इंडिया टुडे कॉनक्लेव में भारतीय एस्ट्रोनॉट ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने कहा कि 20 दिन स्पेस स्टेशन पर रहने के दौरान सबसे अचीवमेंट था- स्पेस में तिरंगा पहुंचना. टचिंग स्पेस विद ग्लोरी की बात सही हो रही है. पूरी दुनिया को पता चल रहा था कि भारत अब स्पेस में पहुंच चुका है.
शुभांशु शुक्ला ने वायुसेना में मिग-21, मिग-29, जगुआर, सु-30 उड़ाया. अमेरिकी जेट एफ-16 उड़ाया. बाद में स्पेस ड्रैगन उड़ाया. इस पर शुभांशु ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि जब उड़ा रहे होते हैं तब एक ही स्टेप ही उठाते हैं. धीरे-धीरे सबकुछ उड़ाया. किस्मत वाला हूं कि मुझे ये सब करने का मौका मिला. जो सामने है वो कितने अच्छे से कर सकता हूं, इसका प्रयास करता हूं. मौका मिले तो हां बोलना चाहिए. क्या होगा, क्या नहीं होगा ये नहीं सोचना चाहिए.
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शुभांशु ने कहा कि हार से डरने की जरूरत नहीं. ये जरूरी हिस्सा है जिंदगी का. हार से ही सीखते है. सफलता नहीं सिखाती. ड्रैगन पर विंडो के पास बैठा था. दुनिया दिख रही है. कुछ चीजें दिमाग में बैठ जाती है. कई सुंदर चीजे दिखती हैं. लेकिन धरती को देखा तो इससे सुंदर कुछ नहीं. और कई विचार गलत साबित हो गया. सपने देखना और पूरा करना जरूरी है.
1.8 मैक (2222 km/hr) की स्पीड पायलट के लिए होती है. आपने तो हाइपरसोनिक उड़ान भरी है. इस सवाल पर शुभांशु ने कहा कि फाइटर जेट उड़ाने का मैंने हर सेकेंड एंजॉय किया है. जब 20 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से रॉकेट जाता है तो शरीर का हर हिस्सा कांप रहा होता है. ये सब ट्रेनिंग से होता है. स्पेस मिशन और फ्लाइट कठिन होती है. 8 मिनट में इतनी स्पीड और फिर अचानक कुछ नहीं. ग्रैविटी खत्म. पैर का खून सिर में जाता है. आप 3-4 इंच लंबे हो जाते हैं. 3-4 दिन बाद शरीर स्पेस का नया वातावरण एक्सेप्ट कर लेती है.
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11 प्रयोग में से भारत के लोगों के लिए क्या फायदा होगा. इस पर शुभांशु ने कहा कि रिसर्चर्स को पहली बार माइक्रोग्रैविटी में प्रयोग करने को मिला. मैंने सारे प्रयोग पूरे किए. रिजल्ट वापस लेकर आए. जमीन पर होने वाला प्रयोग स्पेस से अलग हो जाता है. सारे प्रयोग ह्यूमन स्पेस फ्लाइट को लेकर थे.
स्टेम सेल पर रिसर्च- सीनियर सिटिजन- स्पेस में जाते हैं तो मांसपेशी पर कोई वजन नहीं होता. इसलिए मांसपेशियां बेकार होने लगती है. इसलिए अंतरिक्षयात्री दो घंटे व्यायाम करते हैं. जिन लोगों को मांसपेशियां कमजोर होने की दिक्कत होती है. उनके लिए ये प्रयोग समाधान लेकर आएगा.
माइक्रोएल्गी- फूड की कैलोरी डेनसिटी बढ़ा सकते हैं. क्योंकि स्पेस में जहां रहते हैं वहां बहुत जगह नहीं होती. तो कम जगह में ऐसा क्या उगाएं जो थोड़ा खाकर सेहत बनी रहे. फूड सिक्योरिटी की समस्या खत्म कर देता है.
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शुभांशु ने बताया कि स्पेस स्टेशन 6 बीएचके के बराबर है. स्टेशन में जगह का उपयोग थ्रीडी में करते है. वहां सब सामान गिरता नहीं है. वहां चीजें छोड़ देते थे स्पेस में, वो गिरता नहीं था. मैंने धरती पर आने के बाद अपना लैपटॉप में छोड़ा. तो गिर गया. वो इसरो का लैपटॉप था.

शुभांशु ने कहा कि बहुत जल्द होगा गगनयान मिशन. एक्सिओम मिशन का उसी का हिस्सा है. ह्यूमन स्पेस मिशन बहुत जटिल और चुनौतीपूर्ण होता है. अभी 2027 है. हम प्रोटोटाइप कर रहे हैं. जब हमें भरोसा आएगा हम बहुत बेहतरीन करेंगे. इंडियन रॉकेट में इंडियन कैप्सूल में इंडियन एस्ट्रोनॉट स्पेस में जाएंगे.
रूसी और अमेरिकी ट्रेनिंग कैसी थी. इस सवाल के जवाब में शुभांशु ने कहा कि पहले रूस में ट्रेनिंग थी. थ्योरी ज्यादा थी. ऑपरेटर लेवल नॉलेज सिखाया जाता है. सिमुलेटर्स होते हैं. 70-80 प्रतिशत समय बुरी परिस्थिति में कैसे बचाते हैं ये सिखाया जाता है. अमेरिका में मिशन के नजदीक पहुंचने पर सारी चीजें बताते हैं. भारतीय सबकुछ सीख जाते हैं.
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शुभांशु ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का काम शुरू हो चुका है. धरती के चारों तरफ चक्कर लगाने वाला लैब होगा. हम वहां कई प्रयोग करेंगे. आईएसएस 1998 में बना था. हमारा स्टेशन अलग-अलग मॉड्यूल्स को जोड़कर बनेगा. नई तकनीक के साथ बनेगा. आधुनिका होगा.
स्पेस से भारत कैसा दिखता है. शुभांशु ने कहा कि आप कभी ऐसा नहीं देखते. इसलिए जब देखने को मिलता है वह अलग लगता है. स्पेस से धरती हमारा घर दिखती है. सीमाएं खत्म हो जाती है. धरती बहुत बड़ी है. जब पूरे दुनिया की बात होती है. जब आप धरती पर आते है तो बड़ी पिक्चर भूल जाते हैं. स्पेस में बड़ी पिक्चर दिखती है.
चंद्रमा पर भारतीय कब पहुंचेंगे. वहां से मंगल कब जाएंगे. शुभांशु ने कहा कि हमलोग काम शुरू कर चुके हैं. 2040 में हम चांद पर पहुंचेंगे. अब तो बच्चे भी पूछ रहे हैं कि हम कैसे एस्ट्रोनॉट बनेंगे. दुनिया में भारत से पूछा जाता है आप क्या कर रहे हैं. भारत और इसरो की बहुत इज्जत है. पूरी दुनिया सराहती है.