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हर दिशा में नेतन्याहू के दुश्मन... क्या डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सामने इजरायल को अकेला छोड़ा?

इजरायल और ईरान के बीच आठ दिनों से जारी संघर्ष ने दुनियाभर के देशों की चिंता बढ़ा दी है. इजरायल के हवाई हमलों और ईरान के मिसाइल हमलों के बीच विश्व समुदाय युद्ध के विस्तार को लेकर सतर्क है. फिलहाल अमेरिकी सरकार अभी सीधे युद्ध में शामिल नहीं हुई है, इसके पीछे भारी आर्थिक खर्च और कूटनीतिक पहल बताया जा रहा है.

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ईरान-इजरायल युद्ध से अमेरिका ने बनाई दूरी
ईरान-इजरायल युद्ध से अमेरिका ने बनाई दूरी

8 दिन से इजरायल और ईरान के बीच युद्ध चल रहा है. इजरायल हवाई हमले कर रहा है और ईरान मिसाइल हमले कर रहा है. पूरी दुनिया युद्ध की तस्वीरें देख रही है और ये सोच रही है कि आखिर अभी तक अमेरिका इस युद्ध में क्यों नहीं आया है. तो इसकी एक वजह खर्च भी है. युद्ध एक खर्चीला सौदा है. अगर आप युद्ध में उतरते हैं तो मानकर चलिए कि हर दिन अरबों रुपये खर्च होंगे.

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इजरायल, पिछले दो सालों से फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास से लड़ रहा था और अब वो पिछले 8 दिनों से ईरान से जंग लड़ रहा है. एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि अभी की जो स्थिति है उसमें इजरायल, ईरान के साथ युद्ध में बहुत दिनों तक टिक नहीं पाएगा, क्योंकि इजरायल पहले से ही फिलिस्तीन के साथ चल रहे युद्ध में काफी खर्चा कर चुका है. 

ईरान के साथ युद्ध में इजरायल हर दिन करीब 6 हजार 300 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है. और इस हिसाब से वो पिछले 8 दिनों में करीब 50 हजार करोड़ रुपये खर्च कर चुका है. 

इजरायल ने युद्ध के शुरुआती 2 दिनों में ही करीब 12 हजार 200 करोड़ रुपये खर्च कर दिए थे. ये सारा खर्च, हवाई हमले करने, मिसाइल अटैक और गोला बारूद पर हो रहा है. इसके अलावा एयर डिफेंस सिस्टम जिन मिसाइलों को रोक रहा है, उसमें भी काफी खर्च हो रहा है.

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फिलिस्तीन युद्ध की वजह से इजरायल पर पहले से ही आर्थिक बोझ था, जो ईरान युद्ध की वजह से और बढ़ गया है. 

इजरायल के वित्त मंत्रालय का कहना है कि साल 2025 में देश की आर्थिक विकास दर का अनुमान पहले 4.6 प्रतिशत लगाया था. लेकिन अब उसे घटाकर 3.6 प्रतिशत कर दिया गया है. युद्ध की वजह से फैक्ट्रियों में प्रोडक्शन और लोगों की प्रोडक्टिविटी में कमी आई है, जिससे आर्थिक विकास रुक गया है. इजरायल की जीडीपी का 7 प्रतिशत हिस्सा रक्षा खर्च में जा रहा है जो यूक्रेन के बाद दूसरे नंबर पर है. रक्षा खर्च बढ़ने से बजट पर असर हो रहा है.

अगर इजरायल-ईरान में युद्ध परमाणु त्रासदी तक पहुंचा तो, तो इस मौके का कई देश फायदा उठाना चाहेंगे. 

सबसे पहले ईरान के साथ खड़े चीन और रशिया, अमेरिका से भिड़ जाएंगे. अमेरिका और यूरोपीय देश मिलकर ईरान, चीन और रशिया पर मिसाइल अटैक कर सकते हैं, और इसके जवाब में चीन और रशिया भी मिसाइल हमले करेंगे.

ईरान भी इजरायल पर बड़े हमले शुरू कर देगाऔर इस बार उसके साथ इजरायल के पुराने दुश्मन भी होंगे. इजरायल को हराने के लिए ईरान, लेबनान, सीरिया और मिस्र एक साथ हमला कर सकते हैं. जिसमें मिस्र और लेबनान की थल सेना, इजरायल के न्यूक्लियर फेसिलिटेज़ी पर कब्जा करेंगी. 

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ईरान और लेबनान मिलकर तेल अवीव पर मिसाइल हमले करते रहेंगे. अमेरिका अपनी लड़ाई में व्यस्त होगा, इसीलिए वो इस युद्ध नहीं शामिल हो पाएगा और इस तरह इजरायल उस वक्त अकेला पड़ जाएगा. 

विश्व युद्ध के शुरू होते ही जापान और नॉर्थ कोरिया के बीच भी जंग शुरू हो जाएगी. नॉर्थ कोरिया, जापान पर कब्जे को लेकर हमले करेगा. जापान के बंदरगाहों और सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और हवाई हमले किए जाएं, और जापान भी इनका जवाब देगा. 

इसके अलावा नॉर्थ कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच भी जंग शुरू हो जाएगी. नॉर्थ कोरिया की मिसाइलें सीधे सिओल पर गिरेंगी ताकि धीरे-धीरे दक्षिण कोरिया पर कब्जा किया जा सकेगा. अभी हाल ही में नॉर्थ कोरिया ने दक्षिण कोरिया 10 रॉकेट्स से हमला भी किया था.

एक युद्ध ताइवान के कब्जे के लिए होगा. इसमें चीन ताइवान पर कब्जा करने के लिए मिसाइल अटैक करेगा. उसके पास एक बड़ा मौका होगा जब अमेरिका, ताइवान पर कब्जा करने में रुकावट नहीं बन पाएगा. साउथ चाइना सी में मौजूद अपने युद्धपोतों से चीन, ताइवान को चारों तरफ से घेर लेगा.

भारत और पाकिस्तान के बीच भी जंग शुरू हो सकता है. विश्व युद्ध की चिंगारी, पाकिस्तान को कश्मीर के नाम पर हमले के उकसा सकती है, और इसको लेकर पाकिस्तान मिसाइल हमले कर सकता है. भारत इसके जवाब में कराची और इस्लामाबाद जैसे बड़े पाकिस्तानी शहरों पर हमले करके, पीओके हासिल करना चाहेगा. तो इस तरह से एक न्यूक्लियर प्लांट पर हमला करने का एक बड़ा दुष्परिणाम, युद्ध के तौर पर सामने आएगा, जिसमें युद्ध के कई मोर्चे खुलेंगे और दुनिया 3 विश्व युद्ध में झोंक दी जाएगी.

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ये बात भी तय है कि जब तक अमेरिका नहीं चाहेगा तब तक वर्ल्ड वॉर नहीं हो सकती है. अमेरिका दुनिया की एक बड़ा आर्थिक और मिलिट्री ताकत है. लेकिन सवाल है कि डॉनल्ड ट्रंप इस युद्ध में डायरेक्ट शामिल क्यों नहीं हो रहे हैं. शुक्रवार की सुबह-सुबह अमेरिका की तरफ से पूरी दुनिया के लिए ये हेडलाइन आई कि ट्रंप अगले दो हफ्ते में युद्ध में शामिल होने का फैसला करेंगे.

डॉनल्ड ट्रंप जी7 की बैठक आधे में छोड़कर वॉशिंगटन चले गए थे. कहा था कि कुछ बहुत बड़ा करने वाला हूं. ये कयास लगे की ईरान और इजरायल में क्या सीजफायर कराएंगे. तो ट्रंप ने ये भी कहा था कि नहीं सीजफायर तो बिल्कुल नहीं होगा. फिर डॉनल्ड ट्रंप ने लोगों से तेहरान छोड़कर जाने की अपील भी की थी. तो पूरी दुनिया को लगा अमेरिका इस युद्ध में अब शामिल होने जा रहा है. लेकिन फिर ऐसा अचानक क्या हुआ कि ट्रंप ने दो हफ्ते के लिए अपना प्लान टाल दिया? दुनिया मानकर चल रही है डॉनल्ड ट्रंप और अमेरिका अब फंस गए हैं.

अमेरिका सिर्फ हवाई हमले करने के लिए इस युद्ध में शामिल नहीं होगा. अमेरिका अगर युद्ध में आएगा तो इसी लक्ष्य के साथ आएगा कि ईरान के पास कोई भी परमाणु हथियार ना रहे. अमेरिका ये भी सुनिश्चित करेगा की ईरान फिर से परमाणु संवर्धन ना करे और ये जांचने सिर्फ एक ही तरीका है, वो है अमेरिका को फिजिकली ईरान में मौजूद रहना होगा. ऐसा नहीं हो सकता है कि ईरान के परमाणु संयत्रों पर अमेरिका और इजरायल बम गिरा दें और ये मान लें कि ईरान के पास से न्यूक्लियर हथियार नष्ट हो गए.

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इसीलिए डॉनल्ड ट्रंप अभी इस युद्ध में कूदने से बच रहे हैं. ट्रंप उससे पहले डिप्लोमेसी का रास्ता अपनाना चाहते हैं. ट्रंप चाहते हैं कि ईरान फिर से बातचीत की टेबल पर आए.

ट्रंप ये उम्मीद कर रहे हैं कि इजरायल के लगातार हमलों के बाद ईरान बैकफुट पर आएगा और फिर बातचीत की टेबल पर आएगा. इसीलिए डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से इजरायल को अभी तक ईरान पर हमलों से रोका नहीं जा रहा है. बल्कि वो इजरायल को कैरी ऑन यानी कि हमले जारी रखो कह रहे हैं. पूरी कोशिश यही है कि ईरान बैकफुट पर आए. ट्रंप को पता है कि ईरान युद्ध में एक बार कूदने का मतलब है कि फिर अमेरिका कदम पीछे नहीं खींच सकता है.

ईरान कोई छोटा देश नहीं है. ईरान एक 9 करोड़ की जनसंख्या वाला देश है. यूरोप चार बड़े देशों फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड और स्पेन के बराबर का बड़ा देश है. दुनिया के 145 देशों में ईरान की मिलिट्री 16वीं सबसे मजबूत फौज है. ईरान के पास 9 लाख से ऊपर की फौज है.

ऐसे में ईरान पर फतह पाना अमेरिका के लिए भी मुश्किल तो होगा ही. इसीलिए ट्रंप सीधे टकराव के बजाए डिप्लोमेसी के रास्ते पर चल रहे हैं.

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अमेरिका ईरान को पूरा मौका देना चाहता है. वो चाहता कि ईरान किसी भी तरह से अमेरिका की डील और सरपरस्ती दोनों स्वीकार कर ले. डील ये है कि ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़े और इसीलिए डिप्लोमेसी भी चल रही है.

इसीलिए यूरोप के तीन बड़े देशों के विदेश मंत्री ईरान के विदेश मंत्री से मिल रहे हैं. ये मुलाकात स्विटजरलैंड के जेनेवा में होने वाली है जिसमें ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के विदेश मंत्रियों के अलावा ईरान के विदेश मंत्री भी रहेंगे. इस मीटिंग में ये कोशिश की जाएगी कि ईरान को पूरा मौका दिया जाए कि अपना परमाणु कार्यक्रम सरेंडर कर दे.

वैसे इस मीटिंग से किसी को भी हाई एक्सपेक्टेशन (अपेक्षा) नहीं हैं. क्योंकि ईरान की तरफ से लगातार अमेरिका को ये मैसेज दिया जा रहा है कि कि वो पीछे हटना वाला नहीं है. वो इजरायल की स्ट्राइक्स से कमजोर नहीं होगा. बल्कि और ज्यादा मजबूत तरीके से इस युद्ध को लड़ेगा.

हालांकि इन दो हफ्तों में अमेरिका को भी पूरा सोच विचार करने का वक्त मिल जाएगा कि उसे युद्ध में जाना है कि नहीं. इसीलिए अमेरिका ने अपनी तरफ से युद्ध की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं.

अमेरिका ने अपने मिडिल ईस्ट के बेसेस में हथियार पहुंचाने शुरू कर दिये हैं. अमेरिका के कम से कम 10 C-17 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट यूरोप से मिडिल ईस्ट के बेसेस में गए हैं. और इनमें वेपन सिस्टम और बाकी हथियार बताये जा रहे हैं.

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अब ये भी पता चल रहा है कि इजरायल भी अमेरिका की तरफ से हो रही इस देरी को लेकर परेशान है. इजरायली अखबार जेरूसलम पोस्ट ने खबर दी है कि बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका के उपराष्ट्रपति और रक्षा मंत्री के साथ एक मीटिंग की है. हालांकि ये मुलाकात कहां हुई, कैसे हुई इसकी जानकारी नहीं दी गई है. लेकिन ये रिपोर्ट बताती है कि नेतन्याहू थोड़े परेशान हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि अमेरिका ने इजरायल को आगे करके उसे फंसा दिया हो या अमेरिका और इजरायल दोनों ईरान की ताकत का अंदाज नहीं लगा सके हो. हालांकि अभी इजरायल कमजोर तो नहीं पड़ा है. लेकिन, परेशान जरूर हुआ है. क्योंकि ईरान लगातार बड़े हमले कर रहा है. लेकिन फिलहाल इजरायल दावा कर रहा है कि ईरान के आसमान पर उनकी एयरफोर्स का कब्जा है.

फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट को तबाह कर पाएगा इजरायल?

फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट ईरान में स्थित है, जिसे ईरान-अमेरिका उड़ाना चाहता है.  लेकिन सच ये है कि ये सबकुछ उतना आसान नहीं है जितना दिख रहा है. इजरायल और अमेरिका, कितना ही कहें कि वो फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट को तबाह कर देंगे. लेकिन वो ऐसा आसानी से नहीं कर सकते. अगर उन्होंने ऐसा किया तो न्यूक्लियर प्लांट में लीक का खतरा पैदा हो सकता है, जिससे ईरान में बड़े पैमाने पर न्यूक्लियर तबाही होगी और इस बार ये तबाही यूक्रेन के चेर्नोबिल जैसा हादसा हो सकता है. 

इजरायल ने अभी तक जितने भी हमले किए है, वो ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर ही किए हैं और ये इस युद्ध की सबसे खतरनाक बात है. 

दुनियाभर में परमाणु संयत्रों पर नजर रखने वाली और नियम कायदे बनाने वाली संस्था अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने इन हमलों को लेकर चिंता जाहिर की है. आईएईए के डायरेक्टर जनरल राफेल ग्रॉसी का कहना है कि परमाणु संयत्रों पर होने वाले हमलों से रेडियोएक्टिव पदार्थों में लीकेज की आशंका है, जिससे आम लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है. आईएईए के पास जो जानकारी है उसके मुताबिक ईरान में 12 न्यूक्लियर ठिकाने हैं. 

इसमें बोनाब, तेहरान और अरक न्यूक्लियर रिसर्च फेसिलिटी हैं. फोर्डो और नतांज यूरेनियम एनरिच प्लांट हैं. यानी यहां पर प्राकृतिक यूरेनियम से एक खास तत्व निकालते हैं, जिसे यूरेनियम-235 आइसोटोप कहते हैं. इसका इस्तेमाल ही परमाणु बम बनाने में किया जाता है. 

सघांद और बंदर अब्बास यूरेनियम की खदानें हैं. यहीं से ईरान प्राकृतिक यूरेनिम निकालता है, जिसे एनरिच प्लांट में लाकर, परमाणु बम बनाने के लिए यूरेनियम 235 निकालता है. 

बुशर एक न्यूक्लियर पावर प्लांट है, यहां पर परमाणु का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जाता है. इश्फहान में यूरेनियम कन्वर्ज़न प्लांट है. यहां पर यूरेनियम को शुद्ध किया जाता है. 

इसके अलावा मारिवान, लाविसान और वारामिन में भी ईरान की न्यूक्लियर फेसिलिटी है. लेकिन यहां पर क्या किया जाता है, इसके बारे में ईरान ने आईएईए को भी नहीं बताया है. 

फोर्डो अभी तक इजरायल के बड़े हमलों से बचा हुआ है. क्योंकि ये न्यूक्लियर प्लांट पहाड़ों के बीच में और जमीन से करीब 300 फीट नीचे है. इसे नष्ट करने के लिए बड़े बंकर बस्टर बम चाहिए.अगर अमेरिका ने अपने ताकतवर बंकर बस्टर बम से इसे ध्वस्त करने की कोशिश की गई तो न्यूक्लियर प्लांट में लीक हो सकता है, जो घातक साबित होगा. 

इस हमले का मतलब होगा परमाणु त्रासदी को न्योता देना है. और अगर ऐसा हुआ तो ईरान में तबाही आएगी और उसके पक्ष में खड़े देश, इजरायल और अमेरिका पर एक साथ हमला कर सकते हैं. अमेरिका ये कभी नहीं चाहेगा. इसीलिए अमेरिका अभी तक युद्ध में नहीं उतरा है और ना ही उसने परमाणु ठिकानों पर किसी तरह के हमले की बात कही है. लेकिन नेतन्याहू ईरान के न्यूक्लियर प्लांट को तबाह करने पर तुले हुए हैं. 

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