हथियारबंद आतंकियों ने पहलगाम की बैसरन घाटी के पास घुड़सवारी कर रहे सैलानियों पर अंधाधुंध फायरिंग की, और चुन चुन कर 28 बेकसूरों को मार डाला. अगस्त, 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद ये सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है - और 26/11 के मुंबई हमले के बाद ये सबसे बड़ा आतंकी अटैक है, जिसमें आम लोगों को टार्गेट किया गया है.
हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े टीआरएफ यानी 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' ने ली है. पुलिस की वर्दी में अत्याधुनिक हथियारों से लैस हमलावरों ने सैर सपाटे के लिए पहुंचे लोगों की हत्या से पहले उनका धर्म भी पूछा. चेक करने के लिए कलमा पढ़ने को कहा, और फिर गोली मार दी.
पाकिस्तान ने हमले से पल्ला झाड़ लिया है, लेकिन सोशल मीडिया पर ये दावा किया जा रहा है कि सरहद के पास पाकिस्तान ने फौजी गतिविधियां बढ़ा दी है, और लड़ाकू विमानों के भी उड़ान भरने के स्क्रीनशॉट शेयर किये जा रहे हैं - अभी क्या चल रहा है, इसकी पुष्टि भले न हुई हो, लेकिन 2019 के पुलवामा हमले के बाद ये सब तो हुआ ही था.
बार बार ऐसी बड़ी चूक क्यों, और कैसे हो जाती है?
पहलगाम के जिस बैसरन इलाके में आतंकी हमला हुआ है, वहां न तो किसी तरह की सिक्योरिटी मॉनिटरिंग के इंतजाम किये गये थे, न ही कोई सुरक्षा बंदोबस्त.
आतंकियों को तो ऐसे ही मौके की तलाश थी. और, वे अपने मंसूबों को अंजाम देने में कामयाब हो गये - बार बार सवाल यही उठता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में आखिर किस बात की कमी हर बार रह जाती है?
1. पहलगाम जैसे पर्यटक स्थल आतंकियों के लिए आसान टार्गेट हो सकते थे, लेकिन न तो सुरक्षा के ही जरूरी इंतजाम थे, न ऐसी इमरजेंसी में क्विक रिस्पॉन्स जैसा ही कोई इंतजाम - और आतंकवादियों ने इन सुरक्षा की इन खामियों का पूरा फायदा उठाया है.
2. बताते हैं कि खुफिया एजेंसियों ने इनपुट भी दिये थे, लेकिन न तो उनका ठीक से विश्लेषण किया गया, न उसके हिसाब से कोई कार्रवाई हुई. अप्रैल के शुरू में ही इलाके के कुछ होटलों में रेकी किये जाने की खुफिया सूचना भी मिली थी. खुफिया सूत्रों ने यहां तक चेतावनी दी थी कि आतंकी संगठन पहलगाम जैसे पर्यटक स्थलों को कभी भी निशाना बना सकते हैं, और वे किसी बड़े हमले की फिराक में हैं.
3. अभी मार्च के शुरू में ही केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने जम्मू में हाई लेवल सुरक्षा बैठक की थी. 6, अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी श्रीनगर में इंटीग्रेटेड कमान की बैठक की अध्यक्षता की थी - क्या खुफिया जानकारियों और सुरक्षा इंतजामों पर चर्चा नहीं हुई होगी? क्या पहलगाम जैसे पर्यटन स्थलों की सुरक्षा पर किसी का ध्यान नहीं गया होगा?
4. आखिर ये कैसे हो रहा है कि आतंकवादी मौके पर पहुंच कर चुपचाप रेकी भी कर लेते हैं, लोकल सपोर्ट भी हासिल कर लेते हैं, और हमले के लिए उनको ऐसा टार्गेट भी मिल जाता है जहां कोई जवाबी फायरिंग करने वाला भी नहीं होता है - आखिर इससे बड़ी सुरक्षा व्यवस्था की कौन सी खामी हो सकती है?
एहतियाती इंतजाम हमले रोक भी तो सकते हैं
संसद के जरिये धारा 370 खत्म कर दिये जाने के बाद पाकिस्तान के लिए जम्मू कश्मीर का मामला अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाना बंद तो नहीं, लेकिन बेअसर जरूर हो गया था. भारत की डिप्लोमैटिक कोशिशों की बदौलत पाकिस्तान को अरब जगत और मुस्लिम मुल्कों से मिलने वाला सपोर्ट भी पहले जैसा नहीं रहा है. ऊपर से अरब मुल्कों में भारत की पैठ और प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है - जाहिर, रोजमर्रा की मुश्किलों से लगातार जूझ रहे पाकिस्तान को ये सब बर्दाश्त कर पाना मुमकिन तो नहीं ही हो पा रहा होगा. लिहाजा, नये नये पैंतरे अपनाता है.
1. पहलगाम हमला ऐसे वक्त होता है जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपने परिवार के साथ भारत दौरे पर होते हैं, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की यात्रा पर - निश्चित तौर पर मौका देखकर ही हमले को अंजाम दिया गया है.
सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी से मालूम होता है कि हमले को चार आतंकियों ने अंजाम दिया है, और उनमें दो पाकिस्तानी नागरिक शामिल हैं. लेकिन, पाकिस्तान का दावा है कि हमले में उसका कोई हाथ नहीं है. वैसे भी पाकिस्तान ने तो मुंबई हमले में जिंदा पकड़े गये कसाब को भी अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया था.
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का एक बयान आया है, जिसमें उनका कहना है, पाकिस्तान का इससे कोई ताल्लुक नहीं है… भारत के भीतर ही कई संगठन हैं, जिनमें घरेलू स्तर पर बगावते हैं… एक दो नहीं, बल्कि दर्जनों हैं… नगालैंड से लेकर कश्मीर तक हैं… साउथ में, छत्तीसगढ़ में… मणिपुर में.
पाकिस्तान की तरफ से इससे इतर स्टैंड की उम्मीद करना भी बेकार है, लेकिन हमले के जरिये उसकी फायदा उठाने की कोशिश तो साफ है ही. हमले के जरिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ये मैसेज देने की कोशिश है कि जम्मू कश्मीर में हालात बिल्कुल भी ठीक नहीं हैं. हाल ही में पाकिस्तानी फौज की तरफ से सीजफायर का उल्लंघन, एलओसी से घुसपैठ की आतंकियों की कोशिश भी तो ऐसे ही इशारे कर रही है.
2. 2000 में 21-25 मार्च के बीच तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का दौरा था, और ठीक एक दिन पहले 20 मार्च को रात में अनंतनाग के चिट्टीसिंहपोरा में 36 सिखों का नरसंहार किया गया था. कोई दो राय नहीं है, पहलगाम की घटना भी बिल्कुल उसी तरीके और मकसद से अंजाम दी गई लगती है.
कुछ सवालों के जवाब क्यों नहीं मिल पाते?
आखिर सबकुछ होते हुए भी दहशतगर्दों को खूनी खेल खेलने के लिए खुला मैदान कैसे मिल जाता है? आखिर किस स्तर पर ऐसी लापरवाही बरती जाती है? और, क्या ऐसे ढीले ढाले रवैये के लिए जिम्मेदार किसी स्तर पर कोई कार्रवाई भी होती है? अगर नहीं होती है, तो क्यों नहीं होती?
जब भ्रष्ट या ठीक से काम न करने वाले अफसरों को जबरन रिटायर किया जाता है, तो ऐसे मामलों में लापरवाही के लिए कोई जिम्मेदार क्यों नहीं खोजा जाता है.
अगर किसी रेल दुर्घटना के लिए कोई अफसर को खामियाजा भुगतना पड़ता है, जिला स्तर पर कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदारियां तय हैं, तो आंतकी हमलों के मामले में किसी तरह की कार्रवाई की खबर क्यों नहीं आती है?
बेशक उरी और पुलवामा के बाद सर्जिकल स्ट्राइक जैसे बेहद सख्त कदम उठाये गये, लेकिन ये हमला तो यही बता रहा है कि ऐसे हमले रोकने के जरूरी उपाय हुए ही नहीं हैं.