बिहार में पहले चरण की वोटिंग आज यानी 6 नवंबर को शुरू हो गई है लेकिन बिहार के कुछ नागरिकों के लिए 'यह सिर्फ एक खबर' है. आंध्र प्रदेश में रहने वाले बिहार के सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों के लिए, विधानसभा चुनावों के लिए घर लौटने का ख्याल दक्षिणी राज्य में रोज़ाना ज़िंदगी जीने की जद्दोजहद के आगे फीका पड़ गया है.
243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा के लिए पहले चरण की वोटिंग हो रही है, जबकि अगला चरण 11 नवंबर को होना है.
माइग्रेंट मज़दूर होटलों, पोल्ट्री स्टॉल्स, कंस्ट्रक्शन साइट्स और दूसरे मुश्किल कामों में लंबे समय तक काम करते हैं और अक्सर घर पर मिलने वाली सैलरी से थोड़ा ज़्यादा कमाते हैं, फिर भी उनका दिल उन गांवों से जुड़ा रहता है जिन्हें वे पीछे छोड़ आए हैं.
'भ्रष्टाचार की वजह से छोड़ना पड़ा बिहार...'
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छह साल से विजयवाड़ा में काम कर रहे मोहम्मद इरशाद (30) ने कहा कि बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार की वजह से उन्हें बिहार छोड़ना पड़ा. उन्होंने दावा किया, "हमने नीतीश कुमार को वोट दिया था, लेकिन उन्होंने कभी गरीबों की परवाह नहीं की. ग्रेजुएट लोग भी बेरोज़गार हैं और यहां हमारे जैसा ही काम करते हैं."
इरशाद ने बताया कि वह रोज़ 500 से 600 रुपये कमाते हैं, लेकिन इसका करीब आधा हिस्सा किराए और खाने पर खर्च हो जाता है. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें बिहार में भी रोज़ 600 रुपये मिलें, तो वह वहीं रुक जाएंगे और बताया कि सरकारी नौकरी पाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, जो वह नहीं दे सकते.
'बार-बार बदलाव से तरक्की रुकती है...'
गुंटूर में जिंदगी गुजार रहे पटना के हरेराम यादव ने कहा कि बिहार में बहुत ज़्यादा बदलाव आया है. उन्होंने बताया, "1990 में युवा नौकरियों के लिए माइग्रेट करते थे, लेकिन अब मौके बढ़ गए हैं." उन्होंने कहा कि नालंदा यूनिवर्सिटी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंज़ूर किए गए फंड से डेवलप किया जा रहा है.
हरेराम यादव ने गर्व से बताया कि एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन बढ़ गए हैं और गांवों को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली मिल रही है. अब "हर घर जल" योजना के तहत हर घर में साफ पानी मिल रहा है, क्योंकि सरकार पूरे बिहार में भागीरथी नदी का पानी सप्लाई सुनिश्चित कर रही है, जिससे साफ बदलाव दिख रहा है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नीतीश कुमार की सरकार बनी रहनी चाहिए.
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गुंटूर के रहने वाले इस प्रवासी ने भरोसे के साथ समझाया, "सिर्फ एक स्थिर सरकार ही लगातार ग्रोथ सुनिश्चित कर सकती है. बार-बार बदलाव से तरक्की रुक जाती है और वेलफेयर स्कीम में देरी होती है."
विजयवाड़ा में बस गए पटना के विनोद गुप्ता कहते हैं, "बिहार में ट्रांसपोर्ट और सिक्योरिटी में बहुत सुधार हुआ है. पहले यात्रा करना असुरक्षित था, लेकिन अब महिलाएं रात में भी आज़ादी से घूमती हैं. क्राइम रेट कम होने से कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ है."
उन्होंने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार हुआ है और नीतीश कुमार के एडमिनिस्ट्रेशन में बिहार लगातार डेवलप हो रहा है.
'लॉकडाउन से बिज़नेस बर्बाद...'
मधुबनी जिले के रखपुरा गांव के मोहम्मद नौशाद (35), जो पिछले तीन सालों से विजयवाड़ा में रह रहे हैं, कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी जनरल स्टोर बंद करने के लिए मजबूर होने के बाद दक्षिणी राज्य में चले गए थे. वह विधानसभा चुनाव में युवा RJD नेता तेजस्वी यादव को सपोर्ट करते हैं.
नौशाद ने PTI को बताया, "कोविड-19 महामारी से पहले बिहार में मेरी एक छोटी सी जनरल स्टोर थी और मैं भेड़ें भी पालता था, लेकिन लॉकडाउन ने मेरा बिज़नेस बर्बाद कर दिया."
नौशाद उन करीब 100 लोगों में से एक हैं. जो विजयवाड़ा के होटलों में काम करके गुज़ारा कर रहे हैं. वह अब एक चिकन सेंटर में 15 घंटे काम करके रोज़ 700 रुपये कमाते हैं. घर पर उन्हें इसी काम के लिए 400 रुपये मिलते थे, जो उनके गुज़ारे के लिए काफी नहीं थे. उन्होंने कहा कि अगर तेजस्वी यादव जीतते हैं, तो शायद कुछ लोगों को घर पर वापस नौकरी मिल जाएगी.
उनमें से ज़्यादातर लोगों के लिए आंध्र प्रदेश में ज़िंदगी दूरी और इज़्ज़त के बीच एक समझौता है, बेहतर सैलरी तो मिलती है, लेकिन दिन लंबे और थका देने वाले होते हैं.
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केंद्र सरकार के एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वह बिहार के लखीसराय ज़िले के रहने वाले हैं और अभी विजयवाड़ा में काम करते हैं. उन्होंने दावा किया कि नीतीश कुमार के राज में "जंगल राज" खत्म हो गया और सड़कें और सुरक्षा बेहतर हुई, लेकिन बेरोज़गारी की समस्या अभी भी बहुत गहरी है.
उन्होंने कहा, "पहले हत्याएं आम थीं, और लोग रात में बाहर निकलने से डरते थे. अब कानून-व्यवस्था बेहतर है, लेकिन इंडस्ट्रीज़ खत्म हो गई हैं. ब्रिटिश ज़माने की चीनी मिलें बंद हो गई हैं और उनकी जगह कोई नई इंडस्ट्री नहीं आई है."
पिछले डेढ़ दशक में, दक्षिणी राज्य में बड़े पैमाने पर अंदरूनी माइग्रेशन देखा जा रहा है, जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और दूसरे राज्यों से मज़दूर आ रहे हैं. इनमें से कई मज़दूर होटलों में स्टीवर्ड, पेंटर, मज़दूर और एक्वाकल्चर यूनिट्स में काम करने वाले के तौर पर गुज़ारा कर रहे हैं.