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निशिकांत दुबे के बयान पर बढ़ गया विवाद, अवमानना की कार्रवाई की मांग, वकील ने AG को लिखी चिट्ठी

सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही के लिए याचिका दाखिल करने से पहले अटॉर्नी जनरल की सम्मति अनिवार्य प्रक्रिया है. वकील ने अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर निशिकांत दुबे के खिलाफ अदालत के प्रति आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिए सम्मति प्रदान करने का आग्रह किया है.

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बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे (फाइल फोटो)
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे (फाइल फोटो)

वकील अनस तनवीर ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ अदालत की अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल के ऑफिस में अर्जी दी है. निशिकांत दुबे ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के खिलाफ कुछ बयान दिए हैं, जिसमें एक विशेष समुदाय के खिलाफ पक्षपात का आरोप लगाया गया है.

सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही के लिए याचिका दाखिल करने से पहले अटॉर्नी जनरल की सम्मति अनिवार्य प्रक्रिया है. वकील ने अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर निशिकांत दुबे के खिलाफ अदालत के प्रति आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिए सम्मति प्रदान करने का आग्रह किया है.

तनवीर ने पत्र में क्या लिखा?

तनवीर ने अपने पत्र में कहा है कि सार्वजनिक रूप से दिए गए दुबे के बयान घोर निंदनीय, भ्रामक हैं. इनका उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा और अधिकार को कमतर दिखाना है. पत्र में कहा गया है कि दुबे की टिप्पणियां न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत हैं, बल्कि उनका मकसद सर्वोच्च न्यायालय की महिमा और छवि को धूमिल करना कीर्ति को बदनाम करना है. ऐसे बयान देकर वो न्यायपालिका में जनता का विश्वास खत्म करना चाहते हैं. उनका असली उद्देश्य न्यायिक निष्पक्षता में सांप्रदायिक अविश्वास को भड़काना है. ये सभी कृत्य स्पष्ट रूप से न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(सी)(आई) के तहत परिभाषित आपराधिक अवमानना के अर्थ में आते हैं.

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'यह बयान खतरनाक रूप से भड़काऊ है'

सीजेआई के खिलाफ बयान पर दुबे ने लिखा है कि यह बयान न केवल बेहद अपमानजनक है बल्कि खतरनाक रूप से भड़काऊ भी है. इसमें लापरवाही से राष्ट्रीय अशांति होने के आसार और वैसी स्थिति के लिए मुख्य न्यायाधीश को जिम्मेदार ठहराया गया है. उनके इस कृत्य से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर कलंक लगाने की कोशिश की गई है. जनता में अविश्वास, आक्रोश और अशांति की भावना भड़काने का प्रयास किया गया है.

पत्र में कहा गया है कि इस तरह का निराधार आरोप न्यायपालिका की अखंडता और स्वतंत्रता पर गंभीर हमला है तथा यह न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत तत्काल और अनुकरणीय कानूनी जांच का पात्र है.

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