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24 अकबर रोड: 40 साल तक उतार-चढ़ाव देखने वाले कांग्रेस दफ्तर की कहानी

बीते कई दशकों से 24, अकबर रोड स्थित कांग्रेस का दफ्तर मार्च 2023 से दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर शिफ्ट होने जा रहा है. इस नए दफ्तर का डिजाइन कांग्रेस के कद्दावर नेताओं अहमद पटेल और मोतीलाल वोहरा ने तैयार किया था. अब दोनों ही नेता इस दुनिया में नहीं है. दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर कांग्रेस का दफ्तर बीजेपी के मुख्यालय के पास ही होगा. 

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कांग्रेस का दफ्तर 24, अकबर रोड
कांग्रेस का दफ्तर 24, अकबर रोड

कांग्रेस 28 दिसंबर को अपना स्थापना दिवस मनाने जा रही है. देश की 138 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए यह पल बहुत खास होने वाला है. 24 अकबर रोड बीते 44 सालों में कांग्रेस के उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा है. 

इस बार कांग्रेस के 138वें स्थापना दिवस पर अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के 88वें अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ध्वाजरोहण करेंगे. पार्टी के इस दफ्तर में आखिरी बार झंडा फहराया जाएगा. यह दफ्तर देश के चार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह और सात पार्टी अध्यक्षों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का गवाह बन चुका है.

बीते कई दशकों से 24, अकबर रोड स्थित कांग्रेस का दफ्तर मार्च 2023 से दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर शिफ्ट होने जा रहा है. इस नए दफ्तर का डिजाइन कांग्रेस के कद्दावर नेताओं अहमद पटेल और मोतीलाल वोहरा ने तैयार किया था. अब दोनों ही नेता इस दुनिया में नहीं है. दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर कांग्रेस का दफ्तर बीजेपी के मुख्यालय के पास ही होगा. 

राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि 24, अकबर रोड कांग्रेस का बेहद सटीक पता है. दरअसल मुगल सम्राट अकबर को एक ऐसे वंश के प्रतीक के तौर पर माना जाता है, जो कई उतार-चढ़ावों से गुजरा. लेकिन ऐसे भी लोग हैं, जो कांग्रेस को एक ऐसे संगठन के तौर पर देखते हैं, जिसके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा है और वे राहुल गांधी की तुलना मुगल साम्राज्य के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर से करते हैं.

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वह 1978 की जनवरी की सर्द सुबह थी, जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में शोभन सिंह और 20 अन्य कर्मचारियों ने 24, अकबर रोड के गलियारों में पहली बार प्रवेश किया था. 24, अकबर रोड लुटियंस दिल्ली का टाइप-6 बंगला है, जो आंध्र प्रदेश से राज्यसभा सांसद रहे जी. वेंकटस्वामी का था. वेंकटस्वामी उन कुछ गिने-चुने लोगों में शामिल थे, जिन्होंने उस समय इंदिरा गांधी का हाथ थामे रखा, जब अधिकतर कांग्रेस नेताओं ने उनसे इस डर से दूरी बना ली थी कि उन्हें उस समय प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई से दुश्मनी मोल लेनी पड़ सकती है. 

विलिंगडन क्रेसेंट से अकबर रोड तक का सफर

1977-1978 के आपातकाल का दौर इंदिरा गांधी के लिए अग्निपरीक्षा की तरह था. इस वजह से न सिर्फ उन्हें अपना पद खोना पड़ा बल्कि कांग्रेस पार्टी का आधिकारिक दफ्तर भी उनके प्रधानमंत्री पद से हटते ही चला गया था. उनका महरौली का फार्महाउस सिर्फ आधा ही बना था और वह यहां तक कि अपने करीबी दोस्तों को भी खो रही थीं.

जब उनकी परेशानियां बढ़ने लगी तो उनके परिवार के वफादर रहे मोहम्मद यूनुस ने इंदिरा और उनके परिवार को अपना 12 विलिंगडन क्रेसेंट स्थित आवास उनके निजी आवास के तौर पर दिया था. इस तरह 12 विलिंगडन क्रेसेंट गांधी परिवार का आशियाना बना. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी, उनके बच्चे राहुल और प्रियंका, संजय गांधी और उनकी पत्नी मेनका गांधी और उनके पांच कुत्ते सभी वहां शिफ्ट हो गए. चूंकि 12, विलिंगडन क्रेसेंट में क्षमता से अधिक लोगों के होने की वजह से 24, अकबर रोड को कांग्रेस के नए दफ्तर के तौर पर चुना गया. अगले चार दशकों में 24, अकबर रोड कांग्रेस के लिए बहुत भाग्यशाली रहा. 

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24, अकबर रोड में पांच बेडरूम, एक लीविंग और डाइनिंग हॉल और एक गेस्ट रूम है. लेकिन इस बंगले की खास बात यह थी कि इसका एक गेट 10, जनपथ से जुड़ा हुआ था, जो उस समय इंडियन यूथ कांग्रेस का ऑफिस हुआ करता था और अब सोनिया गांधी का घर है. बीते कई सालों तक 10, जनपथ और 24, अकबर रोड एक बेजोड़ कड़ी रहे, जिससे कांग्रेस को शोहरत, सफलता और नेतृत्व भी मिला.

आंग सान सू को 24, अकबर रोड से प्यार था

1961 की शुरुआत में म्यांमार में मानवाधिकारों और लोकतंत्र की पैरोकार रही आंग सान सू भी 24, अकबर रोड में रही. उस समय सू की मुश्किल से 15 साल की थीं. वह अपनी मां दॉ खिन की के साथ 24, अकबर रोड पहली बार पहुंची थीं. उनकी मां को भारत में म्यांमार का राजदूत नियुक्त किया गया था. उस समय 24, अकबर रोड को बर्मा हाउस कहा जाता था. 24, अकबर रोड को 1911 से 1925 के बीच सर एडविन लुटियन्स ने बनाया था. इसे ब्रिटिश औपनिवेशिक वास्तुकला और नई आधुनिकतावादी शैली का बेहतरीन उदाहरण माना जाता है.

रोचक बात यह है कि सू ने उस समय वही कमरा चुना था, जो बाद में राहुल गांधी को एआईसीसी के उपाध्यक्ष के तौर पर मिला. गुलाम नबी आजाद, प्रणब मुखर्जी और कांग्रेस के कई कद्दावर नेताओं को बाद में यही कमरा अलॉट हुआ था. सू ने यह कमरा इसलिए चुना था क्योंकि इसमें एक  बड़ा पियानो था. हर शाम एक टीचकर उन्हें पियानो सीखाने आती थीं. 

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