बिहपुर बिहार के भागलपुर जिले के एक महत्वपूर्ण सामुदायिक विकास खंडों में से एक है. इसकी भौगोलिक स्थिति इसे खास बनाती है, क्योंकि इसके चारों ओर कई नदियां बहती हैं, दक्षिण में गंगा, उत्तर में कोसी और पश्चिम में बूढ़ी गंडक. इन नदियों के कारण यहां की भूमि खेती के लिए अत्यंत उपजाऊ है, और यही कारण है कि कृषि यहां के अधिकांश लोगों की आजीविका का मुख्य
स्रोत है. बिहपुर से भागलपुर जिला मुख्यालय की दूरी मात्र 19 किलोमीटर है. इसके अतिरिक्त, नवगछिया और सुल्तानगंज जैसे अन्य कस्बे भी इसके समीप स्थित हैं.
बिहपुर का कोई विशेष दस्तावेजीकृत इतिहास उपलब्ध नहीं है, सिवाय इसके कि यह प्राचीन अंग राज्य का हिस्सा रहा है. इसके नाम की उत्पत्ति को लेकर भी कोई ठोस जानकारी नहीं है, हालांकि ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि "बिह" शब्द "बिहार" से आया होगा, जो स्वयं "विहार" (मठ या मठवासी स्थान) शब्द से उत्पन्न हुआ है, और "पुर" का अर्थ बस्ती होता है. 1951 में स्थापित, बिहपुर विधानसभा क्षेत्र भागलपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. इसमें नारायणपुर, बिहपुर और खरीक विकास खंड शामिल हैं.
2020 विधानसभा चुनावों में बिहपुर में कुल 2,58,884 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 2,68,664 हो गए. 2020 में यहां के मतदाताओं में 7.8 प्रतिशत अनुसूचित जातियों से और 12.6 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय से थे. चूंकि यहां कोई नगरीय मतदाता नहीं हैं, इसलिए इसे पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र माना जाता है.
बिहपुर के मतदाताओं की चुनावी प्रवृत्ति बदलती रही है. विकास की तलाश में वे बार-बार अपने प्रतिनिधि को बदलते रहे हैं. 1952 से अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों के परिणाम इस बात को दर्शाते हैं. शुरुआती पांच चुनावों (1952-1969) में कोई भी पार्टी या नेता लगातार दो बार इस सीट पर जीत नहीं पाया. 1952 में कांग्रेस, 1957 में सीपीआई, 1962 में फिर कांग्रेस और 1967 में भारतीय जनसंघ ने जीत दर्ज की.
1969 से एक नया रुझान शुरू हुआ, जब पार्टियाँ दो या तीन बार लगातार जीतने लगीं. सीपीआई ने 1969, 1972 और 1977 में लगातार तीन बार जीत हासिल की. इसके बाद कांग्रेस ने 1980 और 1985 में, जनता दल ने 1990 और 1995 में, और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 2000, फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 में लगातार तीन बार जीत दर्ज की. इसके बाद सीट फिर से बदलती रही. 2010 और 2020 में भाजपा ने जीत हासिल की, जबकि 2015 में राजद को सफलता मिली. अब तक कांग्रेस, सीपीआई और राजद ने चार-चार बार, भाजपा ने तीन बार (जिसमें एक बार भारतीय जनसंघ के नाम पर) और जनता दल ने दो बार बिहपुर सीट जीती है.
2020 में भाजपा ने राजद से यह सीट 6,129 वोटों के अंतर से छीनी थी, जबकि 2010 में उसका जीत का अंतर मात्र 465 वोटों का था. 2015 में राजद ने 12,716 वोटों से जीत दर्ज की थी. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की सहयोगी जदयू को इस विधानसभा क्षेत्र में मात्र 4,855 वोटों की बढ़त मिली, जो यह संकेत देती है कि भाजपा के लिए 2025 में यह सीट बरकरार रखना आसान नहीं होगा.
यदि 'मोदी की गारंटी' का वादा प्रभावी ढंग से मतदाताओं तक नहीं पहुंचाया गया और उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया, तो बिहपुर की सीट किसी भी दल के पक्ष में जा सकती है. इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि बिहपुर में 2020 के विधानसभा चुनावों में 42 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान नहीं किया था, जबकि यह चुनाव पिछले कुछ वर्षों में सबसे अधिक 58.06 प्रतिशत मतदान दर्ज करने वाला रहा था.
बिहपुर के मतदाता चुपचाप लेकिन निर्णायक भूमिका निभाते हैं. ऐसे में महागठबंधन और एनडीए, दोनों ही गठबंधन इस क्षेत्र को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंकते नजर आ सकते हैं.
(अजय झा)