बिहारीगंज बिहार के मधेपुरा जिले में स्थित एक सामान्य श्रेणी की विधानसभा सीट है. इसे 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के तहत एक अलग निर्वाचन क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया था और यह मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. यह विधानसभा क्षेत्र बिहारीगंज और ग्वालपाड़ा प्रखंडों के साथ-साथ उदाकिशुनगंज और मुरलीगंज प्रखंडों के चुनिंदा ग्राम पंचायतों
को भी शामिल करता है.
2020 में बिहारीगंज में कुल 3,08,766 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें 53,231 (17.24%) अनुसूचित जाति, 5,126 (1.66%) अनुसूचित जनजाति और 26,863 (8.70%) मुस्लिम मतदाता शामिल थे. 2024 के लोकसभा चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 3,32,862 हो गई, भले ही चुनाव आयोग ने इस दौरान 4,436 मतदाताओं के पलायन की सूचना दी थी. यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण है, जहां केवल 5.81 प्रतिशत शहरी मतदाता हैं. बिहारीगंज को एक "सूचित क्षेत्र" (Notified Area) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो गांव से बड़ा होता है लेकिन पूर्ण रूप से विकसित नगर नहीं होता.
2010 में स्थापना के बाद से बिहारीगंज विधानसभा क्षेत्र में जनता दल (यूनाइटेड) का वर्चस्व रहा है. जेडीयू ने अब तक यहां हुई तीनों विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की है. 2010 में रेणु कुमारी, 2015 और 2020 में निरंजन कुमार मेहता ने जीत हासिल की. 2020 के चुनाव में निरंजन मेहता ने कांग्रेस प्रत्याशी सुभाषिनी बुंदेला को 18,711 वोटों से हराया था. जेडीयू ने लोकसभा चुनावों में भी इस सीट पर बढ़त बनाए रखी है, जिसमें 2024 के चुनाव में पार्टी ने राजद पर 36,496 वोटों (18.42 प्रतिशत) की निर्णायक बढ़त हासिल की.
बिहारीगंज मधेपुरा जिले के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में स्थित है, जो जिला मुख्यालय से लगभग 41 किलोमीटर और सहरसा से 62 किलोमीटर दूर है. यह बरौनी–कटिहार रेलवे लाइन पर स्थित है और यहां का रेलवे स्टेशन उत्तर बिहार के सबसे पुराने स्टेशनों में से एक है. इसके आस-पास के प्रमुख शहरों में मुरलीगंज (12 किमी), ग्वालपाड़ा (9 किमी) और पूर्णिया (58 किमी) आते हैं, जबकि राजधानी पटना यहां से लगभग 270 किमी दूर है. यह इलाका कोसी नदी बेसिन का हिस्सा है, जिसकी उपजाऊ समतल ज़मीन पर मौसम के अनुसार बाढ़ का प्रभाव कृषि और आधारभूत ढांचे पर पड़ता है.
बिहारीगंज की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है. धान, गेहूं, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं. कुछ क्षेत्रों में जूट और गन्ने की भी खेती की जाती है. बिहारीगंज आसपास के गांवों के लिए एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र है, जहां कपड़ा व्यवसाय और कृषि उत्पादों की खरीद-बिक्री स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति देती है. हालांकि, रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन आम है, लेकिन छोटे पैमाने के उद्योग और शैक्षणिक संस्थान स्थानीय रोज़गार के नए अवसर प्रदान कर रहे हैं.
इतिहास में बिहारीगंज को पहले "निशंकपुर कोढ़ा" के नाम से जाना जाता था. मध्यकाल में यह क्षेत्र सेन वंश के अधीन था. 16वीं सदी में कोसी नदी की मुख्य धारा, जिसे स्थानीय भाषा में "हाहा धार" कहा जाता है, इस क्षेत्र से होकर बहती थी. उस समय करीब 2 किलोमीटर दूर "गमैलबा गोला" नामक एक बाजार विकसित हुआ था, जो जूट, चावल और गेहूं के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था.
जैसे-जैसे बिहार 2025 के विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, बिहारीगंज में जेडीयू की स्थिति मजबूत बनी हुई है. पार्टी की लगातार चुनावी जीत और क्षेत्र में उसकी जमीनी पकड़ उसे विपक्ष के मुकाबले बढ़त देती है. उल्लेखनीय है कि यहां यादव मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इनकी संख्या लगभग 64,570 है, जो कुल मतदाताओं का करीब 19.40 प्रतिशत है. हालांकि, राज्य में राजद को यादवों की पार्टी के रूप में देखा जाता है, लेकिन बिहारीगंज में यादव समुदाय का समर्थन जेडीयू के पक्ष में ही रहा है.
यदि राजद नेतृत्व वाला विपक्षी गठबंधन यहां से जेडीयू को चुनौती देना चाहता है, तो उसे स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली प्रत्याशी उतारने और नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरने की जरूरत होगी. अन्यथा, बिहारीगंज में जेडीयू को हराना एक मुश्किल चुनौती बना रहेगा.
(अजय झा)