बेगूसराय को बिहार की औद्योगिक और वित्तीय राजधानी के रूप में जाना जाता है. यह जिले का मुख्यालय भी है और राज्य के 38 जिलों में से एक है. गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित यह शहर मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है और ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है.
बेगूसराय की स्थापना 1870 में मुंगेर जिले के एक अनुमंडल के रूप में हुई थी और
1972 में इसे अलग जिला बना दिया गया. इसके नाम की उत्पत्ति "बेगम" (रानी) और "सराय" (सराय या धर्मशाला) से मानी जाती है. कहा जाता है कि भागलपुर की बेगम गंगा के किनारे स्थित पवित्र स्थल सिमरिया घाट पर महीने भर की धार्मिक यात्रा पर आती थीं. समय के साथ इस स्थान का नाम बेगूसराय पड़ गया.
यह क्षेत्र तीन प्रमुख बाढ़ क्षेत्रों में विभाजित है- गंगा बाढ़ क्षेत्र, बुढ़ी गंडक बाढ़ क्षेत्र और करेहा-बागमती बाढ़ क्षेत्र. कृषि यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन यह बिहार के सबसे औद्योगिकीकृत क्षेत्रों में से भी एक है. बरौनी रिफाइनरी राज्य को सालाना लगभग 500 करोड़ रुपयए का राजस्व देती है और रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है. बरौनी में एक थर्मल पावर प्लांट भी है, जो क्षेत्र को बिजली प्रदान करता है. इसके अलावा, हिंदुस्तान फर्टिलाइजर एंड केमिकल्स लिमिटेड जैसी कंपनियों के माध्यम से उर्वरक उत्पादन भी एक प्रमुख उद्योग है.
यहां 7 वर्ष और उससे ऊपर की आयु के लोगों की साक्षरता दर 79.35 प्रतिशत है. हिंदू धर्म यहां का प्रमुख धर्म है, जिसकी अनुयायी संख्या लगभग 89 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम आबादी 10.53 प्रतिशत है. हिंदी और मैथिली यहां की मुख्य भाषाएं हैं.
बेगूसराय की राजनीति में जाति का विशेष प्रभाव रहा है. 20वीं सदी की शुरुआत में भूमिहार समुदाय का दबदबा था, जो परंपरागत रूप से जमींदार और प्रभावशाली माने जाते हैं. इस समुदाय ने कांग्रेस और बाद में जनता दल (यूनाइटेड) का समर्थन किया.
1970 और 1980 के दशक में बेगूसराय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का गढ़ बन गया. सीपीआई ने भूमि सुधार और सामाजिक न्याय की वकालत की.
2010 के दशक में भाजपा के उदय के साथ यहां की राजनीति में बड़ा बदलाव आया. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा ने विशेष रूप से उच्च जातियों को आकर्षित किया, जिससे सीपीआई का प्रभाव कम हुआ और दक्षिणपंथी राजनीति का बोलबाला बढ़ा.
1951 में स्थापित बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र, बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. अब तक यहां 18 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें 2009 का उपचुनाव भी शामिल है. कांग्रेस ने यहां आठ बार जीत दर्ज की है, जबकि भाजपा ने छह बार. सीपीआई ने तीन बार और एक बार स्वतंत्र उम्मीदवार भोला सिंह ने 1967 में जीत हासिल की थी. बाद में उन्होंने भाजपा जॉइन कर तीन बार और जीत दर्ज की.
वर्तमान में भाजपा के कुंदन कुमार यहां के विधायक हैं, जिन्होंने 2020 में कांग्रेस की अमिता भूषण को 4,554 वोटों से हराया था. 2024 के लोकसभा चुनावों में गिरिराज सिंह की बढ़त के कारण भाजपा को एक बार फिर जीत की उम्मीद है, जिसमें बेगूसराय में उन्हें 25,633 वोटों की बढ़त मिली थी.
अनुसूचित जाति के मतदाता यहां 15.67 प्रतिशत हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता 13.9 प्रतिशत हैं. भले ही भाजपा को शहरी पार्टी माना जाता हो, लेकिन बेगूसराय में 77.11 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं ने भी भाजपा का समर्थन किया है.
2020 के विधानसभा चुनावों में यहां कुल 3,36,598 मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें से 55.63 प्रतिशत ने मतदान किया. 2024 के आम चुनावों में यह संख्या बढ़कर 3,59,529 हो गई.
(अजय झा)