बॉम्बे हाईकोर्ट ने लातूर के कारोबारी के खिलाफ दर्ज FIR की रद्द, मनोज जरांगे पर की थी विवादित टिप्पणी

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने लातूर के कारोबारी के खिलाफ दर्ज FIR रद्द कर दी. कारोबारी पर बार में नशे की हालत में वेटर से बदसलूकी और मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पर आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप था. पुलिस ने IPC की धारा 295ए और 504 में केस दर्ज किया था. अदालत ने कहा कि यह घटना किसी धर्म या धार्मिक मान्यता से जुड़ी नहीं है.

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ये मामला 12 दिसंबर 2023 की घटना से जुड़ा है (Photo: PTI) ये मामला 12 दिसंबर 2023 की घटना से जुड़ा है (Photo: PTI)

विद्या

  • मुंबई,
  • 25 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:57 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने लातूर के एक कारोबारी के खिलाफ दर्ज FIR रद्द कर दी. अदालत ने कहा कि बार में शराब के नशे में हुए झगड़े के दौरान किसी सामाजिक-राजनीतिक नेता को अपशब्द कहना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295ए या 504 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता.

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295ए उन मामलों पर लागू होती है, जहां किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से आहत किया गया हो. वहीं, धारा 504 उन स्थितियों से जुड़ी है, जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी का अपमान इस इरादे से करे कि सामने वाला उकसावे में आकर सार्वजनिक शांति भंग कर दे या कोई अपराध कर बैठे।

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ये मामला 12 दिसंबर 2023 की घटना से जुड़ा है, जो किलारी के किनारा बार में हुई थी. लातूर के औसा तालुका के एक कारोबारी पर आरोप है कि उसने नशे की हालत में एक वेटर से बदसलूकी की और मराठा आरक्षण आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता मनोज जरांगे के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की.

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि इन शब्दों से मराठा समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है. उन्होंने इस घटना की एक मोबाइल रिकॉर्डिंग भी पेश की. इसके बाद पुलिस ने किलारी पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) और 504 (जानबूझकर अपमान करके शांति भंग करना) के तहत मामला दर्ज किया था. 

कारोबारी की तरफ से पेश वकील आईडी मनियार ने दलील दी कि कथित टिप्पणी किसी धर्म या धार्मिक मान्यता पर नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के खिलाफ थी. इसलिए यह आईपीसी की धारा 295ए की शर्तों पर खरी नहीं उतरती. उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि इसमें धार्मिक भावनाएं आहत करने का कोई जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं था.

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अभियोजन पक्ष की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक जीए कुलकर्णी ने तर्क दिया कि एक समुदाय के नेता के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी मराठा समाज की भावनाओं को आहत कर सकती है. इसलिए उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जांच अभी चल रही है और इस चरण में एफआईआई को रद्द नहीं किया जाना चाहिए.

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और हितेन एस. वेनेगावकर की पीठ ने कहा कि किसी सामाजिक-राजनीतिक व्यक्ति के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल, भले ही वह किसी समुदाय का समर्थक माना जाता हो, उसे किसी धर्म के पालन के बराबर नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने कहा कि ये घटना एक बार एंड रेस्टोरेंट में शराब पीने के बाद हुए विवाद के दौरान हुई थी और एफआईआऱ में ही यह भी जिक्र किया गया है कि व्यवसायी ने कथित घटना के बारे में शिकायतकर्ता से तुरंत ही माफ़ी मांग ली थी.

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