बिहार के भागलपुर जिले में स्थित सुल्तानगंज एक प्रखंड है, जिसकी पहचान सिर्फ एक कस्बे के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल के रूप में भी होती है. प्राचीन काल में यह स्थान अजगैबीनाथ के नाम से प्रसिद्ध था, जो कि यहां स्थित भगवान शिव के एक प्राचीन और श्रद्धेय मंदिर के कारण जाना जाता है. यह मंदिर "स्वयंभू"
शिव की उपस्थिति के लिए जाना जाता है. ऐसी मान्यता है है कि शिव यहां स्वयं प्रकट हुए हैं.
अजगैबीनाथ मंदिर गंगा नदी में फैली एक चट्टानी पहाड़ी पर स्थित है, जो इसे एक विशिष्ट धार्मिक स्थल बनाता है. हर साल श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं, गंगा जल भरते हैं और फिर झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम तक लगभग 100 किलोमीटर की नंगे पांव यात्रा करते हैं. इस धार्मिक उत्सव की वजह से सुल्तानगंज में करीब एक महीने तक एक मेलानुमा वातावरण बना रहता है, जिससे स्थानीय लोगों की आमदनी में भी इज़ाफा होता है.
सुल्तानगंज का संबंध महाभारत काल के अंग देश और कर्ण जैसे वीर योद्धा से रहा है. यह क्षेत्र महर्षि जह्नु से भी जुड़ा हुआ है, जिनके बारे में मान्यता है कि उन्होंने ध्यान में विघ्न डालने पर गंगा को निगल लिया था. इतना ही नहीं, गुप्तकालीन एक विशाल कांस्य बुद्ध प्रतिमा भी यहां से मिली थी, जिसे अंग्रेजों ने 19वीं सदी में खोजा और अब वह प्रतिमा ब्रिटेन के बर्मिंघम म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी में रखी गई है.
आज का सुल्तानगंज गंगा के दक्षिणी तट पर बसा हुआ है. भागलपुर जिला मुख्यालय यहां से 25 किलोमीटर पूर्व में है, जबकि मुंगेर 55 किलोमीटर पश्चिम, बांका 60 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व, पूर्णिया 130 किलोमीटर उत्तर-पूर्व और राज्य की राजधानी पटना 200 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है.
धार्मिक पर्यटन के बावजूद सुल्तानगंज की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है, हालांकि छोटे पैमाने के उद्योग और स्थानीय व्यापार भी आर्थिक गतिविधियों में योगदान देते हैं.
सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और यह बांका लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है. इसमें सुल्तानगंज और शाहकुंड विकास खंड शामिल हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में 3,28,314 मतदाता पंजीकृत थे, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 3,39,156 हो गए. इनमें से 12.97% अनुसूचित जाति और 11.7% मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि केवल 12.13% मतदाता शहरी हैं, जिससे यह एक ग्रामीण प्रधान सीट बनती है.
अब तक सुल्तानगंज से 17 बार विधायक चुने जा चुके हैं. साल 2000 से यह क्षेत्र बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के पक्ष में लगातार रहा है. साल 2000 में जब पार्टी का नाम समता पार्टी था, तब से लेकर अब तक यह सीट लगातार छह बार जदयू के पास रही है. इससे पहले कांग्रेस ने यहां से सात बार जीत दर्ज की थी. जनता दल दो बार, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और जनता पार्टी ने एक-एक बार जीत हासिल की है.
गौरतलब है कि बीजेपी और राजद, जो वर्तमान बिहार विधानसभा की दो सबसे बड़ी पार्टियां हैं, इस सीट पर अब तक कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई हैं.
सुल्तानगंज पर नीतीश कुमार की पकड़ इतनी मजबूत है कि एलजेपी जैसी पार्टी, जिसने एनडीए से अलग होकर बिहार की राजनीति में कई जगहों पर हलचल मचाई थी, यहां कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल पाई. 2020 में जदयू के ललित नारायण मंडल ने कांग्रेस के ललन कुमार को 11,265 वोटों से हराया, जबकि एलजेपी को 10,222 वोट ही मिले.
2024 के लोकसभा चुनावों में भी जदयू ने सुल्तानगंज विधानसभा खंड में 26,749 वोटों की बढ़त हासिल कर एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि यह क्षेत्र नीतीश कुमार का गढ़ बना हुआ है. ऐसा माना जा रहा है कि अगर 2025 नीतीश कुमार का अंतिम चुनाव हुआ, तो उनके प्रति लोगों की भावनात्मक जुड़ाव के चलते विपक्ष के लिए इस किले को भेदना और भी मुश्किल हो जाएगा.
(अजय झा)