बिहार के बेगूसराय जिले का एक उपमंडल, तेघरा, एक जटिल और दिलचस्प चुनावी इतिहास रखता है. 1951 में अपने गठन से लेकर 1967 तक यह एक विधानसभा क्षेत्र रहा. इसके बाद इसका नाम बदलकर बरौनी विधानसभा क्षेत्र कर दिया गया और 2008 में परिसीमन आयोग ने इसे फिर से तेघरा नाम दे दिया. कुल मिलाकर, छह बार चुनाव "तेघरा" के नाम से और नौ बार "बरौनी" के नाम से
हुए.
नाम बदले, क्षेत्र सीमाएं बदलीं, लेकिन एक चीज जो नहीं बदली वो थी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का दबदबा. यह क्षेत्र CPI के गिने-चुने मजबूत गढ़ों में से एक बना रहा, जबकि बिहार और देश के अन्य हिस्सों में पार्टी का जनाधार लगातार कमजोर होता गया. बरौनी के रूप में हुए सभी नौ चुनावों में CPI ने जीत दर्ज की. अक्टूबर 2005 का चुनाव CPI की लगातार 10वीं जीत लेकर आया. CPI की जीत का सिलसिला 1962 से शुरू हुआ, जबकि इससे पहले 1952 और 1957 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी.
2008 में जब परिसीमन के बाद फिर से "तेघरा" नाम आया और क्षेत्रीय बदलाव हुए, तो लगा कि CPI की पकड़ ढीली पड़ रही है. 2010 में भाजपा ने यह सीट जीत ली और 2015 में राजद (RJD) ने। CPI उस बार तीसरे स्थान पर रही. लेकिन 2020 में CPI को फिर से संजीवनी मिली. राजद के साथ सीट बंटवारे के तहत, यह सीट CPI को मिली और उन्होंने JDU उम्मीदवार को 47,979 वोटों के बड़े अंतर से हराकर 11वीं बार जीत दर्ज की.
2020 में लोजपा (LJP) भी चुनावी मैदान में थी, लेकिन वह JDU की हार के लिए जिम्मेदार नहीं थी, क्योंकि उसके 29,936 वोट CPI की जीत के अंतर से कम थे.
भूगोल की बात करें तो तेघरा बूढ़ी गंडक और सुनकोसी नदियों के किनारे बसा है, जबकि गंगा नदी पास ही बहती है. क्षेत्र में बरौनी जैसे औद्योगिक नगर की निकटता के बावजूद, मुख्य आजीविका का स्रोत कृषि ही है. बरौनी यहां से 6 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में, मोकामा 11 किलोमीटर दक्षिण में और जिला मुख्यालय बेगूसराय 22 किलोमीटर पूर्व में स्थित है. प्रमंडलीय मुख्यालय दरभंगा 92 किलोमीटर दूर है, जबकि राज्य की राजधानी पटना 114 किलोमीटर की दूरी पर है. तेघरा रेल और सड़क मार्ग से बिहार के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है.
2020 में तेघरा में 2,85,190 पंजीकृत मतदाता थे. 2024 के लोकसभा चुनाव की संशोधित सूची में यह संख्या बढ़कर 3,05,595 हो गई. इनमें अनुमानित 10.78% अनुसूचित जाति के मतदाता और 13.3% मुस्लिम समुदाय के मतदाता थे. तेघरा की एक खासियत यह भी है कि यहां ग्रामीण और शहरी मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है, जो कि 49.84% ग्रामीण और 50.16% शहरी हैं.
तेघरा के मतदाता बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए सामने आते हैं. मतदान प्रतिशत आमतौर पर 59% से 63% के बीच रहता है. 2020 विधानसभा चुनाव में 60.21% मतदान हुआ था.
हालांकि तेघरा के मतदाता विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अलग-अलग रुझान दिखाते हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस क्षेत्र में 45,818 वोटों की बढ़त हासिल की. यह बढ़त भाजपा नीत एनडीए के लिए उम्मीद की किरण हो सकती है. यह गठबंधन 2025 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष से यह सीट छीनने के लिए नया चेहरा मैदान में उतारने की योजना बना सकता है.
तेघरा न सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र बिहार की बदलती राजनीतिक धारा को भी दर्शाता है. आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या CPI इस गढ़ को बरकरार रख पाएगी, या कोई नया समीकरण उभर कर सामने आएगा.
(अजय झा)