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आर्कटिक पर होगा कब्जा...रूस ने भारत को दिया आइसब्रेकर जहाज निर्माण का प्रस्ताव

रूस ने भारत के साथ आर्कटिक-क्लास जहाजों का संयुक्त उत्पादन करने का प्रस्ताव दिया है. ये जहाज 2-3 मीटर मोटी बर्फ तोड़कर साल भर उत्तरी समुद्री मार्ग पर चल सकेंगे. टैंकर, एलएनजी कैरियर और कंटेनर जहाज बनाए जाएंगे. इससे भारत को सस्ता-तेज़ व्यापार मार्ग और नई तकनीक मिलेगी. दोनों देशों के बीच यह नया रणनीतिक कदम माना जा रहा है.

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ये है रूस का आर्कटिक क्लास आइसब्रेकर जहाज. (File Photo: Getty)
ये है रूस का आर्कटिक क्लास आइसब्रेकर जहाज. (File Photo: Getty)

भारत और रूस के बीच रक्षा, ऊर्जा और व्यापार के बाद अब आर्कटिक क्षेत्र में जहाज निर्माण एक नया क्षेत्र बन सकता है. रूस के पहले उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव ने एक इंटरव्यू में कहा कि आर्कटिक-क्लास जहाजों के संयुक्त उत्पादन से दोनों देशों के बीच सहयोग को नई ऊंचाई मिल सकती है. यह प्रस्ताव रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान चर्चा का प्रमुख मुद्दा बन सकता है. 

पुतिन की यात्रा और संयुक्त चर्चाएं

मंटुरोव ने बताया कि आर्कटिक का कठोर मौसम और भौगोलिक चुनौतियां विशेष प्रकार के जहाजों की मांग करती हैं. आर्कटिक में सुरक्षित नौवहन के लिए उच्च बर्फ-श्रेणी वाले कार्गो जहाज जरूरी हैं, जैसे टैंकर, बल्क कैरियर, कंटेनर जहाज और एलएनजी कैरियर. ऐसे बर्फ-श्रेणी वाले जहाजों का संयुक्त उत्पादन सहयोग का एक आशाजनक क्षेत्र हो सकता है. 

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यह पहल अक्टूबर 2024 में नई दिल्ली में हुई भारत-रूस कार्य समूह की पहली बैठक से आगे बढ़ी है, जहां रोसाटॉम के विशेष प्रतिनिधि व्लादिमीर पानोव और भारत के बंदरगाह, शिपिंग एवं जलमार्ग मंत्रालय के उप-मंत्री राजेश कुमार सिन्हा ने भाग लिया. दोनों देशों ने उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) पर माल ढुलाई बढ़ाने, भारतीय चालक दल को प्रशिक्षण देने और आइस-क्लास जहाजों के निर्माण पर समझौते की रूपरेखा बनाई.

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आर्कटिक-क्लास जहाज: क्या हैं ये?

आर्कटिक-क्लास जहाज वे विशेष वाहन हैं जो आर्कटिक की मोटी बर्फ, ठंडे तापमान और कठिन समुद्री स्थितियों में काम कर सकें. ये जहाज सामान्य जहाजों से अलग होते हैं क्योंकि इनकी डिजाइन बर्फ तोड़ने की क्षमता पर आधारित होती है.

Arctic-class ships

रूस आर्कटिक में नाभिकीय आइसब्रेकर जहाजों के निर्माण में विश्व नेता है, जबकि भारत का जहाज निर्माण उद्योग तेजी से बढ़ रहा है. रूस ने भारत को चीन के बजाय साझेदार चुना है, क्योंकि दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध मजबूत हैं.

उत्तरी समुद्री मार्ग पर 30 ऐसे उच्च आर्कटिक-क्लास जहाज काम कर रहे हैं. ये डबल-एक्शन जहाज कहलाते हैं, जो बर्फ में आगे की ओर (स्टर्न-फर्स्ट) तोड़ते हुए आगे बढ़ सकते हैं और खुले पानी में पीछे की ओर (बो-फर्स्ट) तेज गति से चल सकते हैं. इससे बर्फ तोड़ने की क्षमता और गति का संतुलन बना रहता है.

रूस का लक्ष्य 2030 तक एनएसआर से 150 मिलियन टन कच्चा तेल, एलएनजी, कोयला और अन्य माल ढुलाई करना है, जिसके लिए साल भर चलने वाले जहाज जरूरी हैं.

इन जहाजों की विशेषताएं: प्रकार

आर्कटिक-क्लास जहाजों को अंतरराष्ट्रीय आइस क्लासिफिकेशन (जैसे रूसी ARC7) के अनुसार बनाया जाता है, जो बर्फ की मोटाई और नौवहन की क्षमता पर आधारित होता है. ये जहाज पर्यावरण-अनुकूल भी होते हैं, क्योंकि आर्कटिक में प्रदूषण न्यूनतम रखना जरूरी है. यहां कुछ प्रमुख प्रकारों की साधारण विशेषताएं दी गई हैं...

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टैंकर (क्रूड ऑयल या एलएनजी कैरियर) 

  • लंबाई: 250-300 मीटर  
  • चौड़ाई: 40-50 मीटर  
  • विस्थापन: 100000-160000 टन  
  • बर्फ तोड़ने की क्षमता: 2-3 मीटर मोटी बर्फ  
  • गति: खुले पानी में 15-18 नॉट, बर्फ में 4-6 नॉट  
  • क्षमता: 100000-150000 टन माल (तेल या गैस)
  • ये जहाज रूस के आर्कटिक तेल क्षेत्रों से भारत जैसे देशों तक ईंधन पहुंचाने के लिए आदर्श हैं.

बल्क कैरियर (कोयला या अयस्क ढुलाई)  

  • लंबाई: 200-250 मीटर  
  • चौड़ाई: 30-40 मीटर  
  • विस्थापन: 80000-120000 टन  
  • बर्फ तोड़ने की क्षमता: 1.5-2.5 मीटर  
  • गति: 14-16 नॉट  
  • क्षमता: 70000-100000 टन ढीला माल
  • पर्यावरण सुरक्षा के लिए इनमें कम उत्सर्जन वाले इंजन लगे होते हैं.

कंटेनर जहाज (उच्च आइस-क्लास)  

  • लंबाई: 250-300 मीटर  
  • चौड़ाई: 35-45 मीटर  
  • विस्थापन: 90,000-1,40,000 टन  
  • बर्फ तोड़ने की क्षमता: 2-3 मीटर (साल भर नौवहन)  
  • गति: 18-22 नॉट खुले पानी में  
  • क्षमता: 8000-12000 टीईयू (कंटेनर)
  • ये डबल-एक्शन डिजाइन वाले होते हैं, जो चेन्नई-व्लादिवोस्तोक जैसे मार्गों पर माल ढुलाई के लिए उपयुक्त हैं.

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नॉन-न्यूक्लियर आइसब्रेकर (सहायक जहाज)  

  • लंबाई: 100-150 मीटर  
  • चौड़ाई: 20-25 मीटर  
  • विस्थापन: 10000-20000 टन  
  • बर्फ तोड़ने की क्षमता: 1.5-2 मीटर  
  • गति: 15-18 नॉट  
  • पावर: डीजल-इलेक्ट्रिक 
  • रूस भारत में 4 ऐसे आइसब्रेकर बनाने की योजना बना रहा है, मूल्य 750 मिलियन डॉलर से अधिक.

ये तकनीक रूसी आर्कटिक प्रोजेक्ट्स (जैसे प्रोजेक्ट 23550) पर आधारित हैं, जहां जहाजों को ARC7 क्लासिफिकेशन मिलता है. भारत के शिपयार्ड (जैसे गोवा शिपयार्ड या प्राइवेट यार्ड) में निर्माण से स्थानीय तकनीक हस्तांतरण होगा.

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भारत के लिए फायदे: आर्थिक और रणनीतिक लाभ

यह साझेदारी भारत के लिए कई फायदे ला सकती है. आर्कटिक मार्ग यूरोप और एशिया के बीच सबसे छोटा समुद्री रास्ता है, जो सुएज नहर के मुकाबले 40% समय बचाता है. भारत के निर्यात-आयात में वृद्धि होगी, खासकर रसायन, कच्चे माल, उपकरण, कपड़ा, उपभोक्ता सामान और खाद्य पदार्थों के क्षेत्र में.

चेन्नई को व्लादिवोस्तोक से जोड़ने वाला डायरेक्ट कार्गो कनेक्शन शुरू हो सकता है, जहां प्रति सप्ताह कम से कम 100 कंटेनर की जरूरत होगी. इसके अलावा, दोनों देश नागरिक विमान निर्माण में भी सहयोग बढ़ा रहे हैं. अक्टूबर में SJ-100 विमानों के भारत में उत्पादन पर समझौता हुआ.

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मंटुरोव ने बताया कि यह विमान रूसी एयरलाइंस में पहले से उड़ान भर चुका है. 4 करोड़ से ज्यादा यात्रियों को ले जा चुका है. अब भारत के साथ सीरियल उत्पादन पर काम होगा.

मजबूत होते संबंध और भविष्य की योजनाएं

भारत-रूस संबंध 2025 में और मजबूत हो रहे हैं. द्विपक्षीय व्यापार 65 अरब डॉलर से ऊपर पहुंच चुका है. विशेषज्ञों का मानना है कि आर्कटिक सहयोग से भारत ध्रुवीय मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा. हालांकि, पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण चुनौतियां हैं, लेकिन रूस-भारत साझेदारी इनका सामना करने में सक्षम है. मंटुरोव ने कहा कि हम भारतीय भागीदारों के साथ सहयोग का विस्तार करने को तैयार हैं. 

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