scorecardresearch
 

बदल रहा है भारत में मॉनसून... हर 10 साल में हो रही 1.6 दिन की बढ़ोतरी, भारी आपदाओं के बाद देरी से विदाई

भारत में मॉनसून का चरित्र बदल रहा है. हर 10 साल में 1.6 दिन की बढ़ोतरी हो रही है. मॉनसून देर तक रुकता है. देर से जाता है. क्लाइमेट चेंज और अल नीनो इसके कारण हैं. यह खेती और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है. तबाही, फ्लैश फ्लड, बाढ़ की वजह से हजारों लोग मारे जाते हैं.

Advertisement
X
मुंबई में भारी बारिश के बीच सड़क पर जमा पानी को पार करता हुआ कुत्ता. (File Photo: PTI)
मुंबई में भारी बारिश के बीच सड़क पर जमा पानी को पार करता हुआ कुत्ता. (File Photo: PTI)

भारत की कृषि मॉनसून जीवनरेखा है. जून से अक्टूबर के बीच आने वाला मॉनसून देश की कुल बारिश का करीब तीन-चौथाई हिस्सा देता है. जो खेती, अर्थव्यवस्था और आम लोगों की जिंदगी को प्रभावित करता है. लेकिन अब मॉनसून का चरित्र बदल रहा है. इसके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं. 

मॉनसून का नया रूप

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वैज्ञानिकों ने 1971 से 2020 के आंकड़ों का विश्लेषण किया है. इस अध्ययन से पता चला है कि मॉनसून की अवधि हर दशक औसतन 1.6 दिन बढ़ रही है. यानी अब मॉनसून पहले से ज्यादा देर तक रहता है. इसकी विदाई भी देर से होती है.

सामान्य तौर पर मॉनसून 1 जून को केरल में शुरू होता है. 15 जुलाई तक पूरे भारत में फैलता है. 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक वापस चला जाता है. लेकिन अब यह समय बढ़ रहा है, खासकर उत्तर-पश्चिम भारत से विदाई में देरी हो रही है.

यह भी पढ़ें: भारत में मौसम का कहर: 7 महीनों में 1626 मौतें, 1.57 लाख हेक्टेयर फसलें बर्बाद

 Monsoon is changing in India

क्यों हो रहा यह बदलाव?

वैज्ञानिकों का मानना है कि क्लाइमेट चेंज और बढ़ते तापमान इसके पीछे की बड़ी वजह हैं. 1986 से 2015 के बीच भारत का औसत तापमान हर दशक में 0.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. आने वाले सालों में यह और तेज हो सकता है.

Advertisement

ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल (CMIP6) के अनुसार, तापमान में एक डिग्री की बढ़ोतरी से मानसून की बारिश में 6% का इजाफा हो सकता है. अल नीनो (समुद्री तापमान में बदलाव) भी बारिश के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है.

यह भी पढ़ें: प्रकृति का कहर: भागीरथी की धारा बदली, हर्षिल में बनी खतरनाक झील

बारिश का पैटर्न और बढ़ोतरी

अध्ययन में पाया गया कि मॉनसून के सक्रिय दिनों की संख्या भी हर दशक 3.1 दिन बढ़ रही है. जून से सितंबर के बीच होने वाली बारिश साल की कुल बारिश का 75% होती है, जबकि जून से अक्टूबर तक यह 79% तक पहुंचती है.

1971-2020 के बीच बारिश के आंकड़ों में अंतर भी दिखा. खास तौर पर जून से अक्टूबर तक की बारिश फसलों पर ज्यादा असर डालती है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है.

 Monsoon is changing in India

असर और चुनौतियां

मॉनसून की देरी और लंबी अवधि खेती की समय-सारणी को बिगाड़ सकती है. बुवाई और कटाई का समय गड़बड़ा सकता है, जिससे किसानों को नुकसान हो सकता है. ज्यादा बारिश से बाढ़ और कम बारिश से सूखा का खतरा बढ़ रहा है. यह बदलाव जल प्रबंधन, बांधों की योजना और खाद्य भंडारण पर भी असर डालता है. उत्तर-पश्चिम भारत में देर से विदाई होने से वहां की फसलों को और चुनौती मिल रही है.

Advertisement

नीतियों का सवाल

मॉनसून अब सिर्फ मौसम का मुद्दा नहीं, बल्कि नीति बनाने का भी विषय बन गया है. सिंचाई, जलाशयों का प्रबंधन, और खाद्य सुरक्षा रणनीति को इसके हिसाब से बदलना होगा। मौसम विज्ञानियों, कृषि विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं को मिलकर नई योजनाएं बनानी चाहिए, जो इस बदलते मानसून के साथ तालमेल बिठा सकें.

भविष्य के लिए क्या करें?

वैज्ञानिकों का कहना है कि मॉनसून के बदलते स्वरूप को समझने के लिए और गहराई से अध्ययन की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए पेड़ लगाना, प्रदूषण कम करना और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना जरूरी है. किसानों को नई तकनीक और बीज उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि वे बदलते मौसम का सामना कर सकें.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement