकआउट हो गया.
सूरज की सतह में एक बहुत बड़ा छेद हो गया है. इसकी चौड़ाई 8 लाख किलोमीटर है. यानी इसमें 60 पृथ्वी समा जाए. डरावनी बात ये है कि इस छेद से सुपरफास्ट सौर लहरें धरती की तरफ आ रही हैं. तीव्र रेडिएशन वाली लहरें तेजी से पृथ्वी की तरफ आ रही हैं. वैज्ञानिक भी अचानक बने इतने बड़े छेद से हैरान हैं.
कैसा होता है सौर तूफान? क्या हो अगर उसमें कुछ फंस जाए? NASA का सूर्य मिशन Parker Solar Probe हाल ही में सूरज से निकली तूफानी लहर के बीच फंस गया. उसके बाद उसके कैमरे ने जो कैद किया, वो आपको हैरान कर देगा. आपको सौर लहर की डरावनी आवाज भी सुनाई देगी. देखिए Video...
कल यानी 6 जुलाई 2023 को सूरज से अपनी धरती सबसे ज्यादा दूर होगी. लेकिन इतनी दूर जाने के बाद भी हमारी दुनिया में गर्मी कम नहीं होगी. सूरज आग उगलता रहेगा. पूरी दुनिया हीटवेव का सामना करती रहेगी. आइए जानते हैं कि पृथ्वी जब इतनी दूर हो जाती है सूरज से, तब भी गर्मी कम क्यों नहीं होती?
पहली बार अंतरिक्ष से जमीन पर सूरज से मिली ऊर्जा की एक तेज लहर भेजी गई है. यह लहर पृथ्वी की निचली कक्षा से जमीन पर भेजी गई. यह एक सफल प्रयोग था. यानी भविष्य में वैज्ञानिक अंतरिक्ष में सोलर पैनल लगाकर धरती को बिजली की सप्लाई कर सकते हैं.
सूरज से निकलने वाली गर्म प्लाज्मा लहर यानी Solare Flares को वैज्ञानिकों ने लैब में तैयार कर लिया. सूरज से निकलने वाली प्लाज्मा लहरों की लंबाई लाखों-करोड़ों किलोमीटर होती है. लेकिन लैब में इस लहर की लंबाई एक सामान्य केले के आकार की थी. इन लहरों की स्टडी से सूरज से संबंधित खुलासे होंगे.
यूरोप की तरफ मौजूद स्कैंडिनेवियन देशों के आसमान में एक अजीब खूनी लाल रोशनी दिखाई दी. सबसे ज्यादा गहरा रंग डेनमार्क के आसमान में था. ये पिछले छह सालों के बाद और ताकतवर सौर तूफान की वजह से बनी लेकिन यह रोशनी नॉर्दन लाइट्स नहीं थी. इसकी पहचान करने के लिए वैज्ञानिक लगे है.
पृथ्वी से 138 प्रकाशवर्ष दूर ऐसा रहस्यमयी ग्रह मिला है, जो दूसरी धरती बन सकता है. यह ग्रह लगातार पानी वाले ग्रह में बदल रहा है. लगातार सिकुड़ रहा है यानी पृथ्वी की तरह ही खुद को मजबूत और स्थाई बना रहा है. जानिए इस ग्रह के बारे में...
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने फरवरी में इसरो को NISAR अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट सौंपा था. आज यानी 9 मार्च 2023 को अमेरिकी वायु सेना के C-17 विमान ने बेंगलुरु में उतारा. उसके बाद उसे बेंगलुरु स्थित इसरो सैटेलाइट असेंबलिंग सेंटर में ले जाया गया. इसकी लॉन्चिंग अगले साल होगी.
पहली बार नासा में साइंस चीफ पद किसी महिला वैज्ञानिक को दिया गया है. लंबे समय से सूर्य का अध्ययन कर रहीं निकोल फॉक्स अब नासा की नई साइंस चीफ होंगी. निकोला सूर्य से निकलने वाले रेडिएशन, ग्रहों और उपग्रहों पर उसके प्रभावों की स्टडी कर रही हैं. आइए जानते हैं कि कौन हैं निकोला फॉक्स...
एक विशालकाय धूमकेतु मिला है, जो दूसरे सौर मंडल से आया है. यह बेहद तेजी से हमारे सूरज की ओर जा रहा है. यानी ये सूरज से टकराकर सुसाइड करने की ओर बढ़ रहा है. वैज्ञानिकों ने इतना बड़ा धूमकेतु इससे पहले कभी नहीं देखा. इस धूमकेतु को नासा के गैलेक्सी इवोल्यूशन एक्सप्लोरर सैटेलाइट ने खोजा है.
सूरज फट रहा है. पिछले कुछ दिनों में उसकी सतह पर कई विशालकाय गड्ढे हो गए हैं. इतने बड़े गड्ढे की उसमें कई पृथ्वी समा जाएं. इन गड्ढों की वजह से हमारे नीले ग्रह के लिए भी खतरा है. वैज्ञानिकों ने इन गड्ढों को लेकर चेतावनी भी दी है. इनसे अगले दो दिनों में सौर तूफान आने की आशंका है.