बिहार के सहरसा जिले में स्थित सोनबरसा विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और यह मधेपुरा लोकसभा सीट का हिस्सा है. यह क्षेत्र सोनबरसा, पतरघट और बनमा ईटहरी प्रखंडों को मिलाकर बना है. "सोनबरसा/सोनवर्षा" नाम की उत्पत्ति "सोना" (खुशी) और "वर्षा" (बारिश) से मानी जाती है. यानी एक ऐसी धरती जहां खुशी की बारिश होती है.
इतिहास गहराई लिए हुए है. यह क्षेत्र कभी अंगुत्तरप राज्य का हिस्सा था, जो प्रसिद्ध वैशाली महाजनपद के उत्तरी छोर के समीप था. अंग राज्य के पतन के बाद मगध का विस्तार हुआ और मौर्यकालीन स्तंभ यहां की ऐतिहासिक विरासत के गवाह हैं. सोनबरसा राज के पास स्थित विराटपुर गांव में खुदाई में बौद्ध काल से संबंधित अवशेष भी मिले हैं. मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान यह क्षेत्र उनके मार्ग में आया था.
सोनबरसा की सीमाएं उत्तर में सोहा और विराटपुर, दक्षिण में पररिया, पश्चिम में सुगमा और कोसी नदी तथा पूर्व में देहद से लगती हैं. क्षेत्र की भूमि समतल, उपजाऊ और दोमट किस्म की है, जो साल में तीन फसल चक्रों के लिए उपयुक्त है. मुख्य फसलें धान और गेहूं हैं, जबकि आम, केला और अमरूद के बागान भी यहां प्रचुर मात्रा में हैं.
हालांकि, क्षेत्र की खुशहाली अस्थायी है. कोसी नदी, जिसे "बिहार का शोक" कहा जाता है, हर साल इस क्षेत्र में बाढ़ लाती है. हर साल औसतन 10 से 15 लोग डूबने से जान गंवाते हैं. बाढ़ के साथ बीमारियां भी आती हैं और चिकित्सा सुविधाओं की कमी खासकर बच्चों पर भारी पड़ती है.
सोनबरसा, सहरसा शहर से लगभग 25 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है. मधेपुरा लगभग 40 किमी उत्तर-पूर्व में और पूर्णिया लगभग 100 किमी पूर्व में स्थित है. पटना की दूरी लगभग 220 किमी है. सड़क मार्ग सीमित है और निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन सहरसा जंक्शन है.
सोनबरसा विधानसभा क्षेत्र 1951 से अस्तित्व में है और अब तक 17 विधानसभा चुनाव देख चुका है. 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद 2010 में इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया.
कांग्रेस ने यहां चार बार जीत हासिल की है, जबकि निर्दलीय, राजद और जदयू ने तीन-तीन बार जीत दर्ज की है. जनता दल को दो बार सफलता मिली और संयुक्त समाजवादी पार्टी व लोकदल को एक-एक बार. 1985 में लोकदल के टिकट पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर यहां से विधायक बने थे.
2010 के बाद से यह सीट जदयू के कब्जे में रही है. रत्नेश सदा ने 2010, 2015 और 2020 में लगातार तीन बार जीत दर्ज की. उनकी जीत के अंतर में बदलाव आया है. 2010 में 31,445 वोटों से, 2015 में 53,763 से, जबकि 2020 में यह घटकर 13,466 रह गया. माना जाता है कि 2020 में लोजपा की 8.1% वोट हिस्सेदारी ने NDA के समर्थन को प्रभावित किया. लोजपा 2010 और 2015 में भी दूसरे स्थान पर रही थी.
परिसीमन से पहले, राजद के रामचंद्र पुर्वे ने 2000 और 2005 के दोनों चुनावों में जीत हासिल की थी.
2020 विधानसभा चुनाव में सोनबरसा में कुल 3,13,357 पंजीकृत मतदाता थे. इनमें अनुसूचित जाति के मतदाता 84,911 (27.1%), मुस्लिम मतदाता लगभग 48,256 (15.4%) और यादव मतदाता करीब 55,464 (17.7%) थे. मतदान प्रतिशत 54.10% रहा, जो आम तौर पर यहां कम भागीदारी की प्रवृत्ति को दर्शाता है.
2024 लोकसभा चुनावों तक मतदाता संख्या बढ़कर 3,18,427 हो गई, जिनमें से 3,771 मतदाता बाहर स्थानांतरित हो चुके थे.
जदयू की पकड़ केवल विधानसभा तक सीमित नहीं रही है. 2009 से अब तक हर लोकसभा चुनाव में, सिवाय 2015 के, जदयू को सोनबरसा विधानसभा क्षेत्र में बढ़त मिली है. 2024 में पार्टी ने यहां 38,108 वोटों की बढ़त दर्ज की.
(अजय झा)