बदल गया भारत का भूकंप मैप, नया VI जोन जुड़ने से खतरे में आया 61% देश, जानिए अपनी सिटी का हाल

भारत का नया भूकंप मैप (2025) आ गया है. इसमें नया जोन जोड़ा गया है. अब 5 जोन हैं, नया जोन VI हिमालय के लिए. 61% भारत अब मध्यम-उच्च खतरे में है. जानिए ये मैप क्यों बनाया गया और इसकी जरूरत क्यों पड़ी? क्या अब दिल्ली-NCR, देहरादून और अगरतला जैसे शहर ज्यादा खतरे में हैं.

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ये है भारत का नया भूकंप का मैप. लाल रंग में दिख रहे इलाके सबसे ज्यादा खतरे में हैं. (Photo: ITG) ये है भारत का नया भूकंप का मैप. लाल रंग में दिख रहे इलाके सबसे ज्यादा खतरे में हैं. (Photo: ITG)

मिलन शर्मा / ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:33 PM IST

भारत एक ऐसा देश है जहां भूकंप का खतरा हर कोने में छिपा है. 28 नवंबर 2025 को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) ने देश के भूकंप जोन मैप को बदल दिया है. यह नया मैप IS 1893 (2025) नामक भूकंप प्रतिरोधी डिजाइन कोड का हिस्सा है. पुराने मैप में भूकंपों के पुराने एपिसेंटर को देखते हुए जोन बनाए गए थे, लेकिन अब यह मैप ज्यादा वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया गया है.

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इसमें पूरे हिमालयी क्षेत्र को पहली बार सबसे खतरनाक जोन VI में डाल दिया गया है. इस बदलाव से देश के 61% हिस्से को अब मध्यम से उच्च खतरे वाले जोन में रखा गया है. आइए, समझते हैं कि ये मैप कैसे बने? कितने जोन हैं? नया जोन क्यों आया? जोन 1 क्यों हटा? इससे भारत पर क्या असर पड़ेगा?

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भूकंप जोन मैप कैसे बने?

भारत के भूकंप जोन मैप की कहानी 1935 से शुरू होती है. उस समय जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) ने पहला मैप बनाया, जो 1934 के बड़े भूकंप के बाद तैयार हुआ. इसमें देश को सिर्फ तीन जोन में बांटा गया – गंभीर, हल्का और मामूली खतरा. ये मैप भूकंपों से हुए नुकसान की कहानियों पर आधारित थे.

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फिर 1962 में BIS ने इसे छह जोन में बांटा, 1966 में सात और 1970 में पांच जोन (I से V). ये सब पुराने भूकंपों के केंद्र, मिट्टी की प्रकृति और नुकसान की रिपोर्टों पर बने थे. लेकिन समय के साथ ये मैप पुराने पड़ गए. अब नया मैप वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया गया है.

भारत के फॉल्ट लाइन के आधार पर बना नया नक्शा. (Photo: ITG)

इसे प्रोबेबिलिस्टिक सीस्मिक हेजर्ड असेसमेंट (PSHA) कहते हैं. सरल शब्दों में, वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर मॉडल्स का इस्तेमाल करके 50 साल में 2.5% संभावना से होने वाले सबसे बड़े भूकंप का अनुमान लगाया. इसमें शामिल हैं...

  • भूकंप की अधिकतम तीव्रता (मैग्नीट्यूड).
  • मिट्टी, चट्टानों और पुराने भूकंपों का डेटा.
  • सक्रिय फॉल्ट लाइन्स (भूगर्भीय दरारें) की डिटेल.
  • हिलने की तीव्रता (पीक ग्राउंड एक्सेलरेशन या PGA).
  • टेक्टॉनिक प्लेट्स की गति (भारतीय प्लेट हर साल 5 सेंटीमीटर उत्तर की ओर धकेल रही है).

पुराने मैप शहरों या फैक्टरियों के आसपास जोन बदल देते थे, लेकिन नया मैप फॉल्ट्स की वास्तविक शक्ति पर आधारित है. इसमें एक्सपोजर विंडो भी जोड़ा गया, जो जनसंख्या घनत्व और आर्थिक कमजोरी को देखता है. यानी, खतरा सिर्फ जमीन का नहीं, बल्कि लोगों और इमारतों का भी. यह मैप रंगीन है – हरा कम खतरा, लाल ज्यादा.

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भूकंप का सबसे खतरनाक जोन

  • जोन-6... अगरतला, भुज, चंडीगढ़, दार्जिलिंग, लेह, मंडी, पंचकुला, शिमला, शिलांग
  • जोन-5... अम्बाला, अमृतसर, बहराइच, जालंधर, करनाल, सहारनपुर, रामपुर
  • जोन-4... नोएडा, दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद

कितने जोन बने हैं और ये क्या बताते हैं?

पुराने मैप (2002 और 2016) में चार जोन थे – II, III, IV और V. जोन II सबसे कम खतरा, जोन V सबसे ज्यादा. लेकिन नया 2025 मैप में पांच जोन हैं: II, III, IV, V और नया जोन VI. 

  • जोन II: बहुत कम खतरा (11% भूमि), दक्षिण भारत के कुछ हिस्से.
  • जोन III: मध्यम खतरा (30% भूमि), मध्य भारत.
  • जोन IV: उच्च खतरा (18% भूमि), दिल्ली, मुंबई जैसे शहर.
  • जोन V: बहुत उच्च खतरा (11% भूमि), गुजरात का कच्छ, पूर्वोत्तर.
  • जोन VI: सबसे ऊंचा खतरा (नया), पूरा हिमालय– जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल तक.

अब 59% से बढ़कर 61% भूमि मध्यम-उच्च जोन में आ गई. दो जोन की सीमा पर शहर अब ऊंचे जोन में गिने जाएंगे, ताकि खतरा कम न समझा जाए.

देश में आए पुराने भूकंपों के केंद्र के आधार पर बना नया नक्शा. (Photo: ITG)

नया जोन VI क्यों बना? पुराने मैप की कमियां

पुराने मैप में हिमालय को जोन IV और V में बांटा था, लेकिन यह गलत था. हिमालय भारतीय और यूरेशियन प्लेट्स के टकराव पर बना है, जहां हर साल दबाव बढ़ रहा है. मुख्य फॉल्ट्स – मेन फ्रंटल थ्रस्ट, मेन बाउंड्री थ्रस्ट – सदियों से सीस्मिक गैप्स (भूकंप न होने वाले क्षेत्र) रखे हुए हैं. केंद्रीय हिमालय में 200 साल से बड़ा भूकंप नहीं आया, मतलब ऊर्जा जमा हो रही है.

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नया जोन VI इसलिए बना क्योंकि PSHA ने दिखाया कि हिमालय में भूकंप की तीव्रता ज्यादा हो सकती है. बाहरी हिमालय में फॉल्ट्स टूटने पर कंपन दक्षिण की ओर फैलेगा, जैसे देहरादून तक. पुराना मैप प्रशासनिक सीमाओं पर आधारित था, नया भूगर्भीय सच्चाई पर. वैज्ञानिकों का कहना है, यह बदलाव दशकों की गलतियों को सुधारता है.

जोन 1 क्यों हटा दिया गया?

जोन 1 को 2002 में ही हटा दिया गया था (और 2025 में भी यही है). पुराने मैप (1962-1970) में जोन 1 "कोई खतरा नहीं" था, लेकिन वैज्ञानिकों ने कहा कि पृथ्वी पर कहीं भी भूकंप बिल्कुल असंभव नहीं. यह शून्य जोन वैज्ञानिक रूप से गलत था. इसलिए, जोन 1 को जोन II में मिला दिया गया. अब कोई जगह सुरक्षित नहीं मानी जाती – सबको न्यूनतम तैयारी करनी पड़ती है. यह बदलाव 1967 के कोयना भूकंप के बाद आया, जब समझ आया कि सुरक्षित इलाके भी हिल सकते हैं.

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भारत पर क्या असर पड़ेगा?  

यह नया मैप भारत के लिए एक बड़ी चेतावनी है. 75% आबादी अब सक्रिय भूकंप क्षेत्रों में रहती है. तेजी से बढ़ते शहरों (जैसे दिल्ली, देहरादून) में खतरा ज्यादा है. मुख्य प्रभाव...

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निर्माण पर असर: सभी नई इमारतें, पुल, स्कूल, अस्पताल अब सख्त नियमों के तहत बनेंगी. जोन VI में फाउंडेशन 50% मजबूत, स्टील की मात्रा दोगुनी करनी होगी. नॉन-स्ट्रक्चरल पार्ट्स (जैसे छत, टैंक, लिफ्ट) को 1% वजन से ज्यादा होने पर एंकर करना जरूरी हो जाएगा. पुरानी इमारतों का रेट्रोफिटिंग (मजबूतीकरण) अनिवार्य करनी होगी. दक्षिण भारत में मामूली बदलाव, लेकिन हिमालय में निर्माण रुक सकता है. लागत 10-20% बढ़ेगी, लेकिन जानें बचेंगी.

सुरक्षा पर असर: महत्वपूर्ण इमारतें (अस्पताल, स्कूल) भूकंप के बाद भी काम करती रहेंगी. लिक्विफेक्शन (मिट्टी का पिघलना) और सॉफ्ट सॉइल पर नई जांच करनी होगी. सीमा शहरों (जैसे देहरादून) को ऊंचे जोन में डालने से लाखों लोग सुरक्षित होंगे. आपदा प्रबंधन बेहतर होगा – NDRF को नया प्लान बनाना होगा. 

आर्थिक और सामाजिक असर: 61% भूमि उच्च जोन में आने से शहरीकरण धीमा, लेकिन सुरक्षित होगा. भूकंप से सालाना 5-7 अरब डॉलर का नुकसान रुकेगा. किसान, मजदूर, शहरवासी सब प्रभावित – लेकिन लंबे समय में जानमाल की रक्षा होगी. हिमालयी राज्यों (उत्तराखंड, हिमाचल) में पर्यटन और विकास पर ब्रेक लग सकता है, लेकिन हरित निर्माण को बढ़ावा मिलेगा. 

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