बिहार के सहरसा जिले में स्थित महिषी एक सामान्य श्रेणी का विधानसभा क्षेत्र है, जो मधेपुरा लोकसभा सीट का हिस्सा है. यह क्षेत्र नौहट्टा और सत्तरकटैया प्रखंडों के साथ-साथ महिषी प्रखंड के 11 ग्राम पंचायतों- बघवा, बीरगांव, मनवर, तेलवा ईस्ट, तेलवा वेस्ट, भलही, कुंदहा, महीसरहो, तेलहर, पस्तपार और अरपट्टी को मिलाकर बना है. यह इलाका कोसी नदी के बाढ़
प्रभावित मैदानों में स्थित है और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है. मैथिली यहां की प्रमुख भाषा है, और कृषि आजीविका का मुख्य स्रोत है. धान, मक्का और दालें यहां की मुख्य फसलें हैं, जिन पर स्थानीय अर्थव्यवस्था आधारित है. छोटे स्तर पर डेयरी व्यवसाय और मौसमी सब्जियों की खेती भी आय का पूरक स्रोत हैं.
महिषी बिहार के उत्तर-मध्य भाग में स्थित है और सहरसा व दरभंगा जिलों की सीमा के पास है. यह सहरसा जिला मुख्यालय से 18 किमी पश्चिम, मधुबनी से 40 किमी दक्षिण-पूर्व और दरभंगा से 55 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है. राज्य की राजधानी पटना यहां से लगभग 180 किमी दक्षिण-पश्चिम में है. नजदीकी कस्बों में नौहट्टा (10 किमी), सत्तरकटैया (12 किमी), और बंगांव (20 किमी) शामिल हैं. यह क्षेत्र बाढ़-प्रभावित है, लेकिन यहां तालाबों, नहरों और छोटी नदियों का जाल भी है, जो जलीय पारिस्थितिकी का समर्थन करता है.
महिषी सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है और नजदीकी रेलवे स्टेशन सहरसा में है. ग्रामीण क्षेत्र होते हुए भी यहां सड़क और शिक्षा ढांचे में सुधार देखा गया है, हालांकि बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और स्वास्थ्य सेवाओं में अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं.
महिषी एक पारंपरिक गांव होते हुए भी प्रखंड मुख्यालय और एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है. यहां स्थित मां उग्रतारा का शक्तिपीठ प्राचीन समय से आस्था का केंद्र रहा है. दशहरा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं. यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पूरे मिथिला क्षेत्र में महिषी को एक अलग पहचान भी दिलाता है.
‘महिषी’ नाम की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथा की भैंसमुखी राक्षसी महिषी से मानी जाती है, जिसे भगवान अयप्पन ने पराजित किया था. हालांकि यह कथा दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है, लेकिन इसका उल्लेख बिहार में होने से यह संकेत मिलता है कि प्राचीन सांस्कृतिक आदान-प्रदान और गहरी आध्यात्मिक परंपराएं इस क्षेत्र में मौजूद रही हैं.
1967 में स्थापित महिषी विधानसभा सीट पर अब तक 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस पार्टी ने यह सीट चार बार (1969, 1972, 1980, 1985) जीतकर यहां मजबूत उपस्थिति दिखाई थी. लहतन चौधरी इस क्षेत्र के प्रमुख नेता रहे हैं. अब्दुल गफूर, जो बिहार सरकार में मंत्री भी रहे, ने जनता दल के टिकट पर 1995 में और राजद के उम्मीदवार के रूप में 2000, 2010 और 2015 में चार बार चुनाव जीते. जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) ने दो-दो बार जीत हासिल की है. वहीं संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी एक-एक बार जीत दर्ज की है.
2020 के विधानसभा चुनाव में महिषी में 2,98,343 पंजीकृत मतदाता थे. अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 50,927 (17.07%), मुस्लिम मतदाता 60,563 (20.30%) और यादव मतदाता 54,596 (18.30%) थे. इस चुनाव में 58.81% मतदान हुआ, जो पिछले तीन चुनावों में सबसे अधिक था. 2024 के लोकसभा चुनाव तक मतदाता संख्या बढ़कर 3,06,624 हो गई और 3,926 मतदाता प्रवास कर चुके थे.
2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू के गुंजनश्वर साह ने राजद के गौतम कृष्णा को 1,630 वोटों के मामूली अंतर से हराया था. यह जीत इसलिए खास थी क्योंकि उस समय लोजपा ने एनडीए से अलग होकर जदयू को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से उम्मीदवार खड़े किए थे. महिषी में लोजपा ने 22,110 वोट बटोरकर एनडीए के वोटों में सेंध लगाई थी. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में लोजपा के पुनः एनडीए में लौटने से जदयू ने अपनी बढ़त को 10,963 वोटों तक पहुंचा दिया, जिससे गठबंधन की मजबूती का संकेत मिला.
जैसे-जैसे 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, जदयू एक मजबूत गठबंधन के साथ मैदान में उतर रही है, वहीं राजद पिछली हार की भरपाई करने के प्रयास में है. महिषी की जटिल जातीय संरचना, धार्मिक महत्व और राजनीतिक अस्थिरता इसे एक महत्वपूर्ण सीट बनाते हैं, जहां राजनीतिक समीकरण कभी भी पलट सकते हैं. यह सीट 2025 में भी बिहार की राजनीति में एक कड़ा मुकाबला पेश कर सकती है.
(अजय झा)