विपक्ष को संगठित कर एनडीए गठबंधन को चुनौती देने आया इंडिया एलायंस विपक्ष के नेताओं लिए पनौती बन गया है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार बहुत उत्साह के साथ देश भर के विपक्ष को एक मंच पर लाए और एनडीए के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन खड़ा करने की कोशिश की. एक समय तो ऐसा लगा कि इंडिया के सामने एनडीए बैकफुट पर पहुंच गया है.
पीएम नरेंद्र मोदी तक हर रोज इंडिया एलायंस को टार्गेट करने लगे. इंडिया बनाम भारत पर ऐसी बहस शुरू हुई कि जो देश ने पहले कभी नहीं देखी थी. मगर, देखते ही देखते इंडिया एलायंस विपक्ष के नेताओं के लिए ऐसा पनौती साबित हुआ कि तमाम सक्रिय और मुखर नेता खुद बनाए जाल में फंसते गए. इन सबके बीच खास बात ये रही है कि कांग्रेस का भी गठबंधन से मोहभंग होने लगा.
उदयनिधि से लेकर नीतीश कुमार तक खुद के लिए गड्ढा खोदा
इसे संयोग कहा जाए या दुर्योग. इंडिया एलायंस के बनने के बाद से ही कुछ ऐसी घटनाएं होती गईं कि संगठन को पनौती बोलना पड़ रहा है. अभी गठबंधन आकार ले ही रहा था कि तमिलनाडु में उदयनिधि ने सनातन धर्म को खत्म करने का ऐसा बयान दे दिया, जिससे एनडीए के साथियों को इंडिया गठबंधन पर हमला करने का मौका मिल गया. हालत ये हो गई कि एलायंस के साथियों में फूट की नौबत आ गई. कांग्रेस जैसी पार्टी सीधे तौर पर 2 फाड़ में नजर आई.
सनातन के चक्कर में ही कमलनाथ ने इंडिया एलायंस की मीटिंग मध्य प्रदेश में नहीं होने दी. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह इंडिया गठबंधन के हर बैठकों में पहुंचने वाले सबसे सक्रिय नेताओं में रहे. समय की सुई कुछ ऐसी घूमीं कि उन्हें जेल जाना पड़ा. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को अपने एक खास दोस्त के दगा देने के चलते ईडी के में शिकंजे में फंस गईं.
एलायंस के सूत्रधार नीतीश कुमार ने अपनी फजीहत विधानसभा में महिलाओं के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करके करा ली. नीतीश कुमार का 75 आरक्षण वाला कार्ड भी उनके बयान के आगे मद्धिम पड़ गया. कांग्रेस नेता सुरजेवाला की बोलती उन्हीं की पार्टी के आचार्य प्रमोद कृष्णन ने बंद कर दी. आचार्य ने जो आरोप लगाए हैं, सुरजेवाला उसका जवाब देते-देते थक जाएंगे.
कांग्रेस भी खुद ब खुद दूर हो रही एलायंस से
हाल के दिनों में कांग्रेस का इंडिया गठबंधन से मोहभंग हुआ है. ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टी प्री पोल एलायंस नहीं चाहती है. हाल ही में नीतीश कुमार ने कहा भी था कि कांग्रेस चुनावों में व्यस्त है. इंडिया एलायंस के लिए काम नहीं हो रहा है. यही नहीं, जिस तरह से पार्टी अपने सहयोगी पार्टियों से व्यवहार कर रही है, उससे भी लगता है कि पार्टी इंडिया गठबंधन को लेकर अनिच्छुक है.
कांग्रेस का गठबंधन के लिए अनिच्छुक होना समझ में भी आ रहा है. नीतीश कुमार ने जो सीट शेयरिंग का फॉर्मूला दिया था, उसके हिसाब से कांग्रेस को पूरे देश में 200 से अधिक सीटें नहीं मिलने वाली हैं. पूरे देश में सबसे अधिक कुर्बानी कांग्रेस को ही देनी पडे़गी. रीजनल पार्टियों का जन्म खुद कांग्रेस के विरोध में हुआ है. इसलिए कई स्टेट में वे भी कांग्रेस से एलायंस नहीं चाहती हैं.
जानबूझकर हुआ सपा वर्सेस कांग्रेस का बवाल
इंडिया गठबंधन की सबसे अधिक फजीहत हाल के दिनों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के बीच होने वाली तू-तू मैं-मैं में हुई है. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में सीट शेयरिंग को लेकर दोनों पार्टियों के बीच सार्वजनिक रूप से जो युद्ध हुआ है, उसे देखकर लगता है दोनों ही जानबूझकर लड़ रहे हों. क्योंकि इतना बड़ा इशू बनाने का कोई मतलब ही नहीं था.
जेडी यू, आम आदमी पार्टी, लेफ्ट आदि के कैंडिडेट भी इन चुनावों में लड़ रहे हैं. किसी भी पार्टी से कांग्रेस की सीट शेयरिंग नहीं हुई और न ही शोर गुल हुआ. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच जो हुआ, दरअसल उसका केंद्र कहीं न कहीं उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के हितों में सेंध लगाना है. इसका परिणाम मध्यप्रदेश चुनावों में दिखाई दिया.