उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नए अध्यक्ष की ताजपोशी की कवायद शुरू हो गई है. आरएसएस, सरकार और संगठन के साथ मंथन कर दिल्ली लौटे बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने बुधवार को पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात की. माना जा रहा है कि बीजेपी जल्द ही यूपी के नए अध्यक्ष के नाम का ऐलान कर सकती है.
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल पूरा हो चुका है. बीजेपी उत्तर प्रदेश में 2027 विधानसभा चुनाव से पहले अपने संगठन में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है. नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया प्रदेश प्रभारी पीयूष गोयल और सह-प्रभारी विनोद तावड़े की देखरेख में चल रही है. ऐसे में सभी की निगाहें लगी हुई हैं कि बीजेपी का नया अध्यक्ष कौन होगा?
बीजेपी का कौन होगा यूपी का नया अध्यक्ष?
यूपी की सियासी दशा और दिशा बदल चुकी है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद से यूपी में संगठन की बागडोर ओबीसी समुदाय के हाथों में रही है. पहले मौर्य समाज से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य, उसके बाद कुर्मी नेता स्वतंत्र देव सिंह और फिर जाट समाज से आने वाले भूपेंद्र चौधरी को अध्यक्ष बनाया गया.
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बीजेपी के नए अध्यक्ष की रेस में कई नाम चल रहे हैं. नए प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए ओबीसी से लेकर ब्राह्मण और दलित समुदाय के नेताओं के नाम की चर्चा है, लेकिन दस साल से चले आ रहे सियासी पैटर्न को देखते हुए माना जा रहा है कि किसी ओबीसी समुदाय के चेहरे को उत्तर प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. ऐसे में सवाल है कि मौर्य, कुर्मी और जाट समाज के बाद ओबीसी की किस जाति की बारी है.
मौर्य, कुर्मी, जाट के बाद किसकी बारी?
बीजेपी का यूपी में पूरा फोकस गैर-यादव ओबीसी वोटों पर रहा है. ओबीसी समुदाय में यादव के बाद कुर्मी और मौर्य समाज की सबसे बड़ी आबादी है. बीजेपी इन दोनों ही जातियों से प्रदेश अध्यक्ष बना चुकी है. 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी ने यूपी संगठन की कमान केशव प्रसाद मौर्य को सौंपी थी. केशव मौर्य का चेहरा आगे करके बीजेपी यूपी में गैर-यादव ओबीसी वोटों को साधने में सफल रही थी.
केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम बने तो प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी स्वतंत्र देव सिंह को सौंप दी गई थी, जो ओबीसी की कुर्मी जाति से आते हैं. स्वतंत्र देव सिंह के अगुवाई में 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा गया. स्वतंत्र देव के बाद बीजेपी ने जाट समाज से आने वाले भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, लेकिन अब उनका भी कार्यकाल पिछले साल पूरा हो चुका है. इस तरह बीजेपी ओबीसी की तीन बड़ी जातियों को साध चुकी है, जिसके बाद अब ओबीसी की किस जाति से नया अध्यक्ष चुनेगी.
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बीजेपी ओबीसी में जिस तरह गैर-यादव ओबीसी को सियासी अहमियत दे रही है, उस लिहाज से देखें तो लोधी और निषाद समुदाय से किसी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. लोधी और निषाद समुदाय की आबादी ओबीसी में अच्छी-खासी है.
लोधी समाज बीजेपी का पहले से पारंपरिक वोटबैंक है, जबकि निषाद समुदाय का विश्वास 2014 में जीता है. इसके अलावा पाल समुदाय भी ओबीसी का एक अहम वोटर है, जिस पर बीजेपी की नजर है. इस तरह से बीजेपी गैर-यादव ओबीसी में कुर्मी, मौर्य और जाट के बाद किसी पर दांव खेल सकती है, तो उसमें लोध, निषाद या फिर पाल जाति से किसी नेता की किस्मत खुल सकती है.
लोधी, निषाद और पाल जाति में कौन होगा?
ओबीसी में एक और बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है, जो बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. लोधी जाति से ताल्लुक रखने वाले कल्याण सिंह नब्बे के दशक में बीजेपी का चेहरा हुआ करते थे और दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. बीजेपी लोधी समुदाय को साधे रखने के लिए अपने किसी लोध चेहरे को पार्टी की कमान सौंप सकती है.
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह, संदीप सिंह और केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा लोधी चेहरे के तौर पर हैं. बीजेपी अगर किसी लोधी नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपती है तो इन्हीं में से कोई एक नाम हो सकता है. योगी सरकार में मंत्री संदीप सिंह स्व. कल्याण सिंह के पोते हैं, तो बीएल वर्मा उनके शिष्य हैं.
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धर्मपाल सिंह बीजेपी के पुराने नेताओं में हैं. संदीप सिंह के जरिए बीजेपी ओबीसी, लोध और कल्याण सिंह की हिंदुत्व की राजनीति सेट हो सकती है. बीएल वर्मा को मोदी-शाह का करीबी माना जाता है.
वहीं, अगर बीजेपी निषाद समुदाय से अध्यक्ष बनाने का फैसला करती है तो उसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और बाबूराम निषाद पहली पसंद बन सकते हैं. यूपी में निषाद वोटर करीब 6 फीसदी है, जो पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक है.
निषाद समुदाय से आने वाले बाबूराम निषाद को संगठन का आदमी माना जाता है और शुरू से ही बीजेपी से जुड़े हैं. इसके अलावा केंद्रीय नेतृत्व की पसंद के तौर पर पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति का नाम भी सामने आ रहा है. वह निषाद समाज से आती हैं और भगवाधारी हैं. इस तरह निरंजन ज्योति के जरिए ओबीसी और हिंदुत्व का दोनों ही दांव सेट हो सकता है.
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पाल समुदाय से बीजेपी अगर किसी को अध्यक्ष बनाती है तो उसमें केंद्रीय मंत्री एसपी बघेल पहली पसंद बन सकते हैं. यूपी में करीब 3 फीसदी वोट पाल समुदाय का है, जो अतिपिछड़ी जाति के साथ-साथ गैर-यादव ओबीसी को साधने का बड़ा दांव हो सकता है. इसके अलावा यूपी बीजेपी अध्यक्ष को लेकर जिनकी चर्चाएं चल रही हैं, उनमें अमरपाल मौर्य का नाम भी है. इसके अलावा अशोक कटारिया, विद्या सागर सोनकर, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा का भी नाम है.
यूपी में लोध और निषाद वोटों की ताकत
यूपी के कई जिलों में लोध वोटरों का दबदबा है, जिनमें रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामायानगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा ऐसे जिले हैं, जहां लोध वोट बैंक पांच से 10 फीसदी तक है.
वहीं, मल्लाह समुदाय भी करीब 6 फीसदी है, जो सूबे में निषाद, बिंद, कश्यप और केवट जैसी उपजातियों के नाम से जानी जाती है. ये गंगा नदी के किनारे जिलों में स्थित हैं. फतेहपुर, चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, गोरखपुर, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, जौनपुर, औरैया सहित कई जिलों में हैं. मछली मारने और नाव चलाने में इनका जीवन बीत जाता है. राजनीतिक रूप से निषाद वोटर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते.