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बिहार चुनाव को लेकर लालू–तेजस्वी का बड़ा दांव, आखिर 77 साल के मंगनी लाल मंडल को क्यों सौंपी RJD प्रदेश की कमान?

बिहार में पहली बार अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले किसी चेहरे को किसी भी राजनीतिक दल ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. तेजस्वी यादव ने मंगनी लाल मंडल के निर्विरोध निर्वाचन के बाद ये जानकारी साझा करते हुए दावा भी किया कि उनकी पार्टी अति पिछड़ा वर्ग की हिमायती है.

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आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल
आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल

बिहार में कुछ महीने के बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. चुनाव को देखते हुए तमाम राजनीतिक दल बिहार में अपनी बिसात बिछाने में जुटे हुए हैं. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के अंदर चुनावी साल में संगठन चुनाव की प्रक्रिया जारी है. पांच जुलाई को आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है लेकिन उसके पहले प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. आरजेडी में जगदानंद सिंह की जगह अब लालू यादव की राजनीति में शुरुआती दौर से साथी रहे मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है.

मिशन 2025 के लिए एक तरफ आरजेडी ने युवा तेजस्वी यादव के चेहरे पर भरोसा जताया है तो वहीं आश्चर्यजनक रूप से 77 साल के मंगनी लाल मंडल को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी गई है. चुनावी साल में मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की आखिर क्या वजह है, इसे समझना बिहार की सियासत के लिहाज से बेहद जरूरी हो जाता है.

आखिर कौन हैं मंगनी लाल मंडल?

मंगनी लाल मंडल लालू यादव के समकालीन राजनीति के दौर के नेता हैं. समाजवादी आंदोलन से निकले मंगनी लाल मंडल ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के सानिध्य में सियासत की राह पर चलना शुरू किया. उनकी गिनती बिहार के पुराने समाजवादी चेहरों में की जाती है. मंगनी लाल मंडल को अगर लालू और नीतीश के बराबर का नेता माना जाए तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा. यह लग बात है कि बदलते वक्त के साथ बिहार की राजनीति में लालू यादव और नीतीश कुमार का कद बढ़ता गया और मंगनी लाल मंडल उस रफ्तार को पकड़ नहीं पाए.

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मंडल को पहली बार 1986 में लोकदल के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधान परिषद में मनोनीत किया गया था. तब कर्पूरी ठाकुर विधानसभा में विपक्ष के नेता थे. 1986 से लेकर 2004 तक मंगनी लाल मंडल लगातार तीन बार विधान परिषद सदस्य रहे. मंगनी लाल मंडल को लालू यादव ने आरजेडी सरकार में मंत्री भी बनाया. लेकिन बाद में मंगनी लाल मंडल का लालू यादव से मोहभंग हुआ तो वह जेडीयू में शामिल में नीतीश कुमार के साथ चले गए.

लालू परिवार के साथ मंगनी लाल मंडल

साल 2004 में मंडल को राज्यसभा भेजा गया. जेडीयू ने 2009 में मंगनी लाल मंडल को झंझारपुर से लोकसभा का टिकट भी दिया. चुनाव जीतकर वह लोकसभा भी पहुंचे. हालांकि बाद के दिनों में मंगनी लाल मंडल कहीं भी एक जगह टिक कर नहीं रह पाए और एक से दूसरी जगह पाला बदलते रहे. मंगनी लाल मंडल थोड़े अरसे पहले ही आरजेडी में वापस आए और अब उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है.

जातीय समीकरण साधने की कोशिश

चुनावी साल में 77 साल मंडल को यूं ही आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया गया है. सियासी जानकार मानते हैं कि लालू यादव और तेजस्वी यादव ने बहुत सोच समझकर उन्हें ये पद दिया है. दरअसल मंगनी लाल मंडल धानुक जाति से आते हैं और धानुक जाति बिहार के उस अति-पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी सेक्शन का हिस्सा है जिसकी बिहार में सबसे ज्यादा आबादी है. बिहार में हुए जातिगत सर्वे के मुताबिक राज्य में अति पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा 36.01 फीसदी है. इस ईबीसी सेक्शन में लगभग 130 समूह और उप-समूह वाली जातियां शामिल हैं. इसी ईबीसी सेक्शन में धानुक जाति भी शामिल है जिसकी बिहार में कुल आबादी 2.14 फीसदी है. 

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बिहार में पहली बार अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले किसी चेहरे को किसी भी राजनीतिक दल ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. तेजस्वी यादव ने मंगनी लाल मंडल के निर्विरोध निर्वाचन के बाद ये जानकारी साझा करते हुए दावा भी किया कि उनकी पार्टी अति पिछड़ा वर्ग की हिमायती है. दरअसल आरजेडी का असल मकसद नीतीश कुमार के अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी करना है. नीतीश कुमार की राजनीति बिहार में ईबीसी वोटर के मजबूत आधार पर टिकी हुई है और इसमें भी धानुक जाति बेहद खास है. अति पिछड़ी जातियों के साथ कुर्मी और कुशवाहा जातियों का समीकरण नीतीश कुमार की सियासी जमीन को मजबूत करता है. जाहिर है, इस पूरे सियासी समीकरण को साधने के लिए ही मंगनी लाल मंडल को आगे किया गया है.

क्षेत्रीय राजनीति पर भी नजर

मंगनी लाल मंडल के सहारे आरजेडी एक तरफ जहां जातीय समीकरण को साधने में लगी है तो वहीं दूसरी तरफ उसकी नजर क्षेत्रीय सियासत पर भी है. बिहार के जिस इलाके में आरजेडी या महागठबंधन का प्रदर्शन पिछले कुछ चुनावों में बेहद निशाजनक रहा है, उसी इलाके से मंगनी लाल मंडल आते हैं. मिथिलांचल की जमीन से आने वाले मंडल के प्रदेश अध्यक्ष बनने से क्या इस इलाके में पार्टी का प्रदर्शन सुधरेगा, ये तो चुनाव के बाद तय हो पाएगा लेकिन तेजस्वी का चुनावी प्लान यही है.

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मिथिलांचल के मधुबनी और झंझारपुर जैसे इलाके में आरजेडी की कमजोर कड़ी को मंगनी मजबूत कर सकते हैं. मंगनी लाल मंडल खुद मधुबनी के रहने वाले हैं और झंझारपुर से सांसद रह चुके हैं. यही नहीं इस इलाके में अति पिछड़ा वर्ग से आने वाली पचपनिया वोटर्स जिसमें 55 ईबीसी जातियों को गिना जाता है, वो वोटर आरजेडी की तरफ झुकेगा इसकी उम्मीद लालू और तेजस्वी दोनों को है.

तेजस्वी का चुनावी ब्लूप्रिंट

मंगनी लाल मंडल को निर्विरोध आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया है. 19 जून को पटना में आयोजित एक बड़े समारोह में उनकी ताजपोशी की तैयारी है. बीते लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने कई प्रयोग किए थे. कुछ नए प्रयोगों की बदौलत ही तेजस्वी शाहाबाद के इलाके में एनडीए को झटका देने में कामयाब रहे. तेजस्वी का चुनावी ब्लूप्रिंट इस तरफ इशारा कर रहा है कि वह एनडीए के जातीय समीकरण और क्षेत्रीय फैक्टर को अपने फैसलों से अस्थिर करना चाहते हैं. मंगनी लाल मंडल तेजस्वी के इसी चुनावी ब्लूप्रिंट का अहम हिस्सा हैं. उनके जरिए अति पिछड़ा वोट में सेंधमारी कर एनडीए के बेस वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने का प्लान है.

लोकसभा चुनाव में भी खेला था दांव

2024 के लोकसभा चुनाव में भी लालू और तेजस्वी ने इसी तरह प्लान रचा था, तब तेजस्वी का दांव सफल भी रहा. तेजस्वी ने कुशवाहा कार्ड खेला था और कुशवाहा जाति से आने वाले उम्मीदवारों को तेजस्वी ने औरंगाबाद और नवादा सीट पर उतरा था. नतीजा ये हुआ कि औरंगाबाद से आरजेडी के अभय कुशवाहा ने जीत हासिल की, साथ ही शाहाबाद इलाके की कई सीटों पर एनडीए के जातीय समीकरण विफल साबित हुए. काराकाट, सासाराम, आरा और बक्सर सीट पर एनडीए के उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा. जाहिर है, तेजस्वी विधानसभा चुनाव में इसी तरह की रणनीति से सबको चौंकना चाहते हैं.

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