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बलूच नेता चाहते हैं भारत से मान्यता, फिर क्यों बलूचिस्तान आंदोलन के सीधे समर्थन से बच रहा देश?

पाकिस्तान पर दोहरी मार पड़ रही है. एक तरफ तो भारत ने उसके कई आतंकी ठिकाने खत्म कर दिए, दूसरी तरफ बलूचिस्तान नाक में दम किए हुए है. हाल में बलूच लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान से अपनी आजादी का एलान कर दिया. अब बलूच नेता चाहते हैं कि भारत उन्हें अलग देश बतौर मान्यता दे.

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पाकिस्तान में बलूच आंदोलनकारी सबसे ज्यादा आक्रामक हैं. (Photo- Reuters)
पाकिस्तान में बलूच आंदोलनकारी सबसे ज्यादा आक्रामक हैं. (Photo- Reuters)

भारत से तनाव के बीच बलूचिस्तान भी पाकिस्तान पर हावी हो रहा है. उसने कुछ रोज पहले ही इस्लामाबाद से अलग होने का दावा किया. भारत को अपना सबसे करीबी बताते हुए वो चाहता है कि हमसे उसे मान्यता मिले. इससे एक देश के तौर पर उसके रास्ते आसान हो जाएंगे. दुश्मन के दुश्मन से दोस्ती हमारे लिए भी बुरा सौदा नहीं, लेकिन भारत इस मसले पर बेहद सावधानी से ही कोई प्रतिक्रिया देता है. 

अलग क्यों होना चाहते हैं बलोच

बलूचिस्तान, पाकिस्तान का वो हिस्सा है, जो कभी भी सरकार के बस में नहीं रहा. इसकी दो वजहें हैं- एक, पाकिस्तान ने धोखे से उसे अपने साथ मिला लिया. और दूसरा, बलूचिस्तान मानता है कि पाकिस्तान उसके साथ सौतेला व्यवहार करता रहा. बता दें कि नेचुरल रिसोर्सेज में बेहद आगे होने के बाद भी बलूचिस्तान को पाकिस्तान ने बढ़ावा नहीं दिया, बल्कि उसे राजनीति से लेकर आर्थिक मसलों में भी पीछे किए रखा. यहां तक कि इस्लामाबाद उनके कबीलाई सिस्टम को तोड़ने के लिए भी हिंसा करता रहा. यही वजह है कि बलूच उनसे अलगाव चाहते हैं. 

भारत से उम्मीद लगाए बैठे हैं बलूच

भारत ने अब तक बलूच आजादी के पक्ष में कोई भी आधिकारिक बयान नहीं दिया. इधर बलूच चाहते हैं कि जैसे हमने 1971 की जंग में बांग्लादेश का साथ दिया, उसी तर्ज पर उसके साथ भी रहें. भारत चाहे तो ऐसा कर भी सकता है लेकिन न करने की वजहें ज्यादा ठोस हैं. 

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pakistan balochistan photo AFP

अगर भारत बलूचिस्तान के अलगाववाद का समर्थन करे, तो पाकिस्तान को भारत पर ये आरोप लगाने का मौका मिल जाएगा कि हम उसके अंदरुनी मामलों में दखल दे रहे हैं. यह कश्मीर पर हमारी उस पोजिशन को कमजोर कर सकता है, जिस आधार पर हम कश्मीर को हमारा आंतरिक मुद्दा कहते रहे हैं और हमें इसपर कोई बाहरी हस्तक्षेप मंजूर नहीं होता. बलूचों के लिए हामी भरें तो पाकिस्तान में कई और सेपरेटिस्ट मूवमेंट्स चल रहे हैं, वे भी भारत से यही उम्मीद करने लगेंगे. भारत उनके लिए अपनी नैतिक जमीन कमजोर होने का जोखिम नहीं उठाता. 

बांग्लादेश के अलगाव के बाद से पाकिस्तान और आक्रामक हो चुका. वो किसी भी तरह से भारत में अस्थिरता बनाए रखना चाहता है. कश्मीर में हाल में हुए आतंकी हमले में उसी का हाथ रहा. अब नई दिल्ली से अगर बलूच आजादी के लिए समर्थन चला जाए तो ये उस आक्रामकता को बढ़ाने का ही काम करेगा और भारत के लिए फिजूल का सिरदर्द पैदा होगा. 

इंटरनेशनल डिप्लोमेसी में डबल स्टैंडर्ड दिखेगा

इंटरनेशनल कानून में देशों की अखंडता पर जोर दिया जाता है. अगर भारत बलूच जैसे किसी अलगाववादी आंदोलन  का सपोर्ट करेगा तो इंटरनेशनल डिप्लोमेसी में डबल स्टैंडर्ड दिखेगा. चीन जैसा देश हमारे यहां सेपरेटिस्ट आंदोलन को उकसाने की फिराक में रहता है. उसे और मौका मिलेगा. चीन अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर बेवजह दावा भी जताता है. 

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pakistan balochistan photo Reuters

जमीन का कोई हिस्सा देश घोषित हो सके, इसके लिए इंटरनेशनल कानून है. अपना अलग मुल्क बना पाने के लिए अहम शर्त है, देश की सीमाओं का तय होना. कोई देश कहां से शुरू और किस जगह खत्म होता है, ये पक्का होना चाहिए. उसका संविधान, झंडा और तमाम जरूरी चीजें होनी चाहिए. साथ ही उसके पास डिप्लोमेटिक चैनल होना चाहिए ताकि वो बाकी देशों से जुड़ सके. बलूचिस्तान के पास फिलहाल दावे तो हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर कई शर्तें पूरी होना बाकी हैं. साथ ही उसे यूनाइटेड नेशन्स से भी मान्यता लेनी होगी. 

बलूच नेता हमारी तरफ क्यों देख रहे

बलूच लीडर्स भारत को एक बड़े स्ट्रेटेजिक पार्टनर की तरह देखते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण तो भारत-पाकिस्तान तनाव है. दूसरा, देश का इंटरनेशनल दबदबा लगातार बढ़ा है और अगर हम बड़े मंचों पर बलूचिस्तान की बात करें तो उसकी कूटनीतिक ताकत भी बढ़ेगी. 


भारत सीधे-सीधे फ्री बलूचिस्तान आंदोलन का समर्थन नहीं करता. हां लेकिन इस मुद्दे को मानवाधिकार हनन के तौर पर वो जरूर उठाता है. भारत की कूटनीतिक पोजीशन बलूचों को लेकर यही है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी बलूच लोगों के लिए हमदर्दी दिखाई थी. यह सॉफ्ट बैलेंस अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारी इमेज बेहतर करता है कि हम दूसरे देशों के भीतर मामलों से दूर जरूर रहते हैं लेकिन गलत को भी नहीं सहते. 

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