रॉकेट
एक रॉकेट (Rocket) एक अंतरिक्ष यान या विमान है जो रॉकेट इंजन से स्पीड प्राप्त करता है. रॉकेट इंजन का निकास पूरी तरह से रॉकेट के भीतर ले जाने वाले प्रणोदक (propellant ) से बनता है.
रॉकेट इंजन क्रिया और प्रतिक्रिया से काम करते हैं और रॉकेट को अपने निकास को विपरीत दिशा में उच्च गति से निष्कासित करके आगे बढ़ाते हैं. इसलिए अंतरिक्ष के निर्वात में काम कर सकते हैं (Rocket engines).
रासायनिक रॉकेट सबसे सामान्य प्रकार के उच्च शक्ति वाले रॉकेट हैं, जो आमतौर पर ऑक्सीडाइजर के साथ ईंधन के दहन से उच्च गति का निकास बनाते हैं. 13वीं शताब्दी तक सांग राजवंश के तहत मध्ययुगीन चीन में पहला बारूद से चलने वाला रॉकेट विकसित हुआ था (first gunpowder-powered rockets in China). उन्होंने इस दौरान MLRS का प्रारंभिक रूप भी विकसित किया. मंगोलों ने चीनी रॉकेट प्रौद्योगिकी को अपनाया और 13वीं शताब्दी के मध्य में मंगोल आक्रमणों के माध्यम से मध्य पूर्व और यूरोप में इसका आविष्कार फैल गया. 1245 के सैन्य अभ्यास में सोंग नेवी द्वारा उपयोग किए जाने वाले रॉकेट रिकॉर्ड किए गए हैं (Oxidised Rocket).
1920 में, क्लार्क विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉबर्ट गोडार्ड (Professor Robert Goddard) ने ए मेथड ऑफ रीचिंग एक्सट्रीम एल्टीट्यूड में रॉकेट तकनीक में प्रस्तावित सुधार प्रकाशित किए थे. आधुनिक रॉकेट की उत्पत्ति 1926 में हुई जब गोडार्ड ने एक उच्च दबाव वाले दहन कक्ष में एक सुपरसोनिक नोजल लगाया. ये नोजल दहन कक्ष से गर्म गैस को एक कूलर, हाइपरसोनिक, गैस जेट में बदल देते हैं, जो थ्रस्ट को दोगुना से अधिक और इंजन दक्षता को 2% से बढ़ाकर 64% कर देता है. बारूद के बजाय तरल प्रणोदक के इस्तेमाल ने वजन कम किया और रॉकेट की प्रभावशीलता में बढ़ोतरी की (Supersonic nozzles).
द्वितीय विश्व युद्ध में रॉकेट के उपयोग ने प्रौद्योगिकी को और विकसित किया और 1945 के बाद मानव अंतरिक्ष यान की संभावना के द्वार खोल दिए (Uses of Rockets in WW II).
रूस ने इसरो को RD-191M सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन की 100% तकनीक दे सकता है. LVM3 रॉकेट में इस्तेमाल होने से GTO पेलोड 4.2 टन से बढ़कर 6.5-7 टन हो जाएगा. भारत में ही बनेगा यह इंजन. गगनयान व भारी उपग्रह मिशनों को बड़ा बढ़ावा मिलेगा.
मौसम ने साथ नहीं दिया, लेकिन LVM3 ने फिर चमत्कार कर दिखाया. 2 नवंबर 2025 को ISRO ने श्रीहरिकोटा से CMS-03 सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च किया. 4410 किग्रा वजनी भारत का सबसे भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइट नौसेना के लिए हिंद महासागर में सुरक्षित संचार व निगरानी मजबूत करेगा. ISRO चीफ वी. नारायणन बोले कि हमारा स्पेस सेक्टर ऊंचाइयों को छू रहा है, नौसेना को नई ताकत मिलेगी.
2 नवंबर 2025 को ISRO का LVM3 रॉकेट 4400 किलो का CMS-03 संचार उपग्रह लॉन्च करेगा. यह भारत का सबसे भारी संचार सैटेलाइट है, जो नौसेना को समुद्री इलाकों में सुरक्षित संचार देगा. ऑपरेशन सिंदूर के सबक से सीख कर यह वायुसेना-नौसेना समन्वय मजबूत करेगा, हिंद महासागर की निगरानी बढ़ाएगा. सफलता से भारत की सैन्य क्षमता नई ऊंचाई छुएगी.
Chandrayaan-3 का चांद पर सफलतापूर्वक पहुंचाने वाले रॉकेट LVM3 से इसरो फिर एक लॉन्च की तैयारी कर रहा है. 2 नवंबर 2025 को देश का सबसे भारी सैटेलाइट CMS-03 लॉन्च किया जाएगा. इसका वजन 4400 किलोग्राम है. यह भारतीय नौसेना के लिए बनाया गया सैटेलाइट है. भारत के समुद्री इलाकों पर नजर रखेगा.
तेजस और सुखोई फाइटर जेट बनाने वाला HAL अब इसरो के लिए रॉकेट बनाएगा. इसरो, IN-SPACe और NSIL के साथ SSLV तकनीक हस्तांतरण समझौते पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं. SSLV 500 किलो से कम वजन के उपग्रह लॉन्च करता है. HAL दो साल तक इसरो की मदद से तकनीक सीखेगा. 10 साल तक रॉकेट बनाएगा.
ISRO नया कमाल करने वाला है. अब 40 मंज़िला बिल्डिंग जितना लंबा रॉकेट बनाएगा, ये रॉकेट 75 टन वजन अंतरिक्ष में ले जाएगा.
इसरो एक 40 मंजिला रॉकेट बना रहा है, जो 75 टन वजन को अंतरिक्ष में ले जाएगा. इसरो अध्यक्ष वी. नारायणन ने बताया कि 2025 में नाविक उपग्रह, N1 रॉकेट और अमेरिका का 6500 किलो का उपग्रह लॉन्च होगा. GSAT-7R नौसेना के लिए बनेगा. भारत के 55 उपग्रहों की संख्या 3-4 साल में तिगुनी होगी. नारायणन को तेलंगाना में डॉक्टरेट सम्मान मिला.
स्मार्टफोन, टैबलेट, कंप्यूटर, लैपटॉप और सैटेलाइट तक में गोल्ड का इस्तेमाल किया जाता है. यहां आज आपको बताने जा रहे हैं टेक इंडस्ट्री और स्पेश मिशन आदि के लिए गोल्ड क्यों इतना जरूरी है. गोल्ड की जगह दूसरा कोई मेटल क्यों इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. आइए इसके बारे में डिटेल्स में जानते हैं.
ISRO 30 दिसंबर 2024 की रात 9 बजकर 58 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लॉन्च पैड से SpaDeX मिशन की लॉन्चिंग करेगा. लॉन्चिंग PSLV-C60 रॉकेट से होगी. इस मिशन से इसरो की इज्जत और देश का मान दोनों जुड़ा है. इस मिशन में एक साथ 24 सैटेलाइट्स जा रहे हैं. जानिए क्यों खास है ये मिशन ...
Japan की निजी स्पेस कंपनी Space One का कायरोस रॉकेट 9 महीने में दूसरी बार लॉन्च के बाद फट गया. तीन मिनट की उड़ान के बाद हवा में ही सेल्फ डिस्ट्रक्ट हो गया. इससे जापानी स्पेस इंडस्ट्री को तगड़ा झटका लगा है.
ISRO तैयार है. Chandrayaan-4 अगले चार साल में लॉन्च करने की प्लानिंग है. इस बार ये मिशन कई जटिल तकनीकी घटनाओं का मिश्रण होगा. इस मिशन में कई कमाल की चीजें होंगी. चांद से मिट्टी-पत्थर का सैंपल धरती पर लाया जाएगा. अंतरिक्ष में डॉकिंग-अनडॉकिंग होगी.
ISRO के श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट में अभी दो लॉन्च पैड हैं. लेकिन वह तीसरे लॉन्च पैड को बनाने की तैयारी कर चुका है. इस लॉन्च पैड से वो रॉकेट छोड़े जाएंगे जो दूसरे ग्रहों और ह्यूमन स्पेसफ्लाइट की लिए जरूरी होंगे. जैसे- NGLV रॉकेट. इससे कई तरह के मिशन होंगे. ये रॉकेट लॉन्च पैड पर ही लिटाकर असेंबल किया जाएगा.
भारत का रक्षा बजट बढ़ा है. स्वदेशी हथियार भी खूब बन रहे हैं. बिक रहे हैं. फिर भी लंबी दूरी के रॉकेट लॉन्चर सिस्टम में चीन और पाकिस्तान से पीछे हैं. खासतौर से MLRS के मामले में. अभी हमारे यहां 300 किलोमीटर रेंज के रॉकेट डेवलप हो रहे हैं, वहां चीन के पास लंबी दूरी के 450 से ज्यादा MLRS हैं.
रूस का एक शहर है बेल्गोरोद. जहां कल रात आसमान से कई गोले गिरे. रूस का दावा है कि ये यूक्रेन के RM seventy Vampire MLRS के रॉकेट्स थे, जिन्होंने आम लोगों को निशाना बनाया है. जबकि दूसरी तरफ ये खबर भी आ रही है कि रूस ने अपने ही लोगों पर गलती से पंतशिर एयर डिफेंस सिस्टम की मिसाइलें दाग दी.
रूस के शहर बेल्गोरोद पर आर्टिलरी हमला हुआ. कहा जा रहा है कि यूक्रेन के RM-70 Vampire MLRS से हमला किया गया. जिसमें कई आम नागरिक मारे गए. कुछ लोगों का कहना है कि ये रूस का ही हमला है, जो गलती से अपने शहर पर हो गया. लेकिन हमले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
इजरायल पर हिजबुल्लाह जिन रॉकेटों से हमला कर रहा है, वो रूस में बनी हैं. इन रॉकेट्स को कात्युशा (Katyusha) कहते हैं. इसे रूस में सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समय बनाया था. यह एक मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम है, जिसे रूस में 'मौत की मिसाइलें' कहते हैं. आइए जानते हैं इसकी ताकत...
भारत का पहला रीयूजेबल हाइब्रिड रॉकेट RHUMI-1 सफलतापूर्वक लॉन्च हो गया है. इसे लॉन्च किया है तमिलनाडु की स्टार्ट-अप कंपनी स्पेस जोन इंडिया और मार्टिन ग्रुप ने. इस रॉकेट में तीन क्यूब सैटेलाइट्स और 50 PICO सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए हैं. लॉन्चिंग एक मोबाइल लॉन्चर से की गई है.
शुक्रवार को इसरो की ऐतिहासिक लॉन्चिंग है. इससे देश को आधिकारिक तौर पर नया रॉकेट मिलेगा. साथ ही जो सैटेलाइट छोड़ा जा रहा है, उससे आपदाओं की जानकारी पहले मिल जाएगी. जानते है कि ये लॉन्च किस तरह से महत्वपूर्ण है ISRO और देश के लिए...
China ने एलन मस्क को टक्कर देने के लिए जो 18 सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े. उसकी वजह से 300 कचरा फैल गया है. ये कचरा लॉन्ग मार्च 6ए रॉकेट के ऊपरी हिस्से का है. जो अंतरिक्ष में जाकर टूट गया. अब इसकी वजह से दुनियाभर के सैटेलाइट्स और स्पेस स्टेशन को खतरा पैदा हो सकता है.
ISRO अपने नए अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट EOS-8 की लॉन्चिंग के लिए तैयार है. इसकी लॉन्चिंग SSLV-D3 रॉकेट से की जाएगी. इसरो इसकी लॉन्चिंग स्वतंत्रता दिवस के दिन यानी 15 अगस्त को सुबह 9.17 बजे करेगा. आइए जानते हैं कि यह सैटेलाइट क्या काम करेगा? इससे देश को किस तरह का फायदा होगा?
ISRO के रॉकेट्स को ताकतवर इंजन देने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे नंबी नारायणनन, जब उन्हें जासूसी के फर्जी केस में फंसाया गया. ये जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, उसी की बदौलत आज इसरो दुनिया का सरताज बना हुआ है. सबसे ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च करने वाली स्पेस एजेंसी बना है. जानते हैं इस होनहार वैज्ञानिक के प्रोजेक्ट के बारे में...