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धार्मिक कट्टर सोच, भड़काऊ भाषण और नफरती मिजाज... ऐसा है पहलगाम हमले का असली 'मास्टरमाइंड'

हैरानी की बात ये है कि जब से पहलगाम हमला हुआ है, तभी से पाक सेना चीफ आसिम मुनीर को ना के बराबर ही देखा गया है. बताया जा रहा है कि वो खुफिया तौर पर ही आवाजाही कर रहा है. किसी को भी उसके मूवमेंट की कोई जानकारी नहीं होती है.

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आसिम मुनीर हमेशा भड़काऊ भाषण देता रहा है
आसिम मुनीर हमेशा भड़काऊ भाषण देता रहा है

पाकिस्तान का सेना प्रमुख (COAS) आसिम मुनीर पहलगाम हमले के बाद से छुप छुपकर घूम रहा है. उसे कहीं भी सार्वजनिक तौर पर देखा नहीं जा रहा है. इसी दौरान खबर आई है कि आसिम मुनीर ने चुपचाप एलओसी (LOC) का दौरा किया है. जिसके लिए सेना के नेतृत्व वाली एक टीम के साथ ब्रीफिंग के लिए मीडिया को भेजा गया है.

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आसिम मुनीर ने किया LoC का दौरा
शनिवार को, जीएचक्यू (GHQ) में स्पेशल कोर कमांडरों की बैठक के बाद यह पता चला था कि आसिम मुनीर रविवार को एलओसी के अग्रिम इलाकों का दौरा करेंगे. फिर रविवार को आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने अपने निजी सचिव, जीओसी 10 कोर, डीजी आईएसपीआर, जीओसी 12 डिव मुरी, डीजीएमओ के साथ एलओसी का दौरा किया.

स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया को ब्रीफिंग
थोड़ी देर पहले, स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के एक समूह को दामियाल आर्मी एविएशन बेस आरडब्ल्यूपी (RWUP) से पाक सेना के एमआई-17 पर युद्धविराम रेखा के अग्रिम इलाकों में भेजा गया है. पत्रकारों के उस समूह के साथ अता बंदर तरार सूचना मंत्री और आईएसपीआर (ISPR) के संचालक हैं; उन्हें जीओसी 12 डिव मुरी मुहम्मद इरफान और उनके स्टाफ द्वारा ब्रीफ किया जाएगा.

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छुप-छुपकर घूम रहा है आसिम मुनीर
हैरानी की बात ये है कि जब से पहलगाम हमला हुआ है, तभी से पाक सेना चीफ आसिम मुनीर को ना के बराबर ही देखा गया है. बताया जा रहा है कि वो खुफिया तौर पर ही आवाजाही कर रहा है. किसी को भी उसके मूवमेंट की कोई जानकारी नहीं होती है. ये वही आसिम मुनीर है, जो पहलगाम हमले से पहले भारत के खिलाफ जहर उगल रहा था. भड़काऊ भाषण बाजी कर रहा था.

दरअसल, पाकिस्तानी सेना के प्रमुख आसिम मुनीर ने पहलगाम हमले जो बयान दिए हैं, उन्हें सुनकर शायद कोई यकीन भी नहीं करता कि ये अल्फाज किसी आर्मी ऑफिसर के हैं. एक ऐसे आर्मी ऑफिसर के जिस पर पूरे के पूरे पाकिस्तान की हिफाजत की जिम्मेदारी है. मगर वो ऑफिसर अपने मुल्क की जिम्मेदारी और तरक्की से ज्यादा, इस बात पर तवज्जो देने की कोशिश कर रहा है कि कैसे मुसलमान हिंदुओं से अलग हैं और कैसे उसके पूर्वजों ने पहले ही तय कर लिया था कि हिंदू और मुसलमान साथ-साथ नहीं रह सकते.

कहने वाले इसे इत्तेफाक कह सकते हैं मगर हकीकत यही है कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर के जहरीले भाषण के ठीक हफ्ते भर बाद पहलगाम में आतंकी हमला हो गया और हमले में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने ही चुन-चुन कर हिंदुओं की जान ले ली. ये बात दीगर है कि पाकिस्तानी फौज और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई शुरू से ही आतंकवादियों को पालती-पोसती रही है, ऐसे में मुनीर के भाषण के फौरन बाद हुए इस हमले में सीधे-सीधे वहां की फौज, आईएसआई और मुनीर का हाथ समझ में आता है और इस मामले पर एक्सपर्ट्स का भी कुछ यही कहना है.

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मगर क्या ओवरसीज पाकिस्तानी कनवेंशन में दिया गया मुनीर का ये भाषण कुछ नया है या फिर उसकी सोच ऐसी ही है? जवाब है नहीं. जानने वाले बताते हैं कि आसिम मुनीर पहले से ही कट्टर जिहादी सोच के बीच पला-बढ़ा एक ऐसा शख्स है, जिसके जेहन में सिर्फ और सिर्फ नफरत भरी है. जो आम तौर पर लाइमलाइट से दूर रहता है, लेकिन पर्दे के पीछे से घात करता है. और 15 अप्रैल को पाकिस्तानी ओवरसीज कनवेंशन में दिया गया उसका ये भाषण उसके इसी सोच की निशानी है, जिसके चलते लोग उसे मुल्ला जनरल के नाम से भी पुकारते हैं. एक मस्जिद के इमाम और स्कूल टीचर के बेटे से पाक फौज की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंचने वाले आसिम मुनीर के जिंदगी की कहानी भी कम उतार-चढ़ाव से भरी नहीं है.

मुनीर की शुरुआती शिक्षा रावलपिंडी के मदरसे मरकजी मदरसा दार-उल-तजवीद में हुई. लेकिन फिर आगे चल कर उसने साल 1986 में मंगला के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल से ग्रैजुएशन किया और तब फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के 23वीं बटालियन में उसे एंट्री मिली. मुनीर की कट्टरपंथी सोच को इसी बात से समझा जा सकता है कि वो शुरू से ही पाकिस्तानी जनरल जिया-उल-हक से बहुत ज्यादा प्रभावित था और आज भी बहुत से एक्सपर्ट्स ये मानते हैं कि मुनीर जैसे ऑफिसर का पाकिस्तानी फौज के इतनी ऊंची कुर्सी में पहुंचना दरअसल, जिया उल हक के फौज के इस्लामीकरण की सोच का ही नतीजा है.

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मुनीर के बारे में कहते हैं कि जब वो सऊदी अरब में पाकिस्तान की ओर से सैन्य अटैची के तौर पर तैनात था, उसने उसी वक्त पूरी की पूरी कुरान शरीफ याद कर ली थी. तब उसकी उम्र 38 साल की थी. अपनी इस काबिलियत की बदौलत उसे हाफिज-ए-कुरान का तमगा भी मिला. लेकिन कुरान, उर्दू, अरबी और अंग्रेजी का अच्छा जानकार होने के बावजूद उसने इस समझ का इस्तेमाल सही रास्ते में करने की जगह, नौजवानों को धर्मांधता की आग में झोंकने के लिए किया. अक्सर वो अपनी तकरीरों में अंग्रेजी और उर्दू के बीच अरबी का भी बड़ी महारत से इस्तेमाल करता है. और कई बार अरबी में लिखी कुरान की आयतों का जिक्र कर ऑफिशियल और फॉर्मल गैदरिंग के बीच भी लोगों पर धार्मिकता का प्रभाव डाला करता है.

कुछ इसी अंदाज में उसने 15 अप्रैल को दिए गए अपने भाषण में पाकिस्तान की बुनियाद कलमा को बताते हुए भारत से लेकर बलूच विद्रोहियों तक को एक साथ कमतर दिखाने की कोशिश की. मुनीर ने कहा, जब 1.3 मिलियन की भारतीय फौज पूरी ताकत के बावजूद हमें कुचल नहीं सकी, तो बलूचिस्तान के चंद मुट्ठी भर आतंकवादी भला पाकिस्तान का क्या कर लेंगे? पाकिस्तानी ओवरसीज कनवेंशन में मुनीर को बुलाया तो गया था पाकिस्तान की तरक्की और उसके रोडमैप पर भाषण देने के लिए लेकिन यहां भी उनका भाषण इस्लाम, हिंदू, हिंदुस्तान और कश्मीर के इर्द-गिर्द घूमता रहा.

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अब आइए एक फौजी से आर्मी चीफ के तौर पर मुनीर के तरक्की के ग्राफ को स्टेप बाइ स्टेप समझने की कोशिश करते हैं. पाकिस्तान के टॉप आर्मी ऑफिसर्स आम तौर पर विदेशों में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, लेकिन मुनीर के साथ ऐसा नहीं है. यहां तक कि उसकी स्कूलिंग भी कहीं विदेश में नहीं बल्कि पाकिस्तान में हुई. लेकिन इसके बावजूद मुनीर आईएसआई के चीफ से होते हुए फौज की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंचे. मुनीर को साल 2017 के शुरुआती दिनों में डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिजेंस यानी डीजीएमआई बनाया गया था. इसके बाद उसे अगले ही साल यानी 2018 में हिलाल-ए-इम्तियाज नाम के सम्मान से नवाजा गया. लेकिन फिर इसके बाद मुनीर गुमनामी में चला गया. इस दौरान वो आईएसआई का चीफ बना और उसके कुर्सी संभालते ही फरवरी 2019 में पुलवामा में भयानक आतंकवादी हमला हुआ. हालांकि मुनीर इस कुर्सी पर महज 8 महीने के लिए ही रहे और पाकिस्तान के किसी भी आईएसआई चीफ का ये सबसे छोटा कार्यकाल रहा.

हालांकि इसके बाद मुनीर ने तत्काली प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और उनकी पत्नी बुशरा बीबी के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की तफ्तीश करने की कोशिश की. जिसके बाद इमरान के कहने पर तत्कालीन आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने मुनीर को एक्स-एक्स-एक्स कोर में ट्रांसफर कर दिया. मगर मुनीर की किस्मत सही मायने में तब पल्टी जब उन्हें नवंबर 2022 में रिटायर होने से ठीक तीन दिन पहले पाकिस्तान आर्मी का चीफ बना दिया गया. तब तक इमरान खान भी सत्ता से हट चुके थे और ये शायद मुनीर की इमरान विरोधी छवि ही थी, जिसका उसे इनाम मिला.

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आर्मी चीफ की कुर्सी संभालने के बाद जितने और जैसे झटके पाकिस्तानी फौज को लगे हैं, वैसे हाल के सालों में पहले नहीं लगे. पाकिस्तान में 2024 में आम चुनाव हुए थे. इस चुनाव में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था. इस तरह इमरान और उनकी पार्टी सत्ता से बाहर तो हो गई, लेकिन पाकिस्तानी फौज की साख को अपने ही मुल्क में बड़ा बट्टा लगा. आज हालत ये है कि पाकिस्तान आर्मी में मुनीर के खिलाफ फौजी अफसरों और जवानों का एक बड़ा गुट है.

इसके अलावा अलग-अलग फ्रंट पर पाकिस्तानी फौज को चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ रहा है. बलूचिस्तान में बीएलए लगातार पाकिस्तानी फौज पर हमले कर रहा है. पाकिस्तानी तालिबान और अफगान सरकार से भी तनातनी चल रही है. इस बीच 11 मार्च को बीएलए जाफर एक्सप्रेस को अगवा कर 64 लोगों की जान ले चुका है. ऐसे में कहने की जररूत है कि मुनीर अब भड़काऊ भाषणों से अपने हक में हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इस्लामाबाद में दिया गया उनका भड़काऊ बयान ही अब उनके गले की फांस बन गया है, क्योंकि ये माना जा रहा है कि मुनीर की साजिश और भड़काऊ भाषणों की बदौलत ही पाकिस्तानी आतंकवादियों ने भारत पर हमला किया. जिसके फॉलआउट के तौर पर अब भारत ने आतंकवादियों को सबक सिखाने की कसम खाई है, पाकिस्तान से सख्ती दिखाई है और अब ये माना जा रहा है कि मुनीर डायरेक्ट निशाने पर हैं.

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