राफेल मरीन और वायुसेना के राफेल में मुख्य अंतर उनके संचालन के माहौल और मिशन प्रोफाइल में है. राफेल-एम को विमानवाहक पोतों पर समुद्री युद्ध के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है. जबकि वायुसेना का राफेल जमीन से संचालित होकर हवाई और सामरिक मिशनों पर केंद्रित है. ये अंतर राफेल मरीन को भारतीय नौसेना की समुद्री रणनीति के लिए एक अनिवार्य संपत्ति बनाते हैं, जो हिंद महासागर में भारत की ताकत को और मजबूत करेगा.
लैंडिंग गियर और एयरफ्रेम
राफेल मरीन: विमानवाहक पोतों (जैसे INS विक्रांत और INS विक्रमादित्य) के सीमित डेक पर टेकऑफ और लैंडिंग के लिए राफेल-एम में मजबूत और विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया लैंडिंग गियर है. इसका एयरफ्रेम भी समुद्री परिस्थितियों जैसे नमक और नमी का सामना करने के लिए संशोधित है.
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वायुसेना राफेल: वायुसेना के राफेल में सामान्य रनवे संचालन के लिए हल्का लैंडिंग गियर और एयरफ्रेम है, जो समुद्री संचालन के लिए सही नहीं है.
फोल्डिंग विंग्स
राफेल मरीन: विमानवाहक पोतों पर सीमित जगह को ध्यान में रखते हुए, राफेल-एम के पंख फोल्ड होने की सुविधा के साथ आते हैं। इससे जेट्स को डेक पर आसानी से स्टोर किया जा सकता है.
राफेल: वायुसेना के राफेल में फोल्डिंग विंग्स की सुविधा नहीं है, क्योंकि यह हवाई अड्डों पर संचालित होता है, जहां जगह की कमी नहीं होती.
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वजन
राफेल मरीन: राफेल-एम का वजन वायुसेना के राफेल से थोड़ा अधिक है, क्योंकि इसमें समुद्री संचालन के लिए अतिरिक्त संशोधन जैसे मजबूत लैंडिंग गियर और संक्षारण-प्रतिरोधी कोटिंग शामिल हैं.

राफेल: यह हल्का होता है, क्योंकि इसे समुद्री संचालन की विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है.
शॉर्ट टेकऑफ और लैंडिंग (STOL)
राफेल मरीन: राफेल-एम में शॉर्ट टेकऑफ और लैंडिंग की क्षमता को बढ़ाया गया है, ताकि यह विमानवाहक पोतों के छोटे डेक पर आसानी से संचालित हो सके. इसमें कैटापल्ट-असिस्टेड टेकऑफ और अरेस्टर हुक सिस्टम भी शामिल हैं.
राफेल: यह सामान्य रनवे पर संचालन के लिए डिज़ाइन किया गया है, इसलिए इसमें कैटापल्ट या अरेस्टर हुक जैसे सिस्टम नहीं हैं.
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मिशन प्रोफाइल
राफेल मरीन: इसे विशेष रूप से समुद्री युद्ध के लिए अनुकूलित किया गया है. यह जहाज-रोधी युद्ध (Anti-Ship Warfare), समुद्री निगरानी और समुद्र में लंबी दूरी के हमलों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक्सोसेट जैसी जहाज-रोधी मिसाइलों का उपयोग शामिल है.
राफेल: यह मुख्य रूप से हवा से हवा और हवा से जमीन मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जैसे दुश्मन के ठिकानों पर हमला, हवाई रक्षा और सामरिक बमबारी.

जंग लगने से बचाव
राफेल मरीन: समुद्री वातावरण में नमक और नमी के कारण होने वाले संक्षारण से बचाने के लिए राफेल-एम में विशेष कोटिंग और सामग्री का उपयोग किया गया है.
राफेल: इसमें ऐसी विशेष कोटिंग की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह मुख्य रूप से जमीन पर आधारित हवाई अड्डों से संचालित होता है.
हथियार और सेंसर कॉन्फिगरेशन
राफेल मरीन: इसमें समुद्री मिशनों के लिए विशेष हथियार, जैसे एक्सोसेट मिसाइल और समुद्री निगरानी के लिए सेंसर शामिल हैं.
राफेल: यह मेटियोर, स्कैल्प और अन्य हवा से हवा या हवा से जमीन मिसाइलों के लिए कॉन्फिगर किया गया है, जो सामान्य युद्ध परिदृश्यों के लिए उपयुक्त हैं.
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रखरखाव और लॉजिस्टिक्स
राफेल मरीन: चूंकि भारतीय वायुसेना पहले से ही राफेल का संचालन कर रही है, राफेल-एम के लिए लॉजिस्टिक्स और रखरखाव में कुछ समानता होगी. हालांकि, समुद्री संचालन के लिए अतिरिक्त प्रशिक्षण और सुविधाओं की आवश्यकता होगी.
राफेल: इसका रखरखाव स्थापित हवाई अड्डों पर पहले से मौजूद बुनियादी ढांचे के आधार पर किया जाता है.